गियासुद्दीन तुगलक की गृह-नीति
गियासुद्दीन तुगलक सन् 1320 ई. में दिल्ली का सुल्तान बना। सुल्तान बनने के बाद उसका प्रथम कार्य अशान्ति और अराजकता के स्थान पर शान्ति और सुव्यवस्था स्थापित करना था। इसके लिए उसने अमीरों और जनता को सन्तुष्ट करने का कार्य किया तथा प्रशासन को पुनर्गठित किया। उसने उच्च पदों पर अपने समर्थकों तथा सम्बन्धियों को नियुक्त किया। उसने अलाई अमीरों को उनके पदों पर पुनः नियुक्त कर दिया जिससे इन अमीरों का समर्थन उसे प्राप्त हुआ। उसने उन लोगों की जमीनें वापस कर दीं जो अलाउद्दीन के काल में जब्त कर ली गई थी जिससे उसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई।
Ghiyasuddin Tughlaq tomb |
रिक्त राजकोष
गियासुद्दीन तुगलक ने रिक्त राजकोष की समस्या को हल करने का भी प्रयास किया। खिलजी वंश के अन्तिम सुल्तान खुसरोशाह ने जिन लोगों को धन दिया था उनसे कहा गया कि वे उस धन को राजकोष में जमा करा दें। अधिकांश लोगों ने धन वापस कर दिया लेकिन शेख निजामुद्दीन औलिया ने पाँच लाख टंक, जो खुसरोशाह ने दिए थे, लौटाने में असमर्थता व्यक्त की क्योंकि शेख ने उस धन को निर्धन जरूरतमन्द लोगों में बाँट दिया था और वह अब वापस नहीं किया जा सकता था। इससे सुल्तान रुष्ट हो गया, किन्तु वह शेख के विरुद्ध तुरन्त कोई कार्यवाही नहीं कर पाया क्योंकि शेख एक धार्मिक व्यक्ति था और जनता में उसका अत्यधिक सम्मान था।
प्रशासन की कार्य-कुशलता
प्रशासन में भ्रष्टाचार और गबन न हो, इसके लिए उसने अलाउद्दीन के समान अच्छा वेतन दिया। उन्हें संतुष्ट करने के लिए सुल्तान ने उनको पदोन्नति प्रदान की और योग्य कर्मचारियों को पुरस्कार देने की व्यवस्था भी की। उसने ऐसे कर्मचारियों को हटा दिया जो अयोग्य या भ्रष्ट थे।
धार्मिक नीति
गियासुद्दीन तुगलक इस्लाम के रक्षक के रूप में सिंहासन पर बैठा था। अतः उसके दरबार में अतिशय सादगी तथा गम्भीरता थी। दरबार में गायकों तथा नर्तकियों का प्रवेश निषेध कर दिया गया था। दरबार में मुस्लिम विद्वानों का आदर होता था और सुल्तान उनसे परामर्श करता था। इस प्रकार अलाउद्दीन की नीति, जिसके द्वारा उसने उलेमा को प्रशासन में हस्तक्षेप करने से रोक दिया था, समाप्त कर दी गई। जहाँ तक हिन्दुओं की बात थी, सुल्तान ने परम्परागत नीति का पालन किया। लेकिन उसने कुछ प्रतिबन्ध शिथिल कर दिए जिन्हें अलाउद्दीन ने लगाया था। गियासुद्दीन की नीति थी कि कृषि, व्यापार, उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए। इन क्षेत्रों में अधिकांश हिन्दू थे। अतः सुल्तान की नीति थी कि उन पर करो का भार उतना ही रखा जाए जिससे उन्हें अपने कार्यों को करने का प्रोत्साहन मिलता रहे। यद्यपि गियासुद्दीन तुगलक ने मुस्लिम समाज पर इस्लामिक नियमों को लागू करने का प्रयास किया तथापि उसने हिन्दुओं के मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया।
आर्थिक नीति
गियासुद्दीन तुगलक के राज्यारोहण के समय आर्थिक संकट अत्यधिक गम्भीर था। अलाउद्दीन के काल की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो चुकी थी और चार वर्षों के अन्तराल में आर्थिक पुनर्निर्माण का कोई प्रयास नहीं किया गया था। अतः इन परिस्थितियों में गियासुद्दीन तुगलक को आर्थिक पुनर्निर्माण का कार्य करना पड़ा।
अक्ता प्रणाली
गियासुद्दीन तुगलक ने अक्ता प्रणाली पुनः स्थापित की और सैनिक अधिकारियों तथ सैनिकों को वेतन के बदले भूमि प्रदान की और उन्हें अपने अक्तों से राजस्व संग्रह के मामले में छूट दी। यह भी सम्भव है कि सुल्तान नकद वेतन देने की स्थिति में नहीं था, अतः उसने अक्ता प्रणाली की बाध्यता को स्वीकार किया।
कृषि आपदा नीति
गियासुद्दीन तुगलक ने अकाल, अनावृष्टि की स्थितियों में राजस्व की छूट देने की नीति अपनाई। अभी तक किसी सुल्तान ने कृषि आपदा की नीति नहीं अपनाई थी। इससे किसानों को राहत मिली और साथ ही बकाया की समस्या भी हल हो गई। इससे सुल्तान की लोकप्रियता में भी वृद्धि हुई।
