गुप्तकालीन धर्म   

गुप्तकाल ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान का काल माना जाता है। अनेक गुप्त शासकों ने अश्वमेध, अग्निष्टोम, वाजपेय, वाजसनेय आदि यज्ञ किए। हिंदू धर्म के पुनरूत्थान की प्रक्रिया गुप्त साम्राज्य की स्थापना से पूर्व आरम्भ हो गई थी और गुप्त काल में विकास का यह क्रम अपनी चरम सीमा पर था। 

Guptakaalin dharm
Ardhnarishvar

गुप्त काल में हिन्दू धर्म के तीन महत्वपूर्ण पक्ष विकसित हुए-

  1. मूर्ति उपासना का केन्द्र बन गई। 
  2. यज्ञ का स्थान उपासना ने ले लिया 
  3. वैष्णव तथा शैव धर्मों का समन्वय हुआ।

हिन्दू धर्म के दो मुख्य सम्प्रदाय विकसित हुए -

  1. वैष्णव 
  2. शैव। 

वैष्णव धर्म - 

  • गुप्त राजाओं के राजाश्रय से वैष्णव धर्म लोकप्रियता की चरम सीमा पर पहुंच गया। चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समान अनेक गुप्त सम्राटों ने अपने सिक्कों के नाम के साथ परम भागवत विशेषण का प्रयोग किया है। 
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा समुद्रगुप्त के सिक्कों पर विष्णु के वाहन गरूड़ की प्रतिमा अंकित है। गरूड़ मुद्रा का उदाहरण गाजीपुर जिले के भीतरी नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। 
  • भगवद्गीता में वैष्णव धर्म का प्रतिपादन किया गया है। इसमें अवतारवाद का उपदेश है। स्कन्दगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख तथा बुद्धगुप्त का एरण स्तम्भलेख विष्णु की स्तुति से प्रारम्भ होता है। 
  • गुप्तकाल में वैष्णव धर्म सम्बन्धी सबसे महत्वपूर्ण अवशेष देवगढ़  (झांसी) का दशावतार मन्दिर है। इसका पूर्व नाम केशवपुर था। यह मन्दिर पंचायत श्रेणी का है। इस मन्दिर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हुए नारायण विष्णु को दिखाया गया है। 
  • गुप्तकाल में नारायण, संकर्षण, लक्ष्मी जैसे अवैदिक देवी-देवताओं को वैष्णव धर्म का अभिन्न अंग बना लिया गया। 

शैव धर्म 

  • गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे किन्तु उनकी धार्मिक सहिष्णुता की भावना से शैव धर्म का समाज में यथोचित प्रसार हुआ।  गुप्तकाल में अनेक शैव मन्दिरों का निर्माण हुआ। 
  • भगवान शिव  की मूर्तियाँ दो प्रकार से बनाई जाती थीं - मानव आकार में तथा लिंग के रूप में। शिव एवं पार्वती की संयुक्त मूर्तियाँ इसी काल में बननी शुरू हुईं। 
  • त्रिमूर्ति के अन्तर्गत गुप्त काल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) की पूजा आरम्भ  हुई। समन्वय की उदार भावना गुप्तकाल की विशेषता थी। 
  • गुप्तकाल में शैव धर्म के अनेक सम्प्रदायोंं का विकास हुआ। वामन पुराण में इनकी संख्या चार है -1. शैव 2.पाशुपति 3. कापालिक 4. कालामुख। 
  • स्कन्दगुप्त के बैल आकार वाले सिक्के उसकी शैव धर्म में आस्था के प्रमाण है। 
  • कुमारगुप्त प्रथम के सिक्कों पर मयूर पर आरूड़ कार्तिकेय (स्कन्द) की प्रतिमा अंकित है। इसके काल में बुद्ध, सूर्य, शिव आदि की उपासना को समान रूप से राज्य की ओर से प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। 
  • गुप्त काल में अन्य देवताओं की तुलना में दैवी शक्ति का वैभव अत्यन्त बढ़ गया। अर्द्धनारीश्वर के रूप में शक्ति और शिव दोनों सम्प्रदायों का एकीकरण हुआ परन्तु शक्ति की प्रधानता स्वीकार की गई। 

बौद्ध धर्म -

  • फाह्यान के वर्णन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गुप्तकाल में बौद्ध धर्म अपने स्वाभाविक रूप से विकसित हो रहा था। उसके अनुसार गुप्तकाल में कश्मीर, अफगानिस्तान एवं पंजाब बौद्ध धर्म के केन्द्र थे। गुप्तकाल में नालन्दा में प्रसिद्ध बौद्ध विहार की स्थापना हुई थी। 
  • ह्वेनसांग के अनुसार 100 गांव तथा इत्सिंग के अनुसार 200 गांवों का राजस्व इसे प्राप्त होता था। सैद्धांतिक रूप से बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म का घोर विरोधी था परन्तु उपासना कर्म और व्यवहार में वह ब्राह्मण धर्म के अत्यन्त समीप आ गया। इस काल में महायान सम्प्रदाय अधिक लोकप्रिय रहा। इस मत के अन्तर्गत नवीन दार्शनिक सम्प्रदायों जैसे माध्यमिक तथा योगाचार का प्रादुर्भाव हुआ। 
  • गुप्तकाल में अनेक बौद्ध आचार्यों का आविर्भाव हुआ। उनमें अनेक प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक महायान शाखा के समर्थक थे। जैसे आर्यदेव, असंग, वसुबन्धु, मैत्रेयनाथ और दिड्नाग आदि। योगाचार दर्शन का गुप्तकाल में अत्यधिक विकास हुआ। 

जैन धर्म -

  • फाह्यान ने जैन धर्म का उल्लेख नही किया है परन्तु मध्यवर्ग एवं व्यापारियों में धर्म का पर्याप्त प्रचार था। 
  • उत्तर भारत में जैन धर्म को राजकीय समर्थन नही मिला परन्तु कदम्ब एवं गंग राजाओं ने इसे आश्रय प्रदान किया। 
  • मथुरा और बल्लभी श्वेताम्बर जैन धर्म के केन्द्र थे और बंगाल में पुंड्रबर्धन दिगम्बर सम्प्रदाय का केन्द्र था। 
  • कहौम के लेख के अनुसार स्कन्दगुप्त के काल में भद्र नामक एक व्यक्ति ने पाँच जैन तीर्थंकरों की  मूर्तियों की स्थापना कराई थी।

धन्यवाद।


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