व्यापारिक क्रान्ति

व्यापारवाद का अर्थ उन सुविधाओं का विकास करना था जिनसे व्यापार की सुविधा हो सके। निम्नलिखित तत्व इसके अन्तर्गत आते हैं - पूँजीवाद का विकास,  बैंकिंग प्रणाली का विकास, नवीन उद्योगों का उदय, ऋण सुविधाओं का विस्तार, व्यापारिक संगठनों में परिवर्तन, साझा ऋण सुविधाओं का विस्तार, व्यापारिक संगठनों में परिवर्तन, साझा कम्पनियाँ और प्रभावशाली मुद्रा प्रणाली का विकास।
Commercial Revolution
Commercial Revolution 

पूँजीवाद -

उपनिवेशों की स्थापना से  पूँजी निर्माण का कार्य आरम्भ हुआ। उपनिवेशों से यह सारी पूँजी आ रही थी। कृषि, उद्योग तथा व्यापार में इस पूँजी से आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। इस पूँजी को भूस्वामी,  उद्योगपति, व्यापारी उस व्यक्ति से प्राप्त करते थे जो उपनिवेशों के माध्यम से इसका संचय करता था। अपने लाभ के लिए ऐसे व्यक्ति पूँजी निवेश करते थे।

बैंकिंग प्रणाली -

फ्लोरेन्स की एक धनी संस्था मेडिसी इस दिशा में सबसे पहले कार्य करने वाली थी। इटली की इस व्यापारिक कम्पनी ने 75 लाख डॉलर की पूँजी बैंकिंग व्यापार में लगाई। तीन स्वर्ण गेंदों का गुच्छा इसका प्रतीक चिन्ह था। फ्रांस, नीदरलैंड और दक्षिणी जर्मनी में इसके बाद बैंकिंग व्यवसाय की स्थापना हुई। नीदरलैंड का फगर्स प्रतिष्ठान अग्रणी बैंकिंग व्यवसाय करने वाली संस्था थी। राजाओं को यह संस्था धन उधार देती थी। सैनिक अभियानों के लिए स्पेन के सम्राट को इसी बैंकिंग संस्था से धन उधार मिलता था। एक शक्तिशाली वित्तीय संगठन के रूप में यह बैंकिंग व्यवसाय विकसित हुआ। वाणिज्यवाद को इसने व्यापक रूप प्रदान किया। 1656 ईस्वी में पहला बैंक स्वीडन में स्थापित हुआ। बैंक ऑफ इंग्लैंड की स्थापना 1694 में हुई। बैंकों को सरकारों ने विशेष वित्तीय अधिकार प्रदान किए। इसके बाद अन्य देशों में भी बैंकों की स्थापना होने लगी।

 ॠण सुविधाएँ -

व्यापारियों को ऋण प्राप्त करना, एक दूसरे को भुगतान करना बैंकिंग प्रणाली की स्थापना से बहुत आसान हो गया। एक देश का व्यापारी अब बैंकों की हुण्डी के माध्यम से दूसरे देश के व्यापारी से माल खरीद सकता था। इस प्रकार के भुगतानों का हिसाब दोनों स्थानों के बैंक आपस में कर लेते थे। इससे व्यापार का विस्तार हुआ और लेन-देन में सुविधा हुई। अपने नोट भी बैंक जारी करते थे जिनको दूसरे बैंक स्वीकार करते थे।

नवीन उद्योगों का उदय -

शिल्पकारों की श्रेणियों का नियन्त्रण उत्पादन प्रणाली पर था। उत्पादन पर नवीन बैंकिंग प्रणाली के स्थापित होने से श्रेणियों का नियन्त्रण समाप्त हो गया। अब उद्योगों की स्थापना श्रेणियों से बाहर हुई। इन उद्योगों में खान, धातु विज्ञान तथा उन उद्योग इसी प्रकार के नवीन उद्योग थे। तकनीकों में भी उद्योगों के विस्तार से विकास हुआ।

व्यापारिक संगठनों में परिवर्तन -

सीमित दायित्व की कम्पनियों की व्यापारवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका थी। लोग सहयोग के आधार पर इस प्रकार की कम्पनियों को संगठित करके एक निश्चित क्षेत्र में व्यापार करते थे। इस प्रकार की कम्पनियाँ भण्डारण, सुरक्षा आदि के लिए शुल्क भी देती थीं। मर्चेण्ट एडवेन्चर्स इसी प्रकार की कम्पनी थी जो इंग्लैण्ड में गठित की गई थी और नीदरलैंड्स तथा जर्मनी से व्यापार करना जिसका उद्देश्य था।

साझा कम्पनियाँ -

17 वीं शताब्दी में साझा कम्पनियों का निर्माण आरम्भ हुआ जिनकी पूँजी को शेयरों के विक्रय से प्राप्त किया जाता था। बड़ी संख्या में लोग शेयर खरीदकर अपना धन इस प्रकार की कम्पनियों में पूँजी के रूप में लगाते थे। कम्पनी की गतिविधियों में इस प्रकार के शेयरहोल्डर भाग लेते थे और संचालकों का निर्वाचन करते थे। विशाल पैमाने पर इस प्रकार की शेयर कम्पनियों को संगठित किया गया जिनके पास पूँजी की बहुत बड़ी मात्रा होती थी। राज्य की ओर से विशेष आज्ञा पत्र ऐसी कम्पनियों को प्राप्त होते थे और उन्हें विशेष क्षेत्र में व्यापारिक अधिकार प्रदान किया जाता था। इसी प्रकार की एक चार्टर्ड कम्पनी भारत में आने वाली ईस्ट इण्डिया कम्पनी थी।

मुद्रा प्रणाली का विकास -

व्यापार के विस्तार तथा उसकी सफलता के लिए एक स्थिर, स्पष्ट और व्यापक मुद्रा की आवश्यकता थी। प्रत्येक देश ने इस समस्या को हल करने के लिए अपनी सीमाओं के अन्दर एक मानक मुद्रा को प्रचलित किया। इस सुधार को पूरा होने में काफी समय लगा। इंग्लैण्ड में इस प्रकार की मुद्रा का प्रचलन देश भर में 1600 ईस्वी तक सम्भव हो पाया। यह कार्य फ्रान्स में तो 1800 ईस्वी के लगभग पूरा हुआ।
इस प्रकार वाणिज्यवाद की सफलता के लिए यूरोपीय देशों में खास तौर पर इंग्लैण्ड, नीदरलैंड्स, स्पेन, इटली, फ्रांस में व्यापारिक संगठन, ऋण सुविधाओं तथा उत्पादन तकनीकों के क्षेत्रों में व्यापक सुधार हुए। इन सुधारों की व्यापकता के कारण इसे व्यापारिक क्रान्ति कहा गया है।
धन्यवाद।

Post a Comment

और नया पुराने