फ्रेडरिक द्वितीय - प्रशा

फ्रेडरिक द्वितीय या फ्रेडरिक महान का जन्म 1712 ई. में हुआ था। 1733 ई. में उसका विवाह एलिजाबेथ क्रिस्तिना से उसकी इच्छा के विरुद्ध हुआ। 1740 ई. में पिता की मृत्यु के पश्चात वह प्रशा के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ।

Frederick the great - Prussia
Frederick the great - Prussia

फ्रेडरिक महान की गृहनीति 

फ्रेडरिक महान रूसो, वाल्टेयर, माण्टेस्क्यू एवं दिदरों के विचारों से प्रभावित प्रबुद्ध निरंकुश शासक था। फ्रेडरिक महान ने गृहनीति में सुधार के लिए निम्नलिखित कार्य किए –

प्रबुद्ध निरंकुशता की नीति –

वह प्रबुद्ध निरंकुश शासक था तथा प्रशा को सुव्यवस्थित देखना चाहता था। उसने अपने विचारों के अनुरूप ही अपने प्रशासन का संचालन किया और महत्वपूर्ण सुधार किये।

अर्थव्यवस्था में सुधार  -

फ्रेडरिक द्वितीय ने सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति के पश्चात प्रशा की अर्थव्यवस्था को सुसंगठित स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया। कृषि व्यवस्था में सुधार किया गया, नहरों व सड़कों का निर्माण किया गया, पशुओं की नस्लों में सुधार किया गया। राजकीय आय का निरीक्षण किया गया। फिजूलखर्ची पर प्रतिबन्ध लगाया गया।

व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग धन्धों का विकास –

फ्रेडरिक द्वितीय ने व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योग धन्धों के विकास की ओर ध्यान दिया। व्यापार में संरक्षण की नीति से प्रशा आर्थिक दृष्टि से समृद्ध बन गया। रेशम उद्योग को प्रोत्साहित किया गया।

बौद्धिक जागरण –

फ्रेडरिक महान ने कला, दर्शन, साहित्य एवं शिक्षा के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। उसने प्रशा में प्राइमरी स्कूलों की स्थापना की। उच्च शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। उसने स्वयं प्राकृतिक विज्ञान, कला , साहित्य एवं दर्शन पर लिखे गए फ्रांसीसी ग्रन्थों का अध्ययन किया।

धार्मिक नीति –

उसने धार्मिक मामलों में कठोर नीति का पालन नहीं किया। प्रशा में यहूदियों को न तो पूर्ण अधिकार प्राप्त थे और न ही पूर्ण स्वतन्त्रता। उन्हें प्रशा में बसने के लिए पहले की तरह आज्ञा प्राप्त करनी होती थी।

सेना का संगठन –

फ्रेडरिक द्वितीय ने कुशल सेना का संगठन किया। उसके सैनिकों की संख्या 90,000 से बढ़कर 2 लाख तक पहुंच गई थी। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तो सम्पूर्ण यूरोप के लिए उसकी सेना प्रतीक बन गयी।

न्यायिक सुधार –

फ्रेडरिक द्वितीय ने राज्य में प्रचलित कानूनों और विधियों को सरल बनाकर लागू किया। सम्पूर्ण प्रजा के लिए एक जैसी न्याय व्यवस्था लागू की। फौजदारी मुकदमों में अपराध स्वीकृति के लिए यन्त्रणा देने वाली प्रथा को समाप्त कर दिया। उसने अपने प्रयत्नों द्वारा प्रशा को न्यायिक राज्य बना दिया।

फ्रेडरिक महान की विदेश नीति 

आस्ट्रिया के उत्तराधिकार की समस्या –

फ्रेडरिक महान ने आस्ट्रिया के उत्तराधिकार की समस्या में भाग लेकर मेरिया थिरिजा के उत्तराधिकार को चुनौती दी। उसने फ्रांस, बवेरिया, सेवाय, प्रशा, स्पेन और  सैक्सनी को मिलाकर तैयार गुट के साथ मेरिया थिरिजा के उत्तराधिकार को अमान्य कर दिया किन्तु अन्ततः 1748 ई. की एला-शैपल की सन्धि के द्वारा उसके उत्तराधिकार को मान्यता देनी पड़ी।

सप्तवर्षीय युद्ध –

1748 ई. में साइलेशिया पर प्रशा के अधिकार को मान्यता देने के पश्चात मेरिया थिरिजा पुनः साइलेशिया को प्राप्त करने के लिए लालायित थी। यूरोप प्रमुख रूप से दो खेमों में बँट गया और यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध आरम्भ हो गया। 15 फरवरी, 1763 ई. में हुई ह्यूबर्टस की सन्धि के द्वारा साइलेशिया पर प्रशा का अधिकार ही स्वीकार किया गया।

पोलैण्ड का प्रथम विभाजन –

फ्रेडरिक महान ने भी रूस और आस्ट्रिया के साथ मिलकर पोलैण्ड के विभाजन में हिस्सा लिया और डान्जिंग व थार्न के प्रदेशों को छोड़कर वह सम्पूर्ण पश्चिमी पोलैण्ड प्राप्त करने में सफल रहा।

यदि हम ऐतिहासिक दृष्टि से समकालीन यूरोप को अपनी दृष्टि में रखते हुए फ्रेडरिक द्वितीय का मूल्यांकन करें तो हमें मानना पड़ेगा कि यद्यपि उसके गृहनीति के क्षेत्र में किये गये सुधार स्थायी सिद्ध नहीं हुए तथापि वह विदेश नीति के उद्देश्यों में पूर्ण सफल रहा। उसने यूरोप में प्रशा की प्रतिष्ठा को स्थापित किया जिसके लिए प्रशा सदैव उसका ऋणी रहेगा।

धन्यवाद।


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