मुहम्मद बिन तुगलक - सांकेतिक मुद्रा 

मुहम्मद बिन तुगलक ने मुद्राओं के निर्माण, मूल्य अंकन, आकार-प्रकार आदि में महत्वपूर्ण सुधार किए। वास्तव में सुल्तान प्रतिभा सम्पन्न, मौलिक विचारों का व्यक्ति था। उसे नई योजनाएँ चलाने का व्यसन था। इन योजनाओं के द्वारा वह अपना नाम इतिहास में अमर करना चाहता था। वह अपने युग की कला और विज्ञान से पूर्ण रूप से परिचित था। इसलिए वैज्ञानिक ढंग से एक नया प्रयोग करने की उसको प्रेरणा हुई होगी। सांकेतिक मुद्रा उसकी उर्वर बुद्धि का घोतक मात्र है।

Muhammad bin tughlaq token coins
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मुद्रा सम्बन्धी सुधार 

मुहम्मद तुगलक की मुद्राएँ अपनी कलात्मकता और आकार-प्रकार के लिए प्रसिद्ध हैं। सुल्तान ने दोकानी नामक नवीन सिक्का और दीनार नामक नवीन स्वर्ण मुद्राएं प्रचलित कीं। दीनार का वजन 115 से 200 ग्रेन तक का होता था। इसी प्रकार 144 ग्रेन के अदली नामक एक चाँदी का सिक्का भी चलाया गया। विनिमय की सुविधा और जनता के कष्टों को दूर करने के लिए सुल्तान ने छोटी मुद्राएं भी प्रचुर मात्रा में ढलवायीं। टंक नामक मुद्रा विनिमय में सबसे अधिक प्रचलित थी। सुल्तान ने 175 ग्रेन के सोने-चांदी के टंक प्रचलित किए। किन्तु मुद्रा व्यवस्था में मुहम्मद तुगलक की सबसे क्रान्तिकारी योजना सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन समझी जाती है। उसने सोने-चाँदी के स्थान पर ताँबे और पीतल के सिक्के जारी किए। इन्हें ही प्रतीक मुद्रा कहा जाता है। इसकी असफलता के कारण सुल्तान की कड़ी आलोचना की गयी है।

सांकेतिक मुद्रा के प्रचलन के कारण 

  • सुल्तान ने अपने राज्यारोहण के काल से ही पुरस्कार, अनुदान, उपहार आदि पर अपार धन-राशि व्यय की। पुनः उसने कई महत्वाकांक्षी योजनाओं का निरूपण और उन्हें कार्यान्वित किया। इस पर भी काफी धन व्यय हुआ। षड्यंत्रों एवं विद्रोह के दमन, सैनिक अभियान, दुर्भिक्ष आदि पर सुल्तान को अत्यधिक धन व्यय करना पड़ा। अतः साम्राज्य की आर्थिक नींव हिल गई और राजकोष रिक्त हो गया। इसके निराकरण के उद्देश्य से सुल्तान ने सांकेतिक मुद्रा चलायी।
  • सम्भवतया सुल्तान को अपनी विश्व विजय की महत्वाकांक्षा को कार्यान्वित करने के लिए अपार धन की आवश्यकता थी। अतः उसने सांकेतिक मुद्रा प्रचलित की।
  • हाजी-उद-दबीर का कथन है कि सांकेतिक मुद्रा के प्रचलन के द्वारा सुल्तान जनता से उनके द्वारा संग्रहीत बहुमूल्य धातुओं का अपहरण करना चाहता था। सांकेतिक मुद्रा सुल्तान की एक चाल थी।
  • उन दिनों भारत में चाँदी की कमी हो गई थी और इसका आयात भी कम हो गया था। चाँदी के अभाव में चाँदी के टंक प्रचुर मात्रा में प्रसारित नहीं किए जा सके। यही कारण है कि सुल्तान ने चाँदी के अभाव में ताँबे के सिक्के चलाये।
  • सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन उन दिनों चीन और ईरान में था। चीन के कुबलाई खां और ईरान के गैखातू खां के द्वारा प्रतीक सिक्के चलाये गये थे। चीन में यह प्रयोग सफल रहा जबकि ईरान में असफल रहा। कुछ विद्वानों का मत है कि मुहम्मद तुगलक को इन्हीं देशों से भारत में सांकेतिक मुद्रा को प्रचलित करने की प्रेरणा मिली।

