जगन्नाथ मन्दिर

जगन्नाथ मन्दिर उड़ीसा के पुरी नामक नगर में स्थित है। अभिलेखों के आधार पर कलिंग विजेता चोड़गंग ने सन् 1030 ईस्वी में विजय-स्तम्भ के रूप में इसका निर्माण कराया था। सन् 1118 ईस्वी में इसका पुनर्निर्माण किया गया, जिसका प्रतिफल जगन्नाथ मन्दिर है। जगन्नाथ मन्दिर एक विस्तृत आयताकार प्रांगण के मध्य में निर्मित है तथा यह ऊंची चहारदीवारी से घिरा है। इस चहारदीवारी की लम्बाई 132 मीटर तथा चौड़ाई 45 मीटर है। मुख्य मन्दिर के चारों ओर विभिन्न आकार-प्रकार के लगभग तीस या चालीस देवालय हैं।

Jagannath Temple
Jagannath Temple

जगन्नाथ मन्दिर की बनावट -

जगन्नाथ मन्दिर की बनावट विशिष्ट है। इसके बाहरी परकोटे में दीवारों के तीन घेरे हैं, मानो मन्दिर के गले में तीन मालाएँ हों। देवताओं तथा महापुरुषों को श्रद्धा एवं आदर के प्रतीक स्वरूप पुष्पमाल्य पहनाने की परिपाटी भारत में अत्यन्त प्राचीन रही है। बहुत सम्भव है, इसी भावना की अभिव्यक्ति शिल्पियों ने उक्त तीन दीवारों के माध्यम से की है। इस परकोटे की लम्बाई लगभग 200 मीटर, चौड़ाई 192 मीटर तथा ऊंचाई 6 मीटर है। इसकी चारों दिशाओं में ठोस प्रवेशद्वार हैं। इनके ऊपर शुंडाकार छत है। जगन्नाथ मंदिर की लम्बाई 93 मीटर और चौड़ाई 24 मीटर है, किन्तु बाहरी परकोटे के कारण इसकी लम्बाई 67.50 मीटर तथा चौड़ाई 46 मीटर हो गई है।

मंदिर योजना -

जगन्नाथ मन्दिर में चार कक्षों- देउल, जगमोहन, नटमंडप तथा भोगमंडप की योजना है। इन कक्षों की निर्माण पद्धति में भी दो कालों की झलक स्पष्टतः मिलती है। देउल तथा जगमोहन प्रथम काल की रचनाएँ हैं और नटमंडप एवं भोगमंडप चौदहवीं अथवा पंद्रहवीं शताब्दी में निर्मित किए गए। लगभग दो शताब्दी पूर्व समुद्र की लवण सिक्त जलवायु के कारण जगन्नाथ मन्दिर का एक अंश जर्जर होकर ध्वस्त हो गया था। फलस्वरूप, सीमेंट द्वारा इसका परीसंस्कार किया गया। इससे इसकी मौलिकता नष्ट हो गई तथा इसका आकार और अधिक विशाल हो गया। इतना अधिक परिवर्तन होने के बाद भी इसका शिखर अत्यन्त प्रभावशाली है। इसकी ऊंचाई 56.70 मीटर है। शिखर के आधार भाग में देव प्रकोष्ठों की श्रृंखला है, जिनमें श्रृंगारिक मूर्तियों का अंकन है।

नट मंडप -

नटमंडप 24 मीटर वर्गाकार है। इसकी छत 16 स्तम्भों पर आश्रित है। ये स्तम्भ चार-चार की संख्या में चार कतारों में व्यवस्थित हैं। पर्सी ब्राउन के अनुसार उड़ीसा के स्तम्भ युक्त कक्ष का यह सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। नटमंडप तथा भोगमंडप की दीवारों पर जटिल अलंकरण हैं। जगन्नाथ मन्दिर की बाह्य दीवारों पर काम-कला के विविध आसनों से युक्त मिथुन-वृन्द उत्खचित हैं।

देव प्रतिमाएँ -

इस मन्दिर में कृष्ण, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। अन्य मन्दिरों की देव मूर्तियों की भांति यह प्रस्तर निर्मित नहीं, वरन् काष्ठ निर्मित हैं, जो प्रतिवर्ष सागर में प्रवाहित कर दी जाती हैं। मंदिर की दीवारों में विष्णु के अन्य  अवतारों को मूर्तियों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। नरसिंह मूर्ति के ऊपर पांच ध्यानी बुद्धों की मूर्तियां हैं तथा वराह की मूर्ति के ऊपर दो ध्यानी बुद्ध हैं। विष्णु की प्रतिमा भी अभय मुद्रा में उत्कीर्ण हैं। यह एक विचित्र लक्षणयुक्त है क्योंकि वैष्णव मूर्तियों में यह मुद्रा प्रायः नहीं दिखलाई जाती है। बाहरी परकोटे के एक देवालय में लक्ष्मी की मूर्ति के पीछे बुद्ध की प्रतिमा स्थापित है।

यद्यपि जगन्नाथ मन्दिर में शिल्पगत विशेषता का अभाव है, तथापि पूजा की दृष्टि से भारत के पवित्र मन्दिरों में इसकी गणना है। इसके इष्टदेव जगन्नाथ को विष्णु का अवतार माना गया है। विष्णु भगवान जाति-पाति का भेद नहीं मानते थे अतएव इस मन्दिर के प्रांगण में अस्पृश्यता वर्जित है। आषाढ़ में रथयात्रा के दिन इसकी महिमा बहुत बढ़ जाती है। सैकड़ों किलोमीटर की दूरी से सहस्रों की संख्या में यात्री इस अवसर पर आकर इस उत्सव की शोभा बढ़ाते हैं। कला की दृष्टि से अकिंचन होते हुए भी आज तक यह जीवित है।

धन्यवाद।

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