सातवाहन मुद्राओं पर प्रतीक चिह्न

सातवाहन मुद्राओं पर प्रतीक चिह्न
Satvahanas coins

सातवाहन युगीन मुद्राओं पर अंकित प्रतीक चिह्नों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है प्रथम वर्ग के चिह्नों को मुख्य प्रतीक चिह्न एवं दूसरे वर्ग के चिह्नों को सहायक प्रतीक चिह्न कहा जाता है। विभाजनके दो आधार हैं। प्रथम विभाजन मुद्राओं पर प्रतीक चिह्नों की स्थिति एवं मुद्राओं के प्रयोग की बारम्बारता पर आधारित है। विभाजन का दूसरा आधार प्रतीकांकनों के चित्रण में संदर्भित अर्थ को बनाया गया है, जिसे चार वर्गों में विभक्त किया गया है -
  1. स्थानीय प्रतीक चिह्न - वृषभ, गज, सिंह, घेरे में वृक्ष इत्यादि
  2. राजनीतिक प्रतीक चिह्न - चित्र प्रकार, मेहराबदार पर्वत, उज्जैन चिह्न।
  3. व्यापारिक प्रतीक चिह्न - जहाज के अंकन वाले सिक्के
  4. धार्मिक अथवा स्मृति प्रतीक चिह्न - अश्व, चक्र, श्रीवत्स, लक्ष्मी, मत्स्य युक्त नदी, स्वास्तिक, त्रिभुज शीर्षाध्वज, नन्दिपद, कमल, त्रिरत्न इत्यादि।

मुख्य प्रतीक चिह्न

वृषभ प्रतीक -

शातकर्णी प्रथम की मुद्राओं पर दाहिनी ओर वृषभ का अंकन प्राप्त होता है। यह अंकन सर्वथा मुद्रा के पुरोभाग पर हुआ है। वृषभ शक्ति का प्रतीक है और महादेव शिव का प्रतिनिधित्व करता है। आगे चलकर सतश्री ने उप्र वृषभ प्रकार के सिक्कों को जारी नहीं किया क्योंकि इसके युग में हस्ति और पर्वत का अंकन अत्यधिक चर्चित हो गया था।

गज प्रतीक

गज तेजस्विता और वैभव का प्रतीक है। गज प्रतीक का अंकन सातवाहनों के प्रभुता विस्तार का घोतक है। यह प्रतीक महामेघवाहन खारवेल एवं उसके साम्राज्य कलिंग से मूल रूप से संबद्ध था।  सम्भवतः इस क्षेत्र विशेष पर सम्प्रभुता स्थापित करने के बाद सातवाहनों ने इसे प्रतीक के रूप में अपने सिक्कों के मुख भाग पर स्थान प्रदान किया हो। सिमुक नरेश की मुद्राओं पर भी इसका प्रयोग हुआ है।

पर्वत प्रतीक

इसमें तीन प्रकार पाए जाते हैं - 
  1. तीन मेहराब 
  2. छः मेहराब  
  3. दस मेहराब
मेहराब के बिल्कुल ऊपरी भाग पर अर्द्धचन्द्र का अंकन हुआ है और उसके अन्तःक्षेत्र में मुद्रा लेख 'रञो' का अंकन प्राप्त होता है। सर्वप्रथम शातकर्णी द्वितीय के कोण्डपुर से प्राप्त सीसे के सिक्कों के पृष्ठ तल पर मुद्रालेख के साथ-साथ छः मेहराबदार पर्वत का अंकन होता है। इस प्रकार का पर्वत प्रतीक गौतमी पुत्र शातकर्णी की मुद्राओं के पुरोभाग पर मुख्य चिह्न के रूप में प्राप्त होता है। यह चिह्न उक्त राजा के मानवाकृति प्रकार के सिक्कों पर दर्शनीय है। बाद में गौतमीपुत्र के सभी उत्तराधिकारियों द्वारा इसका अनुकरण किया गया। दस मेहराब वाले पर्वत प्रतीक का अंकन गौतमीपुत्र शातकर्णी के धरणिकोट से प्राप्त अश्व प्रकार के सिक्कों के ऊपर दिखाई देता है। सम्भवतः दक्षिण विजय के परिणामस्वरूप स्मृति चिह्न के रूप में अश्व प्रकार के सिक्कों का प्रचलन गौतमीपुत्र शातकर्णी ने कराया था।

