रजिया (1236 ई.- 1240 ई.)
रजिया इल्तुतमिश की पुत्री थी। इल्तुतमिश ने उसे अन्य राजकुमारों के समान ही शिक्षा-दीक्षा दी। विद्योपार्जन के अतिरिक्त रजिया को घोड़े की सवारी करना, तीर-तलवार चलाना, भाले का उपयोग करना, युद्ध की कला, सैन्य संचालन आदि विभिन्न प्रकार के सैनिक प्रशिक्षण भी मिले। जब इल्तुतमिश के बड़े पुत्र नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु हो गई तो इल्तुतमिश ने अनुभव किया कि उसके अन्य पुत्र अयोग्य, दुर्बल और विलासी हैं। इल्तुतमिश को अपने पुत्रों की अपेक्षा रजिया की योग्यता पर अधिक विश्वास था।
Razia Sultana |
रजिया की वीरता, योग्यता, कार्य-पटुता, बुद्धिमानी और दुरदर्शिता से प्रभावित होकर इल्तुतमिश ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय कर लिया। अनेक अमीरों ने सुल्तान के इस निर्णय का विरोध किया किन्तु इल्तुतमिश के प्रभाव और व्यक्तित्व के कारण अमीरों को सुल्तान के निर्णय को स्वीकार करना पड़ा। इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद अमीरों ने रजिया के स्थान पर इल्तुतमिश के पुत्र रूकुनुद्दीन फिरोज शाह को सिंहासन पर बैठा दिया। फिरोज विलासी और अयोग्य शासक था। अतः राज्य की सम्पूर्ण सत्ता उसकी माँ शाह तुर्कान के हाथों में केन्द्रित हो गई। उसने हरम की बेगमों पर अत्याचार किये और रजिया को बंदीगृह में डाल दिया। जब फिरोज विद्रोही अमीरों का दमन करने के लिए गया, रजिया बंदीगृह से निकल जाने में सफल हो गई। उसने फिरोज और शाह तुर्कान के विरुद्ध असंतोष का लाभ उठाया और दिल्ली के निवासियों, अधिकारियों तथा सैनिकों की सहायता से रजिया ने सिंहासन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की। फिरोज और शाह तुर्कान को बंदी बना लिया गया और बाद में उसका वध कर दिया गया।
रजिया के राज्यारोहण का महत्व-
इस्लाम की परम्परा की उपेक्षा करते हुए एक महिला को सुल्तान बनाया गया। यह एक महत्वपूर्ण प्रयोग था। रजिया का समर्थन दिल्ली के नागरिकों तथा अधिकारियों का कार्य था। उन्होंने पहली बार उत्तराधिकार के मामले में निर्णय किया। इससे जनमत का महत्व भी प्रकट होता है। रजिया के राज्यारोहण का आधार इल्तुतमिश का चयन था जो सही प्रमाणित हुआ। रजिया के राज्यारोहण के मामले में प्रान्तीय सूबेदारों की राय नहीं ली गई थी, जैसा कि पहले फिरोज के मामले में हुआ था। इससे प्रान्तीय सूबेदार असन्तुष्ट हो गये और सुल्तान तथा अमीरों के मध्य सत्ता संघर्ष आरम्भ हुआ।
रजिया की कठिनाइयाँ -
राज्यारोहण के साथ ही रजिया को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सबसे पहले तुर्क अमीरों की समस्या थी। उनकी सेनाएं राजधानी दिल्ली की ओर बढ़ रही थी, उनका मूल उद्देश्य रुकनुद्दीन फिरोज को सिंहासन से हटाना था। यह उद्देश्य रजिया के राज्यारोहण से पूरा हो चुका था लेकिन फिर भी उन्होंने दिल्ली की ओर बढ़ना जारी रखा। इसका कारण यह था कि उन्होंने रजिया के राज्यारोहण को स्वीकार नही किया। रजिया को दिल्ली के कुछ उच्च अधिकारियों का समर्थन प्राप्त नहीं था। इनमें वजीर निजामुल-मुल्क जुनैदी प्रमुख था जो विद्रोही अमीरों से मिलकर षड़यंत्र कर रहे थे। राजपूत राज्यों ने भी इस स्थिरता से लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया था।
अमीरों के विद्रोह का दमन -
