नवपाषाण काल
नवपाषाण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जान लुब्बाक ने अपनी पुस्तक Pre-Historic times में किया था। मेहरगढ़ उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में आखेट-संग्राहक से पशुपालन और स्थायी कृषि में रूपान्तरण के विविध चरणों का प्राचीनतम और स्पष्ट नवपाषाणिक साक्ष्य प्रस्तुत करता है। सर्वाधिक प्राप्त नवपाषाणिक उपकरण पॉलिशदार पत्थर की कुल्हाड़ी है। नवपाषाण काल से ही पत्थरों को पॉलिश करने की शुरुआत होती है। 1842 ई० में कर्नाटक के मैसूर के लिंगसुगूर से नवपाषाणिक उपकरण मिले थे।
Neolithic age |
मेहरगढ़ –
- पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के कोची के मैदान (रोटी की टोकरी) में प्रवाहित होने वाली बोलन नदी के तट पर स्थित है।
- भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनतम नवपाषाणिक बस्ती मेहरगढ़ थी।
- कृषि (गेंहू, जौ, अंगूर, कपास) तथा पशुपालन का साक्ष्य मिलता है जो दक्षिण एशिया में गेंहू एवं जौ की खेती का प्राचीनतम प्रमाण है।
- पहली बार कुम्हार के चाक पर तैयार मिट्टी का बर्तन
- भैंस पाले जाने का प्राचीनतम प्रमाण यहाँ से मिलता है।
- मिट्टी के प्रगलन पात्र (terracotta crucibles) पर संलग्न तांबे से सर्वप्रथम यहीं पर इस धातुकर्म के प्रारम्भ की जानकारी मिलती है।
- सिल-बट्टा, हड्डियों से निर्मित सुई, बर्तनों पर पीपल के पत्ते का अंकन
- मेहरगढ़ से समाधि में मानव कंकाल के पास बकरी के बच्चे दफनाने का साक्ष्य मिलता है।
- मेहरगढ़ से 1.10m लकड़ी का दरवाजा मिला है जिससे यह अनुमान लगाया गया है कि दरवाजों में लकड़ी के चौखट लगाने की शुरुआत हो गई थी।
- मेहरगढ़ से पहले कपास का उत्पादन विश्व में कहीं नहीं मिलता।
- मेहरगढ़ के लोग कच्ची ईंटों के आयताकार मकानों में रहते थे। लोग अन्नों के भण्डारण के लिए भी अलग से व्यवस्था करते थे। कुल मिलाकर यहाँ से कृषिजीवी स्थायी समाज एवं स्थायी बस्तियों के अवशेष मिलते हैं। सम्भवतः हड़प्पावासियों ने गेंहू, जौ, कपास उपजाने की तकनीक मेहरगढ़ के पूर्वजों से ली होगी। यही कारण है कि मेहरगढ़ को सैन्धव सभ्यता का अग्रगामी स्थल कहा जाता है।
बुर्जहोम –
- कश्मीर में खोजा गया प्रथम नवपाषाणिक स्थल बुर्जहोम है।
- यहाँ से गड्ढाघर तथा मालिक के साथ कुत्ते दफनाने का साक्ष्य मिलता है।
- लाल और गेरूए रंग से लेपित मानव कंकालों के साक्ष्य मिले हैं। यहाँ घरों के अन्दर से ही अण्डाकार शवाधान मिले हैं।
- यहाँ द्वितीयक शवाधान की भी परम्परा थी।
- आवासीय गड्ढों में सीढ़ियाँ भी बनी थीं
- पत्थर की दो शिलाओं पर एक महिला द्वारा धनुष-बाण से हिरण के आखेट का चित्रांकन मिलता है।
- पशु समाधि तथा पशुओं के स्वतन्त्र शवाधान मिलना बुर्जहोम की विशेषता है।
- एक विकसित अस्थि उद्योग (Bone tools industry) था।
- मानव मस्तिष्क पर शल्य चिकित्सा किये जाने का साक्ष्य यहाँ से मिलता है।
गुफ्कराल –
- गुफ्कराल से दो-कक्षीय आवासीय गड्ढों की प्राप्ति होती है।
- यहाँ से चूना मिला फर्श, मिट्टी की दीवार मिली है इससे यह सिद्ध होता है कि लोग आवासीय गड्ढों से बाहर आकर खुले मैदान में रहने लगे थे।
- यहाँ से प्राप्त हड्डी की सुइयों से पता चलता है कि लोग वस्त्र सिलाई का कार्य करते थे।
