सिकन्दर का भारत पर आक्रमण

सिकन्दर मकदूनिया का राजा और यूनानी दार्शनिक अरस्तू का शिष्य था। 329 ई. पू. में सिकन्दर अफगानिस्तान में प्रविष्ट हुआ। वहाँ उसने अलेक्जेंड्रिया नामक एक नगर बसाया जिसे अब कन्धार कहा जाता है वहाँ से वह हिंदूकुश पर्वत के पार वाह्लिक देश जीतकर 327 ई. पू. में इस पार आया। अपनी यवन सेना के साथ भारत अभियान को निकला। रास्ते में विजित प्रदेशों को सिकन्दर ने शशि गुप्त को सौंप दिया, जो उसके क्षत्रप के रूप में उन पर शासन करने लगा। तक्षशिला पहुँचने पर राजा आम्भी ने सिकन्दर का भव्य स्वागत किया।

Sikandra invasion on India
Sikandra

पोरस से युद्ध (326 ई.पू.) -

सिकन्दर झेलम के किनारे पहुँचा जहाँ राजा पोरस नदी के पार एक शक्तिशाली सेना के साथ युद्ध के लिए तैयार था। सिकन्दर के लिए नदी पार करना कठिन हो गया। दोनों सेनाएँ नदी के दोनों पार आमने-सामने डटी रहीं। अंततः रात के अंधेरे में जब आँधी और वर्षा बहुत तेज थी, सिकन्दर ने नदी के चढ़ाव की ओर बढ़कर तट के एक कोण में चुने हुए ग्यारह हजार योद्धाओं के साथ झेलम पार कर ली । पोरस ने खबर पाते ही अपने पुत्र को दो हजार योद्धाओं और 120 रथों के साथ शत्रु की ओर भेजा। सिकन्दर ने इस सेना को कुचल दिया। पोरस का पुत्र इस युद्ध में मारा गया। पोरस सिकन्दर का सामना करने के लिए पचास हजार पैदल, तीन हजार घुड़सवार, एक हजार रथ और 200 हाथियों की सेना लेकर बढ़ा। अद्भुत शौर्य से लड़ते हुए भारतीयों ने सिकन्दर की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया,  किन्तु अन्त में यूनानी फौजों ने नदी पार कर ली और युद्ध में शामिल हो गई। युद्ध के दिन घनघोर वर्षा ने पोरस की शक्तिशाली सेना को असहाय बना दिया और उसकी पराजय हुई। एक बन्दी के रूप में उसे सिकन्दर के सामने उपस्थित किया गया। सिकन्दर ने, जो उसके शौर्य से बड़ा प्रभावित हुआ था, उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए ? पोरस ने कहा, "जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।" सिकन्दर ने पोरस को अपना मित्र बना लिया तथा उसका राज्य लौटा दिया।

सिकन्दर की अन्य विजयें -

सिकन्दर ने चिनाव पार करके पोरस के भतीजे का राज्य जीता। 326 ई. पू. वर्षान्त में सिकन्दर ने रावी नदी को पार कर अधृष्ट जाति के मुख्य नगर प्रिम्प्राभा को जीत लिया, फिर कशट जाति के मुख्य नगर साँगला पर आक्रमण कर कठों का प्रदेश जीत लिया।

यवन सेना का आगे बढ़ने से इंकार करना -

व्यास नदी के तट पर पहुँचने पर सिकन्दर की विजयी सेना ने हथियार डाल दिए और आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। यश अथवा लूट का कोई लाभ यवन सेना को आगे न खींच सका। यवन सेना के आगे बढ़ने से इनकार करने के कई कारण थे - यवन सैनिक युद्ध से थक चुके थे और घर की याद से दुखी थे। रण कौशल में भारतीय एशिया की अन्य सभी जातियों से बढ़े चढ़े सिद्ध हुए थे। पोरस की वीरता तथा कठ जाति के मोर्चे से वे आतंकित हो गए थे। व्यास नदी के आगे पाटलिपुत्र की संगठित शक्ति और सेना का उन्हें पता लग चुका था। इन सब कारणों ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। विवश हो सिकन्दर ने अपनी सेना को घर लौटने की अनुमति दे दी। भारत विजय का सिकन्दर का सपना टूट गया।

