मध्य पाषाणकाल
Mesolithic दो शब्दों से मिलकर बना है मध्य (mesos) + पाषाण (Lithos)। इस काल के लघु उपकरणों को सबसे पहले सी० एल० कार्लाइल ने 1867 ई० में विन्धय क्षेत्र से खोजा था। इस काल के उपकरण छोटे हैं (1cm - 5cm), इसीलिए इन उपकरणों को लघु पाषाण उपकरण (microlith) कहा गया। लघु पाषाण उपकरण के प्राचीनतम उदाहरण श्रीलंका के फाहियेन गुफा से मिलते हैं। भारत में महाराष्ट्र के निकट पाटणे से प्राचीन लघु-पाषाण उपकरण मिलते हैं। ये ज्यामितीय आधार पर बने हैं जैसे – चन्द्राकार, अर्द्धचन्द्राकार, त्रिभुजामुखी। पुरापाषाण काल में जहाँ औजारों के निर्माण में क्वार्टज की बहुलता थी वहीं मध्यपाषाण युग में चैल्सेडनी की प्रधानता स्थापित हुई। कुछ स्थानों से हड्डी तथा सींग के बने हुए उपकरण भी मिलते हैं। मध्य पाषाणकाल के जिन स्थानों की खुदाइयाँ हुई हैं उनमें समाधियों की संख्या ही अधिक है। यह एक उल्लेखनीय बात है कि भारत में मानव अस्थिपंजर मध्य पाषाणकाल से ही सर्वप्रथम प्राप्त होने लगता है।
Mesolithic Tools |
बागोर –
- राजस्थान का सबसे प्रमुख मध्य पाषाणिक स्थल भीलवाड़ा जिले में स्थित बागोर है । यहाँ से पशुपालन का प्राचीनतम साक्ष्य मिलता है। यहाँ से चैल्सेडनी औजारों एवं कसाईखाना (Slaughter house) के साक्ष्य मिले हैं।
- पाषाण उपकरणों के साथ-साथ बागोर से मानव कंकाल (चार मानव कंकाल) मिले हैं।
- फर्श बनाने के लिए पत्थरों का प्रयोग तथा फूंस से बने वातरोधी पर्दे के साक्ष्य बागोर से मिलते हैं।
लंघनाज –
- गुजरात प्रान्त में स्थित लंघनाज सबसे महत्वपूर्ण पुरास्थल है।
- यहाँ से 14 मानव कंकाल एवं तांबे का चाकू मिला है। मुड़ी हुई अवस्था में (Flexed burial) समाधिस्थ मानव कंकाल लंघनाज की विशेषता है।
- कंकालों में दन्त-क्षय के प्रमाण भी मिले हैं साथ में कंकालों के कपाल टूटे हुए हैं। यहाँ से कुल प्राप्त उपकरणों में फलक उपकरणों की अधिकता है।
आदमगढ़ –
- होशंगाबाद जिले में स्थित आदमगढ़ शिलाश्रय से लघु पाषाण उकरण प्राप्त होते हैं।
- यहाँ से पालतू पशुओं में कुत्ते एवं बकरी की हड्डियाँ मिली हैं।
भीमबेटका –
- भीमबेटका मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित है। इसकी खोज विष्णुधर वाकड़कर ने की। इन्हें भारत में पाषाण कला का पितामह कहा जाता है।
- भीमबेटका में उन चित्रों को प्राचीनतम माना गया जिनमें नीले रंग का प्रयोग हुआ है। चित्रों का निर्माण उच्च पुरापाषाण काल में प्रारम्भ हुआ लेकिन सर्वाधिक संख्या में मध्य पाषाणकाल के चित्र मिलते हैं।
- भीमबेटका से वराह का चित्र मिलता है। भीमबेटका के प्रसिद्ध सुअर चित्र में, शरीर सुअर का, नाक गैंडा का, सिंग भैंसे का तथा निचला होंठ हाथी का (जिसे कुछ गणपति का प्राचीनतम अंकन मानते हैं) है। भीमबेटका से अन्त्येष्टि का साक्ष्य मिलता है।
लेखहिया –
- लेखहिया उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है।
- यहाँ से 17 मानव कंकाल मिले हैं। अधिकांश के सिर पश्चिम दिशा में हैं।
- यहाँ 5 शिलाश्रय हैं जिसमें 4 चित्रकारी से युक्त हैं।
बघहीखोर –
- बघहीखोर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित है। इसकी खोज सी० एल० कार्लाइल ने की थी।