सिंह प्रतीक

सिंह और व्याघ्र को शाही पशु के रूप में मान्यता प्राप्त है। सिंह सम्प्रभुता का प्रतीक माना गया है। यह प्रतीक शातकर्णी द्वितीय की मालवा - विदिशा क्षेत्र से प्राप्त मुद्राओं पर सर्वप्रथम प्राप्त हुआ। सिंह पराक्रम और शक्ति का पर्याय माना जाता है।

अश्व प्रतीक

अश्व पश्चिम दिशा का संरक्षक माना गया है तथा यह वेग का प्रतीक है।सबसे पहले धरणिकोट से प्राप्त गौतमीपुत्र शातकर्णी के एक विशिष्ट प्रकार के सिक्के पर इसका निदर्शन होता है। कभी-कभी इस प्रकार की मुद्रा का प्रचलन अश्वमेध यज्ञ के क्रियान्वयन की स्मृति में भी किया जाता था। कालान्तर में गौतमीपुत्र यज्ञश्री तथा चन्द शातकर्णी ने भी इस प्रकार के सिक्के जारी किए थे। इसकी सम्भावना भी निश्चित है कि इन दोनों नरेशों ने भी अश्वमेध यज्ञ का संपादन कराया था।

जहाज प्रतीक

जहाज का अंकन करने वाले सिक्के सीसे के बने हैं। इन सिक्कों का सम्बन्ध वाशिष्ठीपुत्र पुलमावि तथा यज्ञश्री शातकर्णी के साथ जोड़ा जाता है। इस प्रकार के सिक्के अधिक मात्रा में आन्ध्र के तटीय क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। इस श्रृंखला के कतिपय सिक्के पूना और ब्रह्मपुरी से भी प्राप्त हुए हैं। कभी-कभी मुख्य प्रतीक चिह्न जहाज का अंकन मांगलिक चिह्न स्वास्तिक, पद्म एवं शंख के अत्यंत पाश्र्ववर्ती दिखाया गया है। मत्स्य जहाज का अंकन मांगलिकता के साथ-साथ समुन्नत सामुद्रिक व्यापार का संकेतक माना जा सकता है। कुछ विद्वान इसे सातवाहनों की नौसैनिक शक्ति का स्मृति प्रतीक मानते हैं।

चक्र प्रतीक

चक्र बह्माण्ड और जीवन का प्रतीक है। चक्रांकित सिक्के सर्वप्रथम उज्जैन से प्राप्त हुए थे। छः अथवा आठ दण्डों से युक्त यह प्रतीक चिह्न शातकर्णी द्वितीय के सिक्कों पर देखा जा सकता है। एक विशिष्ट प्रकार की ताम्र मुद्रा  पर बारह दण्डों वाला चक्र देखा जा सकता है। यह मुद्रा वाशिष्ठीपुत्र पुलमावि से सम्बन्धित है। सम्भवतः यहाँ चक्र का प्रदर्शन सुदर्शन चक्र के रूप में हुआ है जो अधिपति शासक के चक्रवर्ती होने का बोध कराता है।

मानवाकृति प्रतीक

मानवाकृति का अंकन करने वाले कई भिन्न-भिन्न प्रकार के सातवाहन सिक्के त्रिपुरी और विदिशा क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं। इस विशिष्ट प्रकार की मुद्रा श्रंखला के पुरोभाग पर एक पुरुष आकृति का अंकन हुआ है तथा इसके सिर के ऊपर दाहिनी ओर मुद्रा लेख की व्यवस्था है। यह सम्भवतया अधिपति के प्रसिद्धि और पराक्रम का सूचक है। विदिशा क्षेत्र से ही कतिपय ऐसी सातवाहन मुद्राएं प्राप्त हुई हैं जिन पर नारी आकृति का अंकन हुआ है। यह नारी आकृति अधखुले कमल पर खड़ी है। अनुमानतः यह लक्ष्मी की प्रतिकृति है। कभी-कभी इस आकृति के साथ स्वास्तिक का अंकन प्राप्त होता है। पैथन के उत्खनन में से दो ऐसे सिक्के प्राप्त हुए हैं जिन पर गजलक्ष्मी का अंकन है, परन्तु इन पर कोई मुद्रा-लेख नहीं है। एक दूसरा सिक्का जिस पर गजलक्ष्मी अंकन के साथ-साथ मुद्रा-लेख श्री सातकनिस लिखा है। गौतमीपुत्र शातकर्णी द्वारा जारी किया गया एक ऐसा सीसे का सिक्का प्राप्त हुआ है जिसके पृष्ठतल पर गजांकित है तथा एक मातृदेवी कल्पवृक्ष के समीप खड़ी है।