सिकन्दर की वापसी -

 326 ई. पू. में सिकन्दर ने अपनी सेना को झेलम होकर वापस लौटने का आदेश दिया। जहाँ  उसने अपने जीते हुए पंजाबी प्रदेशों की शासन व्यवस्था की। झेलम और व्यास के बीच का प्रदेश पोरस को सौंपा गया और सिन्धु-झेलम के दोआब को तक्षशिला के आम्भी को दे दिया गया। सिन्धु के पश्चिम का प्रदेश फिलिप नामक यवन क्षत्रप के अधीन किया गया तथा हराये हुए नगरों में भी काफी संख्या में यवन सैनिक नियत कर दिए। वापसी यात्रा में सिकन्दर की मालव और क्षुद्रक नामक पराक्रमी क्षत्रिय जातियों से मुठभेड़ हुई जो रावी के निचले भागों में रहती थी। मालवों ने और बाद में सहायता के लिए आए क्षुद्रकों ने सिकन्दर से डटकर लोहा लिया, किन्तु उन्हें पराजित होना पड़ा। मालव- क्षुद्रकों का प्रदेश फिलिप के अधिकार क्षेत्र में मिला दिया गया। सिकन्दर ने स्थल मार्ग से आगे बढ़ते हुए छोटी मोटी विजयों के बाद सिन्धु के निचले प्रदेशों को जीता। यहाँ उसने पाइथन नामक यवन को अपना क्षत्रप नियुक्त किया। सिकन्दर तीन मार्गो से स्वदेश लौटा। एक भाग नियार्कस के नेतृत्व में सामुद्रिक मार्ग से, दूसरे भाग ने स्थल मार्ग से क्रेटरस के नेतृत्व में बोलन के दर्रे से, तीसरा भाग सिकन्दर के नेतृत्व में मकरान के रेगिस्तान से रवाना हुआ। इस मार्ग में भयंकर कष्ट सहन करता हुआ वह बेबीलोन पहुँचा जहाँ ई. पू. 323 में उसकी मृत्यु हो गई।

सिकन्दर के आक्रमण का प्रभाव -

राजनीतिक प्रभाव -

सिकन्दर के आक्रमण से उत्तरी पश्चिमी भारत की छोटी छोटी रियासतें समाप्त हो गई, जिससे भारतीय एकता को काफी बल मिला। पश्चिमोत्तर भारत की राजनीतिक और सैनिक दुर्बलताएं स्पष्ट हो गई। फलतः भारतीयों ने यह पाठ सीखा कि उनका सैन्य संगठन और रण कौशल अपर्याप्त तथा दोषपूर्ण है और सुरक्षित तथा अनुशासित सेना थोड़ी होने पर भी विजय प्राप्त कर सकती है। एशिया में यवनों की बस्तियां हो गईं। इनसे भारतीयों का सांस्कृतिक आदान-प्रदान होने लगा।

ऐतिहासिक प्रभाव -

सिकन्दर के आक्रमण की तिथि ने प्राचीन भारत के तिथि क्रम की अनेक गुत्थियों को सुलझा दिया तथा क्रमागत इतिहास को लिखने में बड़ी सहायता पहुंचाई।

व्यापार एवं यातायात पर प्रभाव -

सिकन्दर के आक्रमण के फलस्वरुप पूर्व और पश्चिम के बीच समुद्र और स्थल के मार्गों के खुल जाने से पूर्व और पश्चिम में व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हो गए।

सांस्कृतिक प्रभाव -

यूनानी दर्शन, ज्योतिष, कला की गान्धार शैली तथा खरोष्ठी लिपि का प्रभाव भारतीय साहित्य, कला और ज्योतिष पर पड़ा। भारत के पुनर्जन्मवाद, आत्मा आदि के सिद्धांतों ने यूनानी दर्शन को प्रभावित किया। भवनों के आकार-प्रकार, उनकी सजावट, सुन्दर कलात्मक लेखों और चिह्नों से अंकित नियमित ढंग की मुद्राओं पर यूनानी प्रभाव परिलक्षित हुआ। निकट सम्पर्क हो जाने से दोनों जातियों में विवाह सम्बन्ध स्थापित हुए जिनसे  दोनों में एकता का समावेश हुआ।
धन्यवाद।

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