अमरावती का स्तूप 

अमरावती का स्तूप आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के दाहिने तट पर स्थित है। इसका प्राचीन नाम धान्यकटक था। इसके बचे-खुचे अवशेष ब्रिटिश संग्रहालय लंदन, राष्ट्रीय संग्रहालय कोलकाता और मद्रास के संग्रहालय में देखे जा सकते हैं।
Amravati Stupa
Amravati Stupa
  • कर्नल कााॅलिन  ने सन 1797 ईस्वी में सर्वप्रथम इसका पता लगाया था और सन् 1816 ईस्वी में इसका सर्वेक्षण करके रेखाचित्र तैयार किए थे। 
  • सन् 1881 ईस्वी में जेम्स बर्जेस तथा सन् 1905  से 1909 के बीच में अलेक्जेंडर री ने स्तूप के शिला-फलकों, मूर्तियों और अन्य पुरानिधियों को एकत्रित किया था। 
  • मूल स्तूप घण्टाकार था जिसके शीर्ष पर चौकोर हर्मिका  और हर्मिका के बीच में छत्रों से युक्त  भव्य स्तम्भ था। 
  • मेधि के ऊपर का प्रदक्षिणापथ दूसरी वेदिका से घिरा था। इस वेदिका और मेधि में लगे प्रस्तर फलक अलंकृत थे। 
  • सम्भवतः ईंटें तथा मिट्टी या कंकड भरकर स्तूप का अण्डाकार स्वरूप तैयार किया था जिसको अच्छे किस्म के सफेद चूना पत्थर के फलकों से आच्छादित कर दिया गया था।
  • प्रारम्भ में इसे भ्रमवश संगमरमर समझ लिया गया था। स्तूप के मूल भाग का निर्माण द्वितीय शताब्दी ई.पू. में हुआ होगा। 
  • क्रमशः इसमें परिवर्द्धन होता रहा तथा प्रथम शताब्दी ईस्वी में स्तूप के अण्ड का प्रस्तर फलकों से आच्छादन किया गया। यह वह समय था जब इस क्षेत्र में वशिष्ठिपुत्र पुलमावी का शासन था। 
  • अनेक दृश्यों का साथ-साथ अंकन इस काल के अमरावती के शिल्प की प्रमुख विशेषता मानी जाती है।राजगृह के राजपथ पर बुद्ध द्वारा नलगिरी हाथी के दमन का दृश्य अति उत्तम है। 
  • लगभग 150- 200 ईस्वी के आसपास इस स्तूप के चारों ओर वेदिका का निर्माण किया गया। इस काल में स्तुत के मूल भाग तथा वेदिका दोनों को उत्कीर्ण शिल्प से अलंकृत किया गया। 
  • इसके पश्चात लगभग 200-200 ईस्वी में इसका पुन: अलंकरण हुआ। उस समय पहले से लगे हुए चित्र फलकों को उलट दिया गया और उन पर बड़ी कुशलता के साथ  बहुसंख्यक मूर्तियां तथा अलंकरण उकेरे गए।
  • स्तूप का महत्वपूर्ण अंग उसकी भूतल वेदिका थी। वेदिका में चारों दिशाओं में एक-एक प्रवेश द्वार थे। 
  • प्रवेश द्वार में आगे की ओर अगल-बगल में स्तम्भ थे जिनके उष्णीशों पर बैठे हुए सिंहों के जोड़े थे। 
  • प्रस्तर फलकों पर छत्र, पादुका, बोधिवृक्ष, भिक्षापात्र तथा स्तूप आदि बौद्ध प्रतीकों का अंकन किया गया था। मूर्तिकला में बुद्ध को मूर्त रूप में भी अंकित किया गया था।
  • स्त्री पुरुषों की दुबली पतली किन्तु लम्बी काया अमरावती शैली की अपनी विशेषता है। पुरुषों के शरीर पर लम्बी धोती,  उत्तरीय और पगड़ी का अत्यन्त सुन्दर अंकन किया गया है। 
  • मूर्तियों में आभूषणों का आधिक्य नहीं है बल्कि सुरुचिपूर्ण न्यूनता दृष्टिगोचर होती है। पशु पक्षियों, लता पुष्पों का चयन भी खूब सोच समझकर किया गया है। 
धन्यवाद।

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