दास वंश के पतन के कारण 

दास वंश ने 1206 ईस्वी से 1290 ईस्वी तक शासन किया। पिच्चासी वर्ष के शासनकाल में कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन काल चार वर्ष, इल्तुतमिश का पच्चीस वर्ष तथा बलबन का चालीस वर्ष रहा।  तीनों सुल्तान योग्य सेनापति थे और उन्होंने सैनिक शक्ति के द्वारा शासन स्थापित किया और उसे सुरक्षित बनाया। 1290 ईस्वी में दास वंश का पतन हुआ। इसके कारण निम्नलिखित थे। 

दास वंश के पतन के कारण
slave dynasty

अयोग्य उत्तराधिकारी -

बलबन ने सुल्तान की निरंकुश सत्ता स्थापित की थी। योग्य सुल्तान निरंकुश सत्ता का प्रयोग कुशलतापूर्वक करता था जिससे राज्य सुरक्षित और संगठित रहता था। दुर्भाग्य से बलबन का उत्तराधिकारी कैकुवाद अयोग्य व्यक्ति था। अतः दास वंश का पतन अवश्यम्भावी हो गया। 

तुर्क अमीरों की दुर्बलता -

सल्तनत को शक्तिशाली बनाने वाले तुर्क गुलामों का एक वर्ग था। इस वर्ग में महत्वाकांक्षा का दोष था लेकिन यह भी एक तथ्य है कि संकट के समय इस वर्ग ने योग्य और शक्तिशाली प्रशासक दिये, जैसे इल्तुतमिश और बलबन, जिन्होंने सल्तनत की रक्षा की। बलबन ने इस वर्ग को नष्ट करके सल्तनत को हानि पहुंचाई। बलबन की मृत्यु के बाद कोई ऐसा योग्य तुर्क अमीर नहीं था जो इस संकट में राजवंश की रक्षा करता।  

तुर्क प्रजातिवाद की नीति -

बलबन की तुर्क प्रजातिवाद की नीति से भी दास वंश का पतन हुआ। अब भारत आने वाले तुर्कों की संख्या कम हो गई थी। इसके विपरीत, अफ़गानों तथा भारतीय मुसलमानों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई थी। बलबन को यह तथ्य स्वीकार करके इन वर्गों का समर्थन लेना था जिससे दास वंश को शक्ति प्राप्त होती लेकिन बलबन ने ऐसा नहीं किया। 

उत्तराधिकारी नियम का अभाव - 

उत्तराधिकारी का निश्चित नियम न होने से सुल्तान की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी की समस्या उत्पन्न हो जाती थी। इससे अराजकता फैलती थी और संघर्ष होता था।     

तुर्क अमीरों की महत्वाकांक्षाएँ - 

तुर्क गुलामों की महत्वाकांक्षाओं ने सल्तनत के लिए कई बार संकट उत्पन्न किया। जब भी इन अमीरों को अवसर प्राप्त होता, वे सत्ता पर अधिकार करने का प्रयत्न करते थे। बलबन की मृत्यु के बाद तुर्क अमीरों के षडयंत्र के कारण ही दास वंश का पतन हुआ। 

विदेशी शासन -

गुलाम वंश के शासक विदेशी थे और उनका राज्य एक सैनिक राज्य था। बहुसंख्यक हिन्दू जनता उनसे घृणा करती थी और सुल्तान हिन्दुओं को काफिर समझकर उन पर धार्मिक अत्याचार करते थे। इस प्रकार का संघर्ष दास वंश के पूरे शासनकाल में होता रहा। जब भी हिन्दुओं को अवसर प्राप्त होता, वे स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयास करते थे और उन्होंने मुस्लिम शासन को कभी स्वीकार नहीं किया। 

मंगोलों के आक्रमण -

मंगोलों ने सिन्ध के पश्चिमी प्रदेश पर अधिकार कर लिया था और वहाँ से पंजाब पर आक्रमण करते रहते थे। मंगोल शक्तिशाली थे। अतः दास वंश के सुल्तानों को उत्तर-पश्चिम सीमा की रक्षा के लिए बड़ी सेना सीमा पर रखनी पड़ती थी।   

सुल्तानों की भूलें -

दास वंश के पतन का कारण सुल्तानों की भूलें भी थीं। इल्तुतमिश ने चालीस तुर्क गुलामों का विशेष सत्ता सम्पन्न वर्ग बनाया जिसने अंततः उसके वंश का नाश कर दिया। रजिया ने गैर-तुर्क दल का बनाने का प्रयास किया जिससे तुर्क अमीरों की शक्ति को संतुलित किया जा सके। अगर उसने भारतीय मुसलमानों को इसमें सम्मिलित किया होता तो उसकी सफलता की आशा हो सकती थी। बलबन ने स्वेच्छाचारी शासन का ऐसा अतिरूप स्थापित किया जिसने तुर्क अमीरों को अत्यधिक दुर्बल कर दिया। वे उदीयमान खिलजी शक्ति का सामना करने में पूर्ण रुप से असमर्थ सिद्ध हुए।

धन्यवाद।

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