बक्सर का युद्ध - 1764 ई0
मीर कासिम ने बंगाल का नवाब बनने के साथ ही अनुभव किया कि समृद्ध राजकोष व शक्तिशाली सेना का होना अति आवश्यक है। उसने अंग्रेजों को दिए हुए वचनों की पूर्ति तो की ही साथ ही अपनी राजधानी में परिवर्तन कर मुंगेर को नयी राजधानी बना दिया। इतना ही नहीं उसने वहां किलेबंदी भी की। 40,000 सैनिक उसकी रक्षा के लिए नियत किए गए। उसने अंग्रेजों के व्यक्तिगत व्यापार पर भी कर लगाया परिणामस्वरुप अंग्रेजों ने नवाब के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
Battle of Buxar
युद्ध के कारण -
मीर कासिम ने बंगाल का नवाब बनने के साथ ही अनुभव किया कि समृद्ध राजकोष व शक्तिशाली सेना का होना अति आवश्यक है। उसने अंग्रेजों को दिए हुए वचनों की पूर्ति तो की ही साथ ही अपनी राजधानी में परिवर्तन कर मुंगेर को नयी राजधानी बना दिया। इतना ही नहीं उसने वहां किलेबंदी भी की। 40,000 सैनिक उसकी रक्षा के लिए नियत किए गए। उसने अंग्रेजों के व्यक्तिगत व्यापार पर भी कर लगाया परिणामस्वरुप अंग्रेजों ने नवाब के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
Battle of Buxar |
युद्ध के कारण -
मीरकासिम को अंग्रेजों का संघर्ष -
मीरकासिम को कुछ सैनिक मुठभेड़ों के पश्चात अंग्रेजों ने पराजित कर दिया और मीर जाफर को नवाब बना दिया। मीरकासिम नवाब पद पुनः प्राप्त करना चाहता था। अतः उसने युद्ध करने का निश्चय किया।पटना हत्याकांड -
मीरकासिम मुंगेर से भागकर पटना आया। उसने क्रोधावेश में 200 अंग्रेजों की हत्या करा दी। अंग्रेज इससे उत्तेजित हो गए और इसका प्रतिशोध लेने के लिए अंग्रेज कटिबद्ध थे। इस कारण भी युद्ध आवश्यक हो गया।
नवाब शुजाउद्दौला की नीति -
युद्ध के लिए नवाब शुजाउद्दौला भी उत्तरदायी था। शुजाउद्दौला के तीन उद्देश्य थे - बिहार प्राप्त करना। मीरकासिम के पास दस करोड़ रूपये का कोष था उसे प्राप्त करना। मीर कासिम को गद्दी प्राप्त करने में मदद करना।मुगल सम्राट शाहआलम का उद्देश्य -
सम्राट भी अंग्रेजों से रुष्ट था क्योंकि उसने तीन अवसरों पर बंगाल और बिहार पर आधिपत्य करने का प्रयास किया था और तीनों बार अंग्रेजों ने उसे असफल कर दिया था। अतः वह भी अंग्रेज विरोधी संघ में सम्मिलित हो गया।मित्रों में एकता का अभाव -
मीर कासिम ने नवाब शुजाउद्दौला तथा सम्राट शाहआलम का सहयोग प्राप्त करके अंग्रेज विरोधी संघ बना लिया था लेकिन इस संघ में एकता का अभाव था। सभी के अपने-अपने स्वार्थ और अपने अलग-अलग उद्देश्य थे।युद्ध की घटना -
- शाहआलम, शुजाउद्दौला और मीरकासिम की सेनाओं ने बिहार की ओर अभियान आरम्भ किया।
- मुख्य रूप से यह शुजाउद्दौला थी। वस्तुतः यह सेना 'एक भयंकर भीड़' के समान थी जिसकी संख्या डेढ़ लाख थी।
- सम्राट को युद्ध में उत्साह नहीं था और शुजाउद्दौला के हाथों में युद्ध का नेतृत्व होने से मीर कासिम का उत्साह भी ठंडा पड़ गया था।
- अंग्रेजों ने नवाब की सेना से असद खाँ, साहूमल (रोहतास का सूबेदार) और जैनुल अबादीन को अपने पक्ष में कर के कूटनीतिक सफलता प्राप्त कर ली थी।
- अंग्रेज सेनापति हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में 23 अक्टूबर, 1764 ईस्वी को बक्सर में निर्णायक युद्ध हुआ।
- शाहआलम ने उदासीनता दिखाई और शुजाउद्दौला के उन अधिकारियों ने, जो अंग्रेजों से मिल गए थे, विश्वासघात किया।
- युद्ध के पूर्व शुजाउद्दौला ने मीरकासिम को यंत्रणा देकर उसका कोष छीन लिया। युद्ध में अंग्रेजो को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई।
- मीरकासिम भाग गया और दरिद्र अवस्था में दिल्ली में 1777 ईस्वी में उसकी मृत्यु हुई।
- शुजाउद्दौला ने कुछ समय तक संघर्ष जारी रखा। अंत में उसने भी आत्मसमर्पण कर दिया।
- शाहआलम अंग्रेजों से आ मिला।
इलाहाबाद की संधि -
स्थिति को संभालने तथा शान्ति की स्थापना के लिए क्लाइव को दोबारा गवर्नर बनाकर बंगाल भेजा गया। जब वह कलकत्ता पहुंचा, युद्ध समाप्त हो चुका था। उसके समक्ष मुख्य कार्य सन्धि करना था। अतः बक्सर युद्ध में हुई अंग्रेजों की विजय के पश्चात दोनों पक्षों के मध्य 1765 ईस्वी में इलाहाबाद की संधि हो गई।
संधि की शर्ते निम्नलिखित थी -
- अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को 50 लाख रूपए देना स्वीकार किया।
- कड़ा और इलाहाबाद के जिले मुगल बादशाह को दे दिए गए।
- नवाब ने चुनार अंग्रेजों को दे दिया।
- मुगल बादशाह ने बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दी।
- अंग्रेजों ने मुगल बादशाह को 26 लाख रूपए देना स्वीकार किया।
युद्ध का महत्व -
- बंगाल में द्वैध शासन प्रारम्भ हुआ और अंग्रेज बंगाल, बिहार और उड़ीसा के वास्तविक शासक हो गए।
- बंगाल में मीरजाफर ने अपनी नाममात्र की स्थिति स्वीकार कर ली।
- बंगाल का नवाब अंग्रेजों पर आश्रित हो गया और मुगल बादशाह उनका पेंशनभोगी हो गया।
- इस प्रकार अंग्रेजों की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई अंग्रेजों ने सैन्य शक्ति और सैन्य संचालन की श्रेष्ठता को सिद्ध कर दिया।
- मीरकासिम को गद्दी से उतार कर उन्होंने दिखा दिया कि बंगाल के वास्तविक शासक वही थे।
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