मौर्य प्रशासन

मौर्य प्रशासन के अन्तर्गत ही भारत में पहली बार राजनीतिक एकता देखने को मिली। सत्ता का केन्द्रीकरण राजा में होते हुए भी वह निरंकुश नहीं होता था। मौर्यकाल में गणराज्यों का ह्रास होने लगा था जिसके परिणाम स्वरूप राजतन्त्रात्मक व्यवस्था की स्थिति मौर्यकाल में काफी मजबूत हो रही थी। कौटिल्य ने राज्य के सप्तांग सिद्धांत के सात अंग निर्दिष्ट किए हैं - राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना और मित्र। साम्राज्य में मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति उनके चरित्र की भलीभांति जांच के बाद की जाती थी, जिसे उपधा परीक्षण कहा जाता था।

Mauryan Administration
 Mauryan Empire

केंद्रीय प्रशासन -

  • अर्थशास्त्र में शीर्षस्थ अधिकारियों को तीर्थ कहा गया है। इनकी संख्या 18 थी। 
  • अधिकतर स्थलों पर इन्हें महामात्य की संज्ञा दी गई है। 
  • सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ मंत्री और पुरोहित थे। इनका साम्राज्य के अन्य अधिकारियों पर स्पष्ट नियंत्रण होता था।

 युक्त तथा उपयुक्त -

  • ये केंद्रीय महामात्य तथा अध्यक्षों के नियंत्रण में निम्न स्तर के कर्मचारी होते थे।

प्रांतीय शासन -

  • चंद्रगुप्त मौर्य ने शासन की सुविधा हेतु अपने विशाल साम्राज्य को चार प्रांतों में विभाजित किया। 
  • इन प्रांतों को चक्र कहा जाता था। इन प्रांतों का शासन सीधे सम्राट द्वारा नियंत्रित न होकर उसके प्रतिनिधि द्वारा संचालित होता था। 
  • अशोक के समय में प्रांतों की संख्या 4 से बढ़कर 5 हो गई। इन प्रान्तों का विवरण निम्नलिखित है -
प्रान्त - राजधानी 
  1. उत्तरापथ - तक्षशिला  
  2. दक्षिणापथ - सुवर्णगीरी 
  3. अवन्तिराष्ट्र - उज्जयिनी 
  4. कलिंग - तोसली 
  5. प्राची (मध्यदेश) - पाटलिपुत्र
प्रांतों का शासन राजवंशीय कुमार या आर्यपुत्र नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था। अशोक सिंहासनारूढ़ होने से पूर्व उत्तरापथ एवं अवन्ति  का कुमार रह चुका था।

मौर्य प्रशासन का स्तरीय खण्ड निम्नलिखित रुप में था - 
  1. साम्राज्य 
  2. प्रान्त 
  3. आहार या विषय 
  4. स्थानीय - 800 ग्रामों का समूह 
  5. द्रोणमुख - 400 ग्रामों का समूह 
  6. खार्वटिक - 200 ग्रामों का समूह 
  7. संग्रहण - 100 ग्रामों का समूह  
  8. ग्राम - प्रशासन की सबसे छोटी इकाई।
  • आहार या विषय विषयपति के अधीन होता था। जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक था जो समाहर्ता के अधीन था।
  • स्थानिक के अधीन गोप होते थे जिनके अधिकार क्षेत्र में 10 गांव होते थे। 
  • साम्राज्य के अंतर्गत कुछ अर्द्धस्वशासित प्रदेश थे। यहाँ स्थानीय राजाओं को मान्यता दी जाती थी किन्तु अन्तपालों द्वारा उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रहता था।
  • अशोक के अभिलेखों में युक्त का उल्लेख है। इन अधिकारियों के माध्यम से केंद्र एवं स्थानीय शासन के बीच सम्पर्क बना रहता था।

 नगर प्रशासन -

  • मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक मण्डल करता था, जो 6 समितियों में विभक्त था। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
समिति - कार्य
  • प्रथम समिति - उद्योग शिल्पों का निरीक्षण
  • द्वितीय समिति - विदेशियों की देखरेख
  • तृतीय समिति - जन्म-मरण का लेखा-जोखा
  • चतुर्थ समिति - व्यापार / वाणिज्य
  • पंचम समिति - निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण
  • छठी समिति - बिक्रीकर वसूल करना

रक्षिण -

  • नगर में अनुशासन रखने तथा अपराधी मनोवृति के दमन करने हेतु पुलिस व्यवस्था थी। इन्हें रक्षिण कहा जाता था। यूनानी स्रोतों से ज्ञात होता है कि तीन प्रकार के अधिकारी होते थे -
  1. एग्रोनोमोई - जिलाधिकारी (मार्ग निर्माण का एक विशेष अधिकारी)
  2. एण्टीनोमोई - नगर आयुक्त
  3. सैनिक अधिकारी

अशोक के अभिलेखों में कुछ अन्य अधिकारियों का वर्णन मिलता है -

  • राजुक - ग्रामीण जनपदों की देखभाल के लिए इनकी नियुक्ति होती थी। इनके पास कर संग्रह के साथ-साथ न्यायिक शक्तियां भी थी। इनके द्वारा शत सहस्त्र पणियों पर भी शासन करने का उल्लेख मिलता है।
  • प्रादेशिक - जिलाधिकारी (अर्थव्यवस्था के प्रदेष्टा)
  • महामात्र - उच्च अधिकारी जो नगर प्रशासन से सम्बन्धित था।
  • प्रतिवेदक - इनका कार्य सम्राट को विभिन्न सूचना देना था।
ग्राम मौर्य साम्राज्य की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई थी। उसका प्रधान ग्रामिक कहलाता था, जो राजकीय कर्मचारी नहीं था,  वरन् उसका निर्वाचन जनता द्वारा किया जाता था।

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