मुगल सैनिक व्यवस्था

मुगल सैनिक व्यवस्था मुगल शक्ति का आधार थी। सेना की व्यवस्था की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। सैनिकों के कुशल संगठन, उनके नियंत्रण एवं अनुशासन हेतु बहुत से नियम बनाये गये थे। सैनिक विभाग की किसी भी शिथिलता को देखते ही उसे दूर करने के प्रयास किए जाते थे।

Mughal Army System
Babur

मुगल सैन्य दल को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया था-

  1. अधीनस्थ राजाओं की सेनाएँ। 
  2. मनसबदारों की सैन्य टुकड़ियाँ।
  3. अहदी सैनिक।
  4.  दाखिली सैनिक (पूरक सैनिक)।

अहदी सैनिक -

  • अहदी सैनिक एक तरह से बादशाह के सैनिक होते थे। इनकी भर्ती, वेतन, वस्त्र एवं घोड़े सब राज्य की ओर से दिए जाते थे और इन्हें एक अलग अमीर और बख्शी के अधीन रखा जाता था।
  • अहदी सैनिकों को बादशाह कभी-कभी किसी मनसबदार की सेवा में भी नियुक्त कर सकता था।
  • एक अहदी घुड़सवार को 500 रूपए वेतन देने का उल्लेख मिलता है, जबकि एक साधारण घुड़सवार को 12 रूपए से 15 रूपए तक वेतन दिया जाता था।

दाखिली सैनिक-

  • दाखिली या पूरक सैनिकों की भर्ती यद्यपि बादशाह की ओर से किया जाता था, किन्तु इनको मनसबदारों की कमान अथवा सेवा में रख दिया जाता था। इन्हें वेतन राज्य की ओर से प्राप्त होता था।

 मुगल सेना -

मुगल सेना विभिन्न प्रजातियों की एक मिश्रित सेना थी, जिसमें ईरानी, तूरानी, अफगान, भारतीय मुसलमान एवं मराठों सभी को भर्ती किया गया था। मुगल सेना का गठन दशमलव पद्धति पर किया गया था। मुगलों की विशाल सेना निम्नलिखित भागों में विभाजित थी -

पैदल सेना -

यह मुगल सेना की सबसे बड़ी शाखा थी। मुगलों की पैदल सेना में दो प्रकार के सैनिक होते थे -

1) अहशाम सैनिक -

इसमें बन्दूकची, शमशीरबाज तथा तलवारबाज आदि थे, जो तीर-कमान, भाला, तलवार और कटार आदि हथियारों का प्रयोग करते थे।

2) सेहबन्दी सैनिक -

 ये सैनिक बेकार (बेरोजगार) लोगों से लिए जाते थे। जो मालगुजारी वसूल करने में मदद करते थे।

अश्वारोही सेना -

यह सेना मुगल सेना का प्राण मानी जाती थी। इसमें दो प्रकार के घुड़सवार सैनिक होते थे -

1) बरगीर -

 इन सैनिकों को सारा साज-सामान राज्य की ओर से दिया जाता था।

2) सिलेदार -

इन्हें सारे साज-सामान (घोड़ा और अस्त्र-शस्त्र) की व्यवस्था स्वयं करनी होती थी। इन्हें केवल युद्ध के अवसर पर ही नियुक्त किया जाता था। उनका वेतन बरगीर से अधिक होता था।

इसके अतिरिक्त घोड़ों की संख्या के आधार पर ये चार प्रकार के थे-

1) एक अस्पा - जिनके पास केवल एक घोड़ा होता थे।
2) दु-अस्पा - वह घुड़सवार जिनके पास दो घोड़े होते थे।
3) सिंह-अस्पा - वह घुड़सवार जिनके पास तीन घोड़े होते थे।
4) निम्न अस्पा - दो सैनिकों के बीच एक घोड़ा होता था।

सेना की कार्य कुशलता को पूर्ण रूप से बनाए रखने के लिए अकबर ने दहबिस्ती का नियम बनाया जिसके अनुसार प्रत्येक सैनिक के लिए दो घोड़े रखना अनिवार्य था।

तोपखाना -

  • मुगल तोपखाने का शिलान्यास फारसी तोपची उस्ताद अली तथा मुस्तफा खाँ के नेतृत्व में बाबर के समय में हुआ था। बाद में उस्ताद कबीर और हुसैन ने इसे सफल नेतृत्व प्रदान किया था।
  • बाबर अपने साथ एक अच्छा तोपखाना लेकर भारत आया था, किन्तु मुगल तोपखाने को व्यवस्थित रूप अकबर के समय में दिया गया। पीतल एवं लोहे की बड़ी एवं शक्तिशाली तोपों का निर्माण किया गया जो कि डेढ़ मन का गोला फेंकने तक में सक्षम थी। 
  • अकबर ने अनेक छोटी-छोटी 'वियोज्य' तोड़ने वाली तोपों का निर्माण करवाया।  जिसे हाथी और घोड़े की पीठ पर रखकर आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सके।

मुगल तोपखाने को दो भागों में बांटा गया है -

1) जिन्सी 
2) दस्ती।

जिन्सी भारी तोपें होती थी, जबकि दस्ती हल्की तोपें थी। मुगल तोपखाने के प्रमुख अधिकारी मीर-ए-आतिश कहलाता था।

हस्ति सेना -

  • सेना में हाथियों का प्रयोग प्राचीन काल से ही भारत की विशेषता रही है। लेकिन मुगलकाल में अकबर ने इसके प्रबन्ध के लिए एक अलग विभाग ही संगठित किया, जिसे पीलखाना कहा जाता था।
  • अकबर को हाथियों का बड़ा शौक था। इसका प्रयोग वाहन तथा युद्ध दोनों के लिए किया जाता था।

नौसेना -

  • मुगलकाल में नौसेना का कोई सुव्यवस्थित संगठन नहीं था,  क्योंकि मुगल साम्राज्य मूलतः स्थलीय था।
  • 1572 ईस्वी में गुजरात विजय तथा बंगाल अभियान के दौरान अकबर ने पहली बार नौसेना की आवश्यकता का अनुभव किया था।
  • फलस्वरूप अकबर ने एक विभाग स्थापित किया, जिसे नवाड़ा कहा जाता था। इसका प्रमुख अधिकारी मीर-ए-बहर होता था।
  • अकबर के पश्चात् मुगल बादशाहों में औरंगजेब ने नौ शक्ति की ओर ध्यान दिया। शाइस्ता खाँ और मीर जुमला ने इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 
  • औरंगजेब ने जंजीरा के सीदियों तथा मोपला लोगों के सहयोग से एक शक्तिशाली नौसेना तैयार की थी।

धन्यवाद।


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