राजस्व दर में क्रमिक वृद्धि
सुल्तान भू-राजस्व में वृद्धि करना चाहता था जिससे राज्य की आय में वृद्धि हो। लेकिन वह कृषकों तथा अक्तादारों के हितों की रक्षा भी करना चाहता था। अतः उसने दिवान को आज्ञा दी कि किसी अक्ता के राजस्व में एक बार में 1/10 या 1/11 से अधिक वृद्धि न की जाए। लगान की परम्परागत दर 1/5 थी और गियासुद्दीन के काल में भी राजस्व दर 1/5 थी और गियासुद्दीन ने इस दर को स्वीकार किया था।
नस्क प्रणाली लागू करना
गियासुद्दीन ने भूमि की पैमाइश कराना तथा उसके आधार पर लगान निश्चित करने की नीति त्याग दी क्योंकि पैमाइश का कार्य सन्तोषजनक न होने के कारण किसानों को हानि हो रही थी। उसने पूर्व की नस्क या बटाई प्रथा पुनः लागू की क्योंकि यह प्रथा कृषकों के लिए लाभकारी थी। यद्यपि यह प्रतिगामी कार्य था लेकिन परिस्थितियों में आवश्यक हो गया था।
राजस्व अधिकारियों के लिए रियायत
गियासुद्दीन ने इन राजस्व अधिकारियों- खुत, चौधरी और मुकद्दम को उनके परम्परागत अधिकार प्रदान किए और उन्हें भूमि-कर तथा अन्य करों से मुक्त कर दिया। लेकिन सुल्तान ने इस बात का ध्यान रखा कि वे कृषकों पर अत्याचार न कर सकें और इतने धनी न हो जाएँ कि विद्रोही गतिविधियाँ कर सकें। वे कृषकों से केवल वही कर ले सकते थे जिन्हें सुल्तान ने स्वीकृत किया था।
मालगुजारी संग्रह
सुल्तान ने मालगुजारी संग्रह में ठेकेदारी प्रथा को बन्द करने का प्रयास किया लेकिन वह सफल न हो सका। गियासुद्दीन भू-राजस्व के बकाया मामलों में आमिलों को यातना या दण्ड देने का विरोधी था। इस मामले में भी उसने उदार नीति अपनायी। उसने आमिलों को छूट दी कि अगर बकाया की रकम 5% से 10% तक हो तो उन्हें किसी प्रकार का दण्ड नहीं दिया जाएगा। मालगुजारी संग्रह में एक बड़ी समस्या राज्य के भाग के निश्चित करने के बारे में थी। इस समस्या को हल करने के लिए सुल्तान ने आज्ञा दी कि राज्य का भाग फासिल या वास्तविक वसूली पर निश्चित किया जाए। इससे कृषकों तथा राजस्व अधिकारियों को अत्यन्त राहत मिली।
कृषि विस्तार
सुल्तान का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कृषि का विस्तार करना था। राजस्व आय की वृद्धि के लिए उसने कृषि पर कर भार में वृद्धि करना उचित नहीं समझा बल्कि आय में वृद्धि के लिए उसने कृषि के विस्तार की नीति अपनायी। इस नीति के अन्तर्गत कृषकों को कृषि विस्तार के लिए प्रोत्साहित किया गया। बंजर जमीन को कृषि के अन्तर्गत लाया गया।अक्तादारों को आदेश दिया गया कि इन आदेशों को वे सावधानीपूर्वक पालन करें। इस नीति के फलस्वरुप अनेक उजड़े हुए गाँव फिर बस गए। सुल्तान ने सिंचाई के लिए नहरें खुदवायीं और अनेक बगीचे लगवाए।
यातायात में सुधार
गियासुद्दीन तुगलक ने राज्यारोहण के बाद यातायात तथा संचार साधनों को व्यवस्थित करने पर विशेष ध्यान दिया। डाक ले जाने के लिए घुड़सवार और धावकों दोनों का प्रयोग किया जाता था। घुड़सवार डाक ले जाने वालों के लिए सात या आठ मील पर घोड़ों की व्यवस्था की गई। धावकों को 2,3 मील के अन्तर से नियुक्त किया गया। इस प्रकार सुल्तान साम्राज्य के सुदूर भागों से भी निरन्तर सम्पर्क में रहता था।
सेना, पुलिस व न्याय व्यवस्था
सुल्तान को ज्ञात था कि साम्राज्य की व्यवस्था तथा सुरक्षा के लिए कुशल सैनिक तन्त्र आवश्यक है। वह स्वयं एक योग्य सेनापति था, अतः उसने इस बात का ध्यान रखा कि सैनिकों को सन्तुष्ट रखा जाए लेकिन उसने अलाउद्दीन की दाग और हुलिया प्रणाली को कठोरता से लागू किया। वह स्वयं सेना का निरीक्षण करता था तथा योग्य अधिकारियों को नियुक्त करता था। इससे सेना की अनुशासनहीनता दूर हो गई। सेना की कुशलता में वृद्धि हुई और सुल्तान सुदूर दक्षिण में सैनिक अभियान करने में सफल रहा।
धन्यवाद।
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