- यहाँ से तांबे की हेयरपिन मिलती है, ऐसी हेयरपिन हड़प्पाई स्थल चन्हूदड़ों से भी मिली है।
- गुफ्कराल से भारी मात्रा में जली हुई लकड़ियों की प्राप्ति हुई है जो व्यापक अग्निकाण्ड की सूचना देती है।
कोल्डिहवा –
बेलन नदी के तट पर इलाहाबाद में स्थित
कोल्डिहवा की एक विशेषता डोरी छाप मृदभाण्डों का मिलना है।
यहाँ से धान की खेती किये जाने का प्रमाण मिलता है।
महगढ़ –
महगढ़ में घरों का निर्माण एक सीधी पंक्ति में न करके वलयाकार (ring shaped) ढंग से करते थे।
यहाँ से पशुओं का आयताकार बाड़ा के साक्ष्य मिले हैं।
चिरांद –
बिहार के सारण जिले में चार नदियों ( गंगा, सोन,गंडक एवं घाघरा) के संगम पर स्थित था।
चिरांद की नवपाषाणिक संस्कृति से ही भारी मात्रा में विविध प्रकार के अस्थि उपकरण मिले थे।
चिरांद को सार्वजनिक भोजन बनाने का केन्द्र माना गया है क्योंकि यहाँ से बहुतायत में घरों से विशेष प्रकार के चूल्हों के समूहों की प्राप्ति हुई है।
चिरांद से अग्निकाण्ड का साक्ष्य मिलता है क्योंकि यहाँ के घरों के जलने का प्रमाण मिला है।
मिट्टी की चूड़ियां तो मिली हैं साथ ही हाथी दाँत की बनी चूड़ी भी मिली है।
पूर्वोत्तर भारत –
1867 ई० में जॉन लुब्बाक ने असम की ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में नवपाषाणिक उपकरणों की खोज की।
महत्वपूर्ण है कि झूम कृषि की प्रथा यहाँ पर नवपाषाण काल से ही प्रचलित है।
दक्षिण भारत –
दक्षिण भारत में नवपाषाण काल की उगाई गई पहली फसल मिलेट (रागी) थी
आन्ध्र प्रदेश के उत्तनूर तथा पलवाय तथा कर्नाटक के कुपगल, पिकलीहल, बुदिहाल एवं कोडेकल से राख के टीले मिलते हैं।
टी० जे० न्यूबोल्ड द्वारा कुपगल में सर्वप्रथम राख के टीले उत्खनित किये गये परन्तु सर्वप्रथम राबर्ट ब्रुश फुट ने ही दक्षिण भारत में कई स्थानों पर स्थित राख के टीलों को नवपाषाणिक बताया।
दक्षिण भारत के नवपाषाणिक संस्कृति में शवाधान मकान के अन्दर फर्श के नीचे या मकान के समीप किया जाता था परन्तु नागार्जुनीकोण्डा में आवास क्षेत्र से बाहर कब्रिस्तान मिला है। ब्रह्मगिरी में व्यस्कों को लिटाकर और बच्चों को जार में डालकर दफनाया जाता था। दक्षिण भारत में विस्तीर्ण शवाधान, आंशिक शवाधान तथा अस्थिकलश, ये तीन प्रकार की अन्त्येष्टि- संस्कार की परम्पराएँ प्रचलित थीं।
नवपाषाण युगीन जीवन की विशेषता –
नवपाषाण काल में ही कृषि, पशुपालन एवं चाक पर निर्मित मिट्टी के बर्तनों का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
कांस्यकाल की सभ्यताओं के उदय तथा विकास के लिए उपयुक्त पृष्ठभूमि का निर्माण नवपाषाण काल की अर्थव्यवस्था ने ही किया। इन्हीं विशेषताओं को देखते हुए गार्डन चाइल्ड ने नवपाषाणिक क्रान्ति कहा।
कृषि, पशुपालन एवं मिट्टी के बर्तन के प्रयोग ने लोगों के जीवन में स्थायित्व आया।
जहाँ मानव पहले उपभोक्ता था अब से उत्पादक की भूमिका में आ गया।
सुनिश्चित खाद्यान्न व्यवस्था ने जनसंख्या में वृद्धि लाई, लेकिन अभी भी उतना उत्पादन अधिशेष नहीं निकल पा रहा था कि इस काल के लोग किसी नगरीय क्रान्ति को जन्म दे पाते। वस्तुतः उनकी अर्थव्यवस्था निर्वाह ही बनीं रही। वे पहाड़ी इलाकों से दूर जाकर बस्तियाँ नहीं बना सकते थे, क्योंकि वे पूर्णतः पत्थर के औजार पर ही निर्भर थे।
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