योजना का स्वरूप और उसका परिणाम 

1330 ई ० में सुल्तान ने ताँबे के सिक्के ढलवाये और आदेश जारी किया कि उन्हें चाँदी के टंक के समान माना जाए। लोग यह समझने में असफल रहे कि केवल सुल्तान की आज्ञा से ताँबे के सिक्के चाँदी के सिक्कों के समान कैसे हो सकते थे। लोगों को इस बात का संदेह हो गया कि सुल्तान इसी बहाने उनसे सोना-चाँदी छीन लेना चाहता है। अतः उन्होंने सोने-चाँदी के सिक्कों को छुपा दिया। थोड़े ही समय में बाजार से सोने-चाँदी के सिक्के लुप्त हो गये और चारों ओर ताँबे के टंक छा गये। इतना ही नहीं, जल्द ही बाजारों में जाली सिक्कों की संख्या काफी बढ़ गई है। नतीजा यह हुआ कि लोग देते समय तो ताँबे के सिक्के देते थे किन्तु लेते समय सोने-चाँदी के सिक्कों की माँग करते थे। व्यापारियों ने तो ताँबे के टंक के बदले सामान देने से इन्कार कर दिया। लोगों की ऐसी प्रवृत्तियों के कारण कृषि, उद्योग-धन्धे, वाणिज्य-व्यापार आदि को काफी नुकसान हुआ, जनता के कष्ट बढ़ गए और राजकार्य में असुविधा होने लगी। जनता के ह्रदय में सुल्तान के प्रति असंतोष और विद्रोह की भावना पनपने लगी। जब सुल्तान ने देखा कि उसकी एक और प्रिय योजना असफल हो गई तो उसने ताँबे के सिक्कों को अवैध घोषित कर दिया और प्रजा को ताँबे के सिक्कों को शीघ्र राजकोष में जमा करके, उनके बदले में चाँदी के सिक्के ले जाने का आदेश दिया। दिल्ली में बदले जाने वाले ताँबे के सिक्कों का पहाड़ लग गया। तुर्क शासकों ने अब तक प्रजा से जो धन चूसा था, उसका बदला इस समय प्रजा ने ले लिया और प्रत्येक घर सोने-चाँदी से भर गया और सरकारी कोष खाली हो गया। 

योजना की असफलता के कारण 

  • यद्यपि आज के युग में सांकेतिक मुद्रा को सभी राष्ट्रों ने अपना लिया है और इसकी उपादेयता को स्वीकार किया है, लेकिन चौदहवीं शताब्दी में पिछड़े हुए अज्ञानी और रूढ़िवादी भारतीयों के लिए इसके महत्व को समझ पाना केवल कठिन ही नहीं, असम्भव भी था। अतः समय से बहुत आगे होने के कारण सुल्तान की यह योजना असफल हो गई।
  • सांकेतिक मुद्रा की सफलता के लिए यह आवश्यक था कि उस पर राज्य का एकाधिकार हो और आसानी से कोई उसकी नकल नहीं कर सके। ऐसे व्यक्तियों को कठोर दण्ड देने की व्यवस्था हो किन्तु मुहम्मद तुगलक ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।

समीक्षा 

सांकेतिक मुद्रा सुल्तान का एक अत्यन्त मौलिक और नवीन प्रयोग था जिसका उद्देश्य जनता को ठगना नहीं, बल्कि साम्राज्य को समृद्ध बनाना और जनता को हित पहुँचाना था। दुर्भाग्यवश जनता इसके महत्व को समझने में असफल रही और यह प्रयोग भी असफल हो गया। यद्यपि सुल्तान की यह योजना असफल रही किंतु प्रायः सभी भारतीय और विदेशी विद्वानों ने इसके लिए सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की प्रशंसा की है।

धन्यवाद 

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