सिक्ख धर्म में खालसा एवं मिसल
सिखों के दसवें तथा अन्तिम गुरु गोविंद सिंह ने 1699 ई. में व्यक्तिगत गुरुत्व के सिद्धांत को खत्म कर खालसा की स्थापना की, जिसके कारण सिक्खों को विशिष्ट वेशभूषा केश, कंघा, कृपाण, कड़ा, कच्छ आदि धारण करना होता था। गुरुत्व के सिद्धांत के खत्म होने के बाद सिक्खों की पवित्र पुस्तक ग्रंथ साहिब ने धर्म गुरु का स्थान ले लिया और सामान्य सिक्खों की खालसा सभा ही लौकिक मार्गदर्शक तथा नीति निर्धारक बन गई।
Guru Govind Singh |
- गुरु गोविंद सिंह की मृत्यु के बाद गुरु की परम्परा समाप्त हो गई। उसके शिष्य बंदाबहादुर ने सिखों का नेतृत्व संभाला।
- बंदा बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मणदेव था, ने पंजाब के सिक्ख किसानों को एकत्रित कर मुगलों से लगातार आठ वर्ष (1707-1715 ई.) तक संघर्ष किया तथा सिक्खों को दुर्जेय शक्ति बनाया।
- बंदाबहादुर को उसके शिष्य सच्चा पादशाह अथवा सच्चा सम्राट कहते थे। 1716 ईस्वी में मुगल बादशाह फर्रूखसियर द्वारा बंदाबहादुर की उसके पुत्र समेत हत्या कर दी गई, जिसके बाद सिक्ख राष्ट्र का भाग्य निम्नतम स्तर पर पहुंच गया।
- फर्रूखसियर की मृत्यु और मुहम्मदशाह के समय पंजाब पर नादिरशाह के आक्रमण ने सिक्खों को एक बार फिर अपने को संगठित करने का अवसर प्रदान किया।
- 1726 ईस्वी में पंजाब में नियुक्त मुगल सूबेदार जकारिया खान ने सिक्खों से समझौता करने के उद्देश्य से उन्हें जागीर एवं नवाबी देने का प्रस्ताव किया। जकारिया खान द्वारा फैजलपुर के कपूर सिंह को जमींदार नवाब के रूप में मान्यता दी गई।
- कालान्तर में कपूर के नेतृत्व में ही पंजाब के सिक्ख कृषक जो पृथक-पृथक जत्थों में बंटे थे, को संगठित कर एक ऐसे दल के रूप में विकसित किया जो दल खालसा के रूप में अस्तित्व में आया।
- सिक्खों की धार्मिक सेना के रूप में विकसित दल खालसा को कपूर की मृत्यु के बाद जस्सा सिंह अहलूवालिया ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।
- जस्सा सिंह के नेतृत्व में ही दल खालसा 12 स्वतंत्र मिसल या जत्थों में विभाजित हो गया।
बारह सिक्ख मिसलें -
- मिसल - नेता/संस्थापक
- अहलूवालिया मिसल - जस्सा सिंह
- सुकरचकिया मिसल - चरत सिंह
- सिंहपुरिया मिसल - नवाब कपूर सिंह
- भंगी मिसल - छज्जा सिंह
- फुलकलियां मिसल - संधू जाट चौधरी
- रामगढ़िया मिसल - जस्सा सिंह रामगढ़िया
- कन्हैया मिसल - जयसिंह
- शहीदी मिसल - बाबा दीप सिंह
- नकी मिसल - हीरा सिंह
- बुले वालिया मिसल - गुलाब सिंह
- निशानवालिया मिसल - सरदार संगतसिंह
- करोड़ खिधिंया मिसल - भगेल सिंह
- कनिंघम ने यहां मिसल को अरबी भाषा का शब्द बताया है जिसका अर्थ है समान या एक जैसा।
- प्रत्येक मिसल का अपना एक झण्डा, नाम तथा निशान होता था, सभी मिसलों के नेताओं की एक समिति होती थी जो सभी मिसलों के कार्यों का संचालन करती थी।
- अफगान आक्रमण तथा मुगल सुबेदारों के अत्याचारों के कारण उस समय पंजाब में अव्यवस्था की स्थिति थी, दल खालसा ने अव्यवस्था की स्थिति को समाप्त करने के उद्देश्य से 1753 ईस्वी में राखी प्रथा आरम्भ की।
- राखी प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक गांव से उपज का 1/5 भाग लेकर दल खालसा उसकी सुरक्षा का प्रबंध करता था, इस प्रणाली द्वारा ही सिक्खों का राजनीतिक शक्ति के रूप में विकास हुआ।
- उत्तरवर्ती मुगल शासकों द्वारा अहलूवालिया मिसल के संस्थापक सरदार जस्सा सिंह को सुल्तान-ए-कौम की उपाधि मिली। इन्होंने स्वयं को बादशाह घोषित कर अपने नाम के सिक्के जारी किए।
- पंजाब में पटियाला, नाभा तथा जिंद रजवाड़ों की स्थापना फुलकियां मिसल द्वारा की गई। फुलकियां मिसल के सरदार आला सिंह को अहमदशाह अब्दाली ने 1765 ईस्वी में तबल-ओ-आलम, एक नगाड़ा और एक निशान भेंट किया।
- आधुनिक पंजाब के निर्माण का श्रेय सुकरचकिया मिसल को दिया जाता है, इसी मिसल में रणजीत सिंह का जन्म हुआ।
- सिक्खों ने 1764 ईस्वी में पंजाब से अफगान आक्रमणकारियों के प्रभाव को खत्म कर देग, तेग और फतेह मुद्रालेख युक्त शुद्ध चांदी के सिक्के का प्रचलन करवाया जो पंजाब में सिक्ख प्रभुता के प्रथम उद्घोषक माने जाते हैं।
- 1763 से 1773 ईस्वी के बीच सिक्खों ने अपनी सत्ता का विस्तार सहारनपुर से पश्चिम में अटक तक दक्षिण में मुल्तान से उत्तर में कांगड़ा और जम्मू तक विस्तार किया।
धन्यवाद।
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