रजिया ने कूटनीति का सहारा लिया जिससे वह विद्रोही अमीरों में फूट डालने में सफल हो गई। उसने गुप्त रूप से मलिक सालारी और मलिक कबीर खान को अपने पक्ष में करके यह आश्वासन दिया कि वजीर जुनैदी, मलिक सैफूद्दीन कूची और मलिक जानी को बन्दी बनाया जाएगा। इसके बाद उसने इन गुप्त समझौते का प्रचार कर दिया। इससे मलिक सैफूद्दीन, मलिक जानी भयभीत होकर भाग गये लेकिन मलिक कबीर और मलिक सालारी ने उनका पीछा किया और मार डाला। वजीर भी भयभीत होकर भाग गया और सिरमूर की पहाड़ियों में मारा गया। इस सफलता से रजिया की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
प्रशासन का पुनर्गठन -
रजिया ने सत्ता को निरंकुश बनाने के लिए प्रशासन का पुनर्गठन किया। ख्वाजा मुहाजबुद्दीन को वजीर नियुक्त किया गया। मलिक हसन गोरी को सेनापति और कबीर खान को लाहौर की सूबेदारी का पद प्रदान किया गया। तुगरिल खान को बिहार और सैफुद्दीन को बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया। इस प्रकार केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तों पर रजिया का नियंत्रण स्थापित हो गया। एक अबीसीनियाई मलिक याकूत को अमीर-ए-आखूर के पद पर नियुक्त किया गया।
व्यक्तिगत जीवन में परिवर्तन-
सुल्तान पद की निरंकुश सत्ता स्थापित करने के लिए प्रशासनिक संगठन ही पर्याप्त नहीं था। इसके लिए आवश्यक था कि सुल्तान पद के गौरव में भी वृद्धि की जाए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए रजिया ने अपने जीवन में परिवर्तन किया। उसने पर्दा त्याग दिया और पुरुष वस्त्रों को धारण कर दरबार में बैठना आरम्भ किया।
मंगोल आक्रमण की आशंका-
1238 ई. में गजनी के ख्वारिज्मी सूबेदार ने रजिया से मंगोलों के विरुद्ध सहायता मांगी। रजिया ने उससे सहानुभूति प्रदर्शित की और आर्थिक सहायता भी दी लेकिन सैनिक सहायता देने से इन्कार कर दिया क्योंकि इससे मंगोलों को उसके साम्राज्य पर आक्रमण करने का बहाना मिल जाता। मंगोल इससे सन्तुष्ट हुए और उन्होंने सल्तनत की सीमाओं का सम्मान किया।
रणथम्भौर तथा ग्वालियर के विद्रोह-
दिल्ली की अस्थिर अवस्था के कारण राजपूतों ने रणथम्भौर दुर्ग पर अधिकार करने का प्रयास किया। रजिया ने किले की सुरक्षा के लिए सेना भेजी जिससे राजपूतों ने घेरा उठा लिया। ग्वालियर किले के मुस्लिम किलेदार ने भी विद्रोह करने का प्रयास किया लेकिन रजिया की सतर्कता के कारण उसे बन्दी बना लिया गया।
रजिया का पतन -
तुर्क अमीर रजिया के नियंत्रण को स्वीकार करने के लिए तैयार नही थे, अतः उन्होंने रजिया को सिंहासन से हटाने का निर्णय किया। योजना के अनुसार लाहौर के गवर्नर कबीर खाँ ने विद्रोह कर दिया। रजिया इतनी शीघ्रता से लाहौर गई और विद्रोही पर आक्रमण किया कि उसके सहयोगी नही आ सके। कबीर खाँ ने आत्मसमर्पण कर दिया। जैसे ही रजिया दिल्ली वापस आई, उसे भटिण्डा के किलेदार अल्तूनिया के विद्रोह का समाचार प्राप्त हुआ। रजिया भटिण्डा गई और किले का घेरा डाल दिया गया। घेरे के समय षड्यंत्रकारियों ने मलिक याकूत का वध कर दिया और रजिया को बन्दी बना लिया। योजना के अनुसार दिल्ली में इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहराम को गद्दी पर बिठा दिया गया।
रजिया की मृत्यु -
षड्यंत्र की सफलता के बाद दिल्ली में षड्यंत्रकारी तुर्क अमीरों में पदों का बँटवारा हुआ, उससे अल्तूनिया असंतुष्ट हो गया। अतः अपनी स्थिति को शक्तिशाली बनाने की दृष्टि से उसने रजिया से विवाह कर लिया। रजिया ने भी विवाह करना स्वीकार कर लिया क्योंकि वह शक्ति और स्वतन्त्रता चाहती थी। दोनों दिल्ली पर अधिकार करने के लिए चल पड़े लेकिन दिल्ली की सेना ने उन्हें पराजित कर दिया। वापस लौटते समय कैथल के पास कुछ डाकुओं ने उन दोनों को मार डाला।
धन्यवाद
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