नील आन्दोलन 

नील ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापार का प्रमुख माल था। अतः अंग्रेजों ने प्रारम्भ में इसकी खेती को बढ़ावा दिया,  परन्तु धीरे-धीरे इसकी खेती का जिम्मा यूरोपियन बागान मालिकों के हाथों में चला गया और इन्होंने शोषण के नए-नए उपायों को अपनाकर कृषकों की दशा को दयनीय बना दिया।

नील आन्दोलन
Indigo Movement 

कारण

  • अंग्रेज बागान मालिकों ने किसानों को 2 रू. प्रति बीघा की दर से अग्रिम राशि का भुगतान कर उन्हें नील की खेती करने को बाध्य किया। यह प्रथा उस समय ददनी प्रथा कहलाती थी। 
  • इस व्यवस्था में जमीन की माप तथा नील की कीमत का उल्लेख रहता था। 
  • इस व्यवस्था में किसानों द्वारा अग्रिम धन ले लेने से उन्हें नील की खेती से छुटकारा कभी भी नहीं मिल पाता था और उन्हें पुश्त-दर-पुश्त नील की खेती करनी पड़ती थी।
  • इस नील की खेती का एक अन्य महत्वपूर्ण हानिकर पक्ष यह था कि किसी खेत में यदि एक बार नील पैदा की जाती थी,  तो उसमें कोई दूसरी फसल नहीं की जा सकती थी। इस प्रकार किसानों की जमीनें नील की खेती से बर्बाद होने लगीं।
  • नील विद्रोह का अन्य उल्लेखनीय कारण यह भी था कि सरकार द्वारा निलहे साहबों को संरक्षण प्रदान किया गया था। 
  • सन् 1830 ई. के एक कानून के अनुसार नील की खेती न करने वाले किसानों को गिरफ्तार कर लिया जाता था।
  • नील अफसर किसानों पर चाहे कितना भी अत्याचार करते उसकी अदालत में सुनवाई नहीं होती थी। अतः किसानों को भयंकर शोषण व अत्याचारों का सामना करना पड़ा,  जिसके कारण नील किसानों ने विद्रोह कर दिया।

नील विद्रोह का स्वरूप 

  • सन् 1859-60 ई. में नील उगाने वाले किसानों का असन्तोष बहुत अधिक बढ़ गया और उन्होंने अग्रिम धन व नील की खेती करने से मना कर दिया। 
  • गाँव-गाँव में किसानों को संगठित कर उन्हें विद्रोह के लिए उकसाया। बागान मालिकों के नौकरों को नौकरी छोड़ने के लिए उकसाया गया। 
  • इसके साथ ही किसानों ने निलामी में भाग लेना बन्द कर दिया। एक किसान दूसरे किसान के विरुद्ध मुकद्दमे में गवाही नही देता था इससे किसानों में एकता स्थापित हो गई और इससे किसानों को अपार जन समर्थन मिलने लगा। 
  • दीनबन्धु मित्र ने ‘नील दर्पण’ नामक नाटक लिखा,  जिसमें किसानों की दुर्दशा का वर्णन किया गया। 
  • इसी प्रकार ‘हिन्दू पेट्रियाट’ ने नीलहो के अत्याचारों की अनेक कहानी प्रकाशित कीं। 
  • इस विद्रोह का नेतृत्व भी किसानों द्वारा ही किया गया। दिगम्बर विश्वास और उनके भाई विष्णुचरण विश्वास तथा मालदा के रफीक मण्डल ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया।

नील विद्रोह का परिणाम 

  • नील विद्रोह को उग्रता और उसकी व्यापकता के कारण सरकार ने समाधान निकालने के लिए 1860 ई. में नील आयोग का गठन किया गया, जिसके सम्मुख किसानों ने कहा कि “वे प्राण देकर भी नील की खेती नहीं करेंगे"। इसने नीलहों के अत्याचारों का पर्दाफाश कर दिया। 
  • ‘एकादश कानून’ बनाया गया जिसमें नील की खेती को जबरदस्ती नहीं करवाया जा सकता था। इस प्रकार यह किसानों की एक बहुत बड़ी विजय थी।

धन्यवाद 


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