असहयोग आन्दोलन
महात्मा गांधी रौलट ऐक्ट के पारित करने, जलियांवाला बाग के भीषण गोलीकांड तथा खिलाफत के विवाद में अंग्रेजों की भूमिका से अत्यन्त दुखी हुये। अतः 1920 ईस्वी को कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में अन्यायी सरकार से असहयोग का प्रस्ताव पारित किया गया।
Non-Cooperation Movement |
नागपुर अधिवेशन -
- असहयोग आन्दोलन सम्बन्धी प्रस्ताव का दिसम्बर 1920 में नागपुर में हुए कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में पुष्टि कर दी गई।
- नागपुर अधिवेशन के बाद स्वराज के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कांग्रेस ने अब केवल संवैधानिक उपायों के स्थान पर सभी शांतिमय और उचित उपाय जिसमें केवल आवेदन और अपील भेजना ही शामिल नहीं था, अपितु सरकार को कर देने से मना करने जैसी सीधी कार्यवाही भी शामिल थी को अपनाने पर जोर दिया।
- कांग्रेस की नीतियों में आये परिवर्तन के विरोध में एनी बेसेन्ट, मोहम्मद अली जिन्ना, बिपिन चंद्र पाल, सर नारायण चंद्रावकर और शंकर नायर ने कांग्रेस को छोड़ दिया।
- असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम के दो प्रमुख भाग थे जिसमें एक रचनात्मक तथा दूसरा नकारात्मक।
रचनात्मक कार्यक्रमों में शामिल था -
- राष्ट्रीय विद्यालयों तथा पंचायती अदालतों की स्थापना
- अस्पृश्यता का अन्त
- हिन्दू-मुस्लिम एकता
- स्वदेशी का प्रचार तथा कताई-बुनाई
नकारात्मक कार्यक्रमों में मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार थे -
- सरकारी उपाधियों, प्रशस्ति पत्र को लौटाना
- सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों, विदेशी कपड़ों आदि का बहिष्कार
- सरकारी उत्सवों, समारोहों का बहिष्कार
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी का प्रचार अवैतनिक पदों से तथा स्थानीय निकायों के नामांकित पदों से त्यागपत्र।
असहयोग आन्दोलन का प्रगति -
- असहयोग आन्दोलन गांधी जी द्वारा 1 अगस्त, 1920 को शुरू कर दिया गया।
- असहयोग आन्दोलन की शुरुआत के समय ही कांग्रेस को तिलक की मृत्यु का बड़ा सदमा झेलना पड़ा। कांग्रेस ने असहयोग के कार्यक्रम में 31 मार्च 1921 को विजयवाड़ा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में तिलक स्मारक के लिए स्वराजकोष के रूप में एक करोड़ रूपये एकत्र करना तथा समूचे भारत में करीब 20 लाख चर्खे बंटवाने का कार्यक्रम भी शामिल कर लिया।
- पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली। करीब 90,000 विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल और कॉलेजों को छोड़ा। 800 नये राष्ट्रीय स्कूल स्थापित किए गए।
- शिक्षा संस्थाओं का असहयोग आन्दोलन के समय सर्वाधिक बहिष्कार बंगाल में हुआ। नेशनल कॉलेज कोलकाता के सुभाष चंद्र बोस प्रधानाचार्य बने। पंजाब में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में शिक्षा का बहिष्कार किया गया।
- शिक्षा का बहिष्कार मद्रास में बिल्कुल असफल रहा। आन्दोलन के दौरान कई वरिष्ठ वकील एवं बैरिस्टर मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सरदार बल्लभ भाई पटेल और राजेन्द्र प्रसाद आदि न्यायालयों का बहिष्कार कर आन्दोलन में कूद पड़े।।
- गांधी जी ने अपना कैसरेहिन्द, जुलू युद्ध पदक और बोअर पदर वापस कर दिया। गांधीजी का अनुकरण कर सैकड़ों अन्य भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार से मिले पदकों को वापस कर दिया।
- असहयोग आन्दोलन में विदेशी कपड़ों का बहिष्कार सर्वाधिक सफल रहा। विदेशी कपड़ों की आन्दोलन के समय सार्वजनिक होली जलाई गई।
- असहयोग आन्दोलन के समय शराब की दुकानों पर धरना दिया गया, जिससे सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व की हानि हुई।
- विजयवाड़ा कांग्रेस अधिवेशन (1921 ईस्वी) में जिस समय गांधी जी खादी के महत्व को समझा रहे थे उसी समय किसी एक कार्यकर्ता ने कहा कि गांधी खादी बहुत महंगी है, इस पर गांधी ने लोगों को कम कपड़े पहनने की सलाह देते हुए खुद भी जीवनभर मात्र लंगोटी पहनने का निश्चय कर उसे पूरा किया।
प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन -
- 3 नवंबर, 1921 ईस्वी को प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन के दिन सरकार की क्रूर दमन नीति के प्रति विरोध प्रकट करने के दिन समूचे भारत में हड़ताल का आयोजन किया गया।
- वेल्स के बम्बई पहुंचने पर वहाँ की सड़कें वीरान एवं उजड़ी हुई नजर आई।
अहमदाबाद अधिवेशन -
- दिसम्बर, 1921 ईस्वी में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में आन्दोलन को तेज करने का निर्णय लिया गया साथ ही अगले कदम के रूप में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने की अनुमति प्रदान कर दी गई।
- फरवरी, 1922 ईस्वी को गांधी जी ने वायसराय को एक पत्र लिखकर धमकी दी कि यदि एक हफ्ते के अंदर सरकार उत्पीड़नकारी नीतियां वापस न ली गई तो व्यापक सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हो जाएगा।
चौरी-चौरा कांड -
- गांधी जी द्वारा वायसराय को दी गई धमकी की समय सीमा पूरा होने से पहले ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी 1922 को एक भयानक घटना घट गई।
- चौरी चौरा कांड के नाम से चर्चित इस घटना के अंतर्गत क्रोध से पागल भीड़ ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर जिंदा जला दिया।
- चौरी चौरा की घटना से गांधी जी इतने आहत हुए कि उन्होनें शीघ्र आन्दोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया।
आन्दोलन की समाप्ति -
- 12 फरवरी, 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने का निर्णय लिया गया और आन्दोलन समाप्त हो गया।
- जिस समय जनता का उत्साह अपने चरम बिंदु पर था उस समय गांधी जी द्वारा आन्दोलन को वापस लेने के निर्णय से देश को आघात पहुंचा। मोतीलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल, सी राजगोपालाचारी, सी आर दास, अली बंधु आदि ने गांधीजी के इस निर्णय की आलोचना की।
- आन्दोलन को समाप्त करने के अपने निर्णय के बारे में गांधीजी ने यंग इंडिया में लिखा कि आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यंत्रणापूर्ण बहिष्कार यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।
गांधी जी की गिरफ्तारी -
- आन्दोलन की समाप्ति के बाद गांधी जी की स्थिति थोड़ी कमजोर हुई। सरकार ने इस स्थिति का फायदा उठाकर 10 मार्च, 1922 को गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया।
- न्यायाधीश ब्रूमफील्ड ने गांधी को असन्तोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा दी।
असहयोग आन्दोलन सचमुच भारत का पहला जन आन्दोलन था। इसका सूत्रपात एक क्रांतिकारी कदम था, जिसने कांग्रेस के स्वरूप और स्वभाव में मूलभूत परिवर्तन ला दिया। कांग्रेस अब लोकप्रिय लोकतंत्रीय अखिल भारतीय संस्था तथा भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध अहिंसात्मक विद्रोह का माध्यम बन गई।
धन्यवाद।
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