- लेखहिया के निकट बघहीखोर गुफा से मध्य पाषाणकाल के साक्ष्य मिलते हैं। यहाँ से कुल 2 विस्तीर्ण शवाधान (Extended burial) मिले हैं।
लहुरादेव –
- उत्तर प्रदेश के सन्त कबीरनगर जिले में स्थित लहुरादेव से भारतीय उपमहाद्वीप में कृषि किये जाने का प्राचीनतम साक्ष्य मिलता है।
- यहीं से चावल का भी प्राचीनतम साक्ष्य मिलता है।
चोपानीमाण्डो –
- बेलन घाटी (इलाहाबाद) में स्थित चोपानीमाण्डो को पुरा-पाषाणकाल तथा मध्य पाषाणकाल के बीच की संक्रमण अवस्था का प्रतीक माना गया है। आखेट- संग्राहक से प्रारम्भिक कृषि में संक्रमण का यह प्रतिनिधि स्थल है।
- यहाँ से बस्तियों के अवशेष मिले हैं जिसमें 13 झोपड़ियाँ मधुमक्खी के छत्ते (अण्डाकार) जैसी तथा शेष गोलाकार (वृत्ताकार) है।
- चोपानीमाण्डो से जंगली चावल, हस्तनिर्मित मृदभाण्ड एवं अन्नागारों के साक्ष्य मिलते हैं। विद्वानों के अनुसार चोपानीमाण्डो के मृदभाण्ड संसार के प्राचीनतम साक्ष्यों में से है।
सराहनाहरराय –
- प्रतापगढ़ जिले में स्थित सराहनाहरराय से 14 शवाधान, 8 गर्त चूल्हे ( pit hearths) एवं स्तम्भ गर्त झोपड़ी प्राप्त हुए हैं।
- सराहनाहरराय की समाधियाँ आवास क्षेत्र के अन्दर स्थित थीं। एक कब्र में एक साथ चार मानव कंकाल दफनायें गये हैं।
- यहाँ से मानवीय आक्रमण का प्राचीनतम साक्ष्य मिलता है। एक मानव कंकाल की पीठ में तीर चुभी है।
- पुरूष एवं स्त्रियाँ दोनों ही अपेक्षाकृत लम्बे कद ( 6 फीट से अधिक) के थे।
महदहा –
- उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित महदहा से युग्मित समाधियों अर्थात् स्त्री-पुरुष को साथ-साथ दफनाने का साक्ष्य मिलता है।
- यहाँ से जो 13 मानव कंकाल मिले हैं वह कुण्डल और माला पहने हुए हैं जोकि सींग एवं श्रृंग से निर्मित हैं। समाधियों से पत्थर एवं हड्डी के उपकरण भी मिलते हैं।
दमदमा –
- उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित दमदमा से 41 मानव शवाधान मिले हैं जिसमें 5 युगल शवाधान थे। यहीं से एक ही समाधि से तीन मानव कंकाल एवं हाथी दाँत का लटकन या लाकेट मिला है। सभी समाधि पश्चिम-पूर्व या पूर्व-पश्चिम दिशा में बने थी जो सूर्योदय एवं सूर्यास्त से सम्बन्धित थी।
- यहाँ से गर्त चूल्हे तथा आग से पके हुए फर्श के साक्ष्य भी मिलते हैं।
मध्य पाषाणकाल में मानव जीवन –
- मध्य पाषाणकाल के मानवों का जीवन पूर्व पाषाण काल के मनुष्यों की अपेक्षा कुछ भिन्न था।
- भीमबेटका में जंगली पशुओं का शिकार करते हुए तथा जंगली फल-फूल आदि इकट्ठा करते हुए लोगों को चित्रित किया गया है। अतः इस काल का मानव अब भी भोजन के लिए शिकार पर ही निर्भर था।
- भीमबेटका से प्राप्त चित्रों में अनाज पर जीने वाले पक्षियों को नहीं उकेरा गया है। इसमें अधिकांशतः वे पशु पक्षी हैं जिनका शिकार जीवन निर्वाह के लिए किया जाता था। यह तथ्य आखेट एवं खाद्य संग्रह अर्थव्यवस्था की तरफ ईशारा करते हैं।
- अपने अस्तित्व के अन्तिम चरण तक वे बर्तनों का निर्माण करना भी सीख गये थे।
- सराहनाहरराय तथा महदहा की समाधियों से ज्ञात होता है कि ये अपने मृतकों को समाधियों में गाड़ते थे तथा उनके साथ खाद्य सामग्रियाँ, औजार व अन्य उपकरण भी रख देते थे। सम्भवतः यह किसी प्रकार के लोकोत्तर जीवन में विश्वास का सूचक था।
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