सहायक प्रतीक चिह्न

उज्जैन प्रतीक

सामान्य रूप से उज्जैन से प्राप्त होने वाले इस प्रकार के स्थानीय सिक्कों पर अंकित प्रतीक चिह्न को उज्जैन नाम दिया गया है। इस चिह्न में चार बॉल एक क्राॅस से जुड़े हुए हैं। सम्भवतः इसे वज्र प्रतीक के रूप में ग्रहण किया गया था जिसे भारतीय धार्मिक परम्परा में इन्द्र का आयुध बताया गया है। अनुमानतः इस प्रतीक का सातवाहन मुद्रा श्रंखला में सम्मिलित होना शातकर्णी द्वारा उज्जैन की विजय का सूचक है। शातकर्णी द्वितीय के गज प्रकार के सिक्कों पर भी यह प्रतीक चिन्ह अंकित है। कभी-कभी यह प्रतीक स्वास्तिक, नन्दिपद तथा त्रिरत्न के साथ भी संयुक्त रूप से मुद्राओं पर अंकित हुआ है।

श्री, श्रीवत्स और कमल प्रतीक

यह प्रतीक दीर्घ अवधि तक सातवाहन सिक्कों के ऊपर विद्यमान रहे। कमल जिसका सम्बन्ध विष्णु तथा लक्ष्मी दोनों से है। श्रीवत्स को देवी श्री का कृपापात्र बताया गया है। इस प्रतीक का प्रदर्शन भारतीय कला में विष्णु के वक्ष पर दर्शनीय होता है। यह प्रतीक केवल सातवाहन मुद्राओं पर ही नहीं वरन् सातवाहन अभिलेखों में भी मांगलिक प्रदर्शन के रूप में अभिलेख के प्रारम्भ तथा अन्त दोनों सिराओं पर अंकित किया गया है।

वृक्ष प्रतीक

शातकर्णी द्वितीय के वृषभांकित प्रकार के सिक्कों पर एक विशिष्ट प्रकार का वृक्ष दिखाया गया है जो सम्भवतया कल्पवृक्ष को निर्देशित करता है। इस वृक्ष से फल को गिरते हुए दिखाया गया है। गौतमीपुत्र शातकर्णी के गज प्रकार के सिक्के जिस पर हाथी की सुंड को ऊपर उठा हुआ दिखाया गया है, वृक्ष को विशाल पत्तियों से  संयुक्त दिखाया गया है। ये पत्तियां गोलाकार या अंडाकार हैं। गौतमीपुत्र शातकर्णी के उपरान्त सिक्कों की जो श्रंखला प्राप्त होती है उसमें सिक्कों के पुरोभाग पर विशाल वृक्ष घेरे के अन्दर प्रदर्शित है।

त्रिभुज शीर्षाध्वज प्रतीक

यह प्रतीक लगभग बहुसंख्यक सातवाहन मुद्राओं पर देखा जा सकता है। यह इन्द्रयष्टि के प्रतीक के रूप में ग्रहण किया जाता है तथा किसी सत्ता के शाही प्रदर्शन का प्रतीक भी माना जाता है।

शंख प्रतीक

शंख का प्रयोग विष्णु के आयुध के रूप में होता है। यह प्रतीक यौधेय, कुणिन्द तथा मालवगण के सिक्कों पर भी देखने को मिलता है। स्पष्ट रूप से यह प्रथम नरेश शातकर्णी के सिक्कों के पृष्ठ तल पर देखने को मिलता है और वस्तुतः कालान्तर में यह अन्य सातवाहन नरेशों के प्रतिकृति का अंकन करने वाले रजत सिक्कों पर निरन्तर देखा जा सकता है।

दैवी अथवा खगोलीय प्रतीक

इस प्रकार के प्रतीकों में सूर्य, चक्र, स्वास्तिक, अष्टमंगल तथा त्रिरत्न इत्यादि आते हैं। चन्द्र प्रतीक का अंकन मुद्रा के पुरोभाग पर पर्वत के ऊपर अर्द्धचन्द्र के रूप में हुआ है और उज्जैन प्रतीकांकनों वाले सिक्कों के पृष्ठ तल पर। स्वास्तिक का प्रयोग मुद्रा के पृष्ठ तल पर पर्याप्त रूप में पाया जाता है। त्रिरत्न का प्रयोग मुद्रा के दोनों सतह पर देखने को मिलता है।

जल चर प्रतीक

सातवाहनों की मुद्राओं के पृष्ठ तल पर कतिपय जल जीवों का भी अंकन प्राप्त होता है। इनमें प्रमुख मत्स्य, कछुआ तