फ्रांस में आतंक राज
(मार्च 1793 ई.- जुलाई 1794 ई.)
फ्रांस के राष्ट्रीय कन्वेन्शन (पार्लियामेन्ट) को बाहरी और आन्तरिक शत्रुओं को कुचलने के लिए एक विशेष व्यवस्था करनी पड़ी थी जो भय और आतंक पर आधारित थी। अतः इस व्यवस्था को आतंक राज कहा गया है। उसका आरम्भ 29 मार्च, 1793 ई. से माना जाता है क्योंकि इसी दिन दान्ते के प्रस्ताव पर कन्वेन्शन ने क्रांतिकारी न्यायाधिकरण की स्थापना की स्वीकृति दी थी। यह आतंक राज्य 29 जुलाई, 1794 ई. पर राब्सपियर की मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। सम्पूर्ण फ्रांस में 17,000 व्यक्तियों को क्रान्ति का शत्रु होने के संदेह में मृत्युदंड दिया गया था। इसके अतिरिक्त 40000 विद्रोहियों को मार डाला गया
कारण -
आतंक राज्य के मूल में भय की भावना थी। क्रान्तिकारी समझते थे कि भय से लोगों को देशभक्त बनाया जा सकता था। वास्तव में इसका आरम्भ 10 अगस्त, 1792 ईस्वी को ही हो गया था जब आस्ट्रिया और प्रशा की सेनाओं ने वर्दुन दुर्ग पर अधिकार कर लिया था और पेरिस की भयाक्रान्त जनता ने राजा लुई को राजद्रोह के कारण व्यवस्थापिका सभा से निलम्बित कराया। विदेशी आक्रमण का भय और देश के अन्दर देशद्रोहियों और क्रान्ति के शत्रुओं के कारण पेरिस में आतंक का वातावरण निर्मित हो गया था। इस समय कठोर उपायों की आवश्यकता थी। दान्ते ने क्रान्तिकारी न्यायाधिकरण का प्रस्ताव पारित कराया।
फ्रांस के राष्ट्रीय कन्वेन्शन (पार्लियामेन्ट) को बाहरी और आन्तरिक शत्रुओं को कुचलने के लिए एक विशेष व्यवस्था करनी पड़ी थी जो भय और आतंक पर आधारित थी। अतः इस व्यवस्था को आतंक राज कहा गया है। उसका आरम्भ 29 मार्च, 1793 ई. से माना जाता है क्योंकि इसी दिन दान्ते के प्रस्ताव पर कन्वेन्शन ने क्रांतिकारी न्यायाधिकरण की स्थापना की स्वीकृति दी थी। यह आतंक राज्य 29 जुलाई, 1794 ई. पर राब्सपियर की मृत्यु के साथ समाप्त हुआ। सम्पूर्ण फ्रांस में 17,000 व्यक्तियों को क्रान्ति का शत्रु होने के संदेह में मृत्युदंड दिया गया था। इसके अतिरिक्त 40000 विद्रोहियों को मार डाला गया
कारण -
आतंक राज्य के मूल में भय की भावना थी। क्रान्तिकारी समझते थे कि भय से लोगों को देशभक्त बनाया जा सकता था। वास्तव में इसका आरम्भ 10 अगस्त, 1792 ईस्वी को ही हो गया था जब आस्ट्रिया और प्रशा की सेनाओं ने वर्दुन दुर्ग पर अधिकार कर लिया था और पेरिस की भयाक्रान्त जनता ने राजा लुई को राजद्रोह के कारण व्यवस्थापिका सभा से निलम्बित कराया। विदेशी आक्रमण का भय और देश के अन्दर देशद्रोहियों और क्रान्ति के शत्रुओं के कारण पेरिस में आतंक का वातावरण निर्मित हो गया था। इस समय कठोर उपायों की आवश्यकता थी। दान्ते ने क्रान्तिकारी न्यायाधिकरण का प्रस्ताव पारित कराया।
आतंक राज्य के साधन -
न्यायाधिकरण का कार्य क्रान्ति के शत्रुओं के मामलों में शीघ्र निर्णय करना था। 6 अप्रैल,1793 ईस्वी को सामान्य सुरक्षा समिति गठित की गई। इसका कार्य अपराधियों को खोजकर न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करना था। सितंबर 1793 ईस्वी में संदेहास्पद व्यक्तियों का कानून पारित किया गया। अब किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर प्राणदण्ड दिया जा सकता था। राब्सपियर ने एक अन्य कानून पारित कराकर न्यायाधीशों को अपने विवेक के आधार पर ही संदेहास्पद लोगों को मृत्युदंड देने का अधिकार दिला दिया।
आतंक राज्य का स्वरूप -
आतंक राज्य एक छोटे से समूह या एक व्यक्ति की तानाशाही थी। यह अविवेकपूर्ण भी नहीं था। इसमें केवल एक दोष था, इसे सही तरीके से लागू नहीं किया गया। जेकोबिन्स ने जिरोंदिस्टों को गिलोटिन पर चढ़ा कर नष्ट कर दिया। दान्ते आतंक का समर्थक था लेकिन जब बाहरी और आन्तरिक संकट समाप्त हो गया तब वह आतंक राज्य समाप्त करना चाहता था। अतः अब दान्ते और राब्सपियर में संघर्ष हुआ। राब्सपियर आतंक राज्य जारी रखने के पक्ष में था, अतः उसने दान्ते को गिलोटिन पर भिजवा दिया। अप्रैल,1794 ईस्वी में दान्ते को गिलोटिन पर मार दिया गया।
राब्सपियर और महाआतंक -
राब्सपियर ने महाआतंक स्थापित किया। उसने रूसो के विचारों तथा सदाचार के राज्य की स्थापना के लिए आतंक का प्रयोग किया। चार माह में केवल पेरिस में 1376 व्यक्तियों का वध कर दिया गया। दो दिन में ही 170 व्यक्ति गिलोटिन की भेंट कर दिए गए। इस वीभत्स काण्ड से कन्वेन्शन के सदस्य राब्सपियर के विरुद्ध हो गए। अन्त में 27 जुलाई, 1794 ईस्वी को उसे बन्दी बना लिया गया और कन्वेन्शन के आदेश पर उसे 90 साथियों सहित गिलोटिन पर चढ़ाकर वध कर दिया गया। राब्सपियर की मृत्यु के साथ ही आतंक राज समाप्त हो गया।
महत्व -
आतंक राज्य कोई पागल सैनिक शासन नहीं था। यह समय की आवश्यकता थी। थाम्पसन के अनुसार "जब सामान्य प्रशासन-तन्त्र नष्ट-भ्रष्ट हो गया और देश आन्तरिक प्रतिक्रियावादियों तथा बाह्य आक्रमणकारियों के संकट में था तो ऐसी स्थिति में आतंक राज ही एक सम्भावना थी।"
गोट्सचक और लायेख का यह मत उचित है कि आतंक राज्य के अन्तर्गत क्रांतिकारियों में एक धर्मोन्माद था। देशभक्ति को धार्मिक सिद्धांत की भांति प्रतिपादित किया गया था। वास्तव में तत्कालीन फ्रान्स को इस प्रकार की दृढ़ता और बलिदान की आवश्यकता थी।
धन्यवाद।
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