रजिया के पतन के कारण 

रजिया अनेक गुणों से सम्पन्न एक सफल शासिका थी। किन्तु शासन संचालन में और अपने विरोधियों के दमन में वह असमर्थ रही। अतः शीघ्र ही उसका पतन हो गया।

Causes of Razia's downfall
Causes of Razia's downfall

तुर्क अमीरों का विरोध 

तुर्क अमीर आशा करते थे कि रजिया नाममात्र की शासिका होगी। ठीक इसके विपरीत रजिया ने विरोधी सामन्तों की शक्ति का दमन करना शुरू किया। अनेक सामन्तों को उनके पदों से हटा दिया गया और उच्च पदों पर गैर तुर्कों की नियुक्ति शुरू कर दी गई। उसने गैर तुर्कों का एक प्रतिस्पर्धी दल बनाकर तुर्क सामन्तों की शक्ति को संतुलित करना चाहा। यह स्वाभिमानी और महत्वाकांक्षी तुर्क अमीरों के लिए असह्य था । धीरे-धीरे ये तुर्क अमीर,  सामन्त और सरदार रजिया के विरुद्ध संगठित होने लगे। रजिया उनकी शक्ति का सही अनुमान लगाने में धोखा खा गई और अन्त में विरोधी अमीरों के षड्यंत्र के चलते ही उसका पतन हो गया।

रजिया का स्त्री होना 

रजिया की सबसे बड़ी दुर्बलता यह थी कि सारे गुणों के बावजूद वह एक स्त्री थी। वह अपने समय से सदियों पूर्व उत्पन्न हो गई थी। उस काल में पुरूषों की प्रधानता थी। अभिमानी पुरूष किसी नारी के अधीन रहने में अपमान अनुभव करते थे। रूढ़िवादी मुसलमानों तथा स्वाभिमानी तुर्क अमीरों ने ह्रदय से रजिया को सुल्तान स्वीकार नहीं किया।

रजिया के प्रगतिशील कदम

रजिया प्रगतिशील विचारों की स्त्री थी। उन दिनों उसने पर्दे की प्रथा का विरोध किया था किन्तु तत्कालीन समाज ऐसे प्रगतिशील कदमों को सहन करने के लिए तैयार नही था। कट्टरपंथी लोगों ने इन बातों को रजिया के विरुद्ध प्रचार का महान अस्त्र बना लिया। अब रजिया को अधार्मिक और दुस्चरित्र कहा जाने लगा।

रजिया का स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश शासन

अपने विरोधियों का दमन कर रजिया ने शासन की शक्तियों को अपने हाथों में ले लिया। अमीर और सरदार उसकी उस शासन नीति और स्वेच्छाचारिता को सहन नही कर सके। पहले से ही इन अमीरों को इस बात की चिढ़ थी कि उन पर एक स्त्री के द्वारा शासन किया जा रहा था। रजिया की निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारिता ने उनके घावों पर नमक छिड़कने का काम किया। इसलिए अमीरों ने न सिर्फ औसका विरोध किया बल्कि उसके विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर दिए।

याकूत से प्रेम

रजिया अबीसीनियन गुलाम जलालुद्दीन याकूत के प्रति अनुचित कृपा दिखाने लगी। याकूत एक हब्सी था, फिर भी रजिया ने उसे अमीर-ए-आखूर का ऊँचा पद दे दिया। एक हब्सी द्वारा तुर्की सरदार अपना अपमान सहन नहीं कर सकते थे, अतः लोकमत रजिया के विरुद्ध हो गया। इस घनिष्ठता का मूल्य याकूत को अपने प्राण देकर और रजिया को अपना राज्य और प्राण देकर चुकाना पड़ा।

उच्च पदाधिकारियों का विश्वासघात

यद्यपि अमीरों के विद्रोह का दमन करने के बाद रजिया ने उच्च पदों पर कुछ नये लोगों की नियुक्तियां की थीं, फिर भी कई ऐसे लोग ऊँचे पदों पर रह गये थे जो रजिया के प्रति निष्ठावान नहीं थे। इन लोगों ने रजिया के विरुद्ध अल्तूनिया के कानों में विष भरा और उसे विद्रोह करने के लिए तैयार किया। अल्तूनिया के हाथों रजिया की पराजय में रजिया के सेनापति का महत्वपूर्ण हाथ था। उन्हीं के द्वारा पकड़ कर रजिया को अल्तूनिया के हवाले भी किया गया था।

केन्द्रीय सत्ता की दुर्बलता 

रजिया के शासनकाल तक दिल्ली में स्थानीय शासकों और प्रान्तीय शासकों पर केन्द्रीय सरकार का पूर्ण नियन्त्रण नही था। प्रान्तीय शासकों के अधिकार अत्यन्त व्यापक थे अगर ऐसे शक्तिशाली प्रान्तीय शासक संगठित होकर किसी शासक का विरोध करते तो उसके लिए अपनी सत्ता को बचाकर रखना कठिन हो जाता था। रजिया को इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ा।

तत्कालिक युग रजिया के प्रतिकूल था

रजिया केवल अविवाहित रहकर ही सुल्तान बनी रह सकती थी यदि वह विवाह कर लेती तो उसका पति ही सुल्तान बनता। यदि वह तुर्क अमीर से गुप्त प्रेम करके राजदरबार में शक्ति संतुलन बनाए रखती तो सम्भव था कि वह राजगद्दी पर अधिक समय तक बनी रहती परन्तु अपने प्रेमी के रूप में हब्सी गुलाम याकूत को चुनकर उसने अपनी शक्ति को काफी घटा दिया। तत्कालिक युग और उस युग के लोग ऐसी बातों को सहन नही कर सकते थे।

अशान्त वातावरण 

यह दुर्भाग्य की बात थी कि जिस समय रजिया का राज्यारोहण हुआ उन दिनों सल्तनत में सर्वत्र षड्यंत्र,  विद्रोह और अशान्ति का वातावरण था। परिवर्तन और संघर्ष के उस युग में असाधारण प्रतिभासम्पन्न शासक ही सफलता प्राप्त कर सकता था। शायद रजिया युग की कसौटी पर पूरी तरह से खरी नहीं उतरती थी। 

प्रजा के सहयोग का अभाव 

मुस्लिम प्रजा और नागरिक रजिया और याकूत के अनैतिक प्रेम सम्बन्धों से रुष्ट हो गई थी। वे भी इन सभी बातों से रजिया को बदनाम करने लगे थे। इससे उनका समर्थन और सहयोग रजिया के विरोधियों को प्राप्त हो गया। प्रजाहित में भी रजिया का स्त्री होना उसके लिए अभिशाप बन गया।

पारिवारिक प्रतिद्वन्द्विता  

रजिया के पिता इल्तुतमिश की अलग-अलग स्त्रियों से उत्पन्न भाई उसके साथ कोई आत्मीयता अनुभव नही करते थे। इसके विपरीत वे राज्य पर अधिकार करने के लिए लालायित थे जिस प्रकार रजिया ने रूकुनुद्दीन से राज्य छीना था, उसे देखते हुए उनके लालायित होने का दोष भी नही दिया जा सकता । परन्तु यदि रजिया और उसके भाई बहरामशाह में एकता होती, तो बलबन और  एतिगीन का विश्वासघातपूर्ण षड्यंत्र मुश्किल से ही सफल हो पाता।

मिनहाज के अनुसार, "रजिया की दुर्बलता यह थी कि वह स्त्री थी।"

धन्यवाद।



Post a Comment

और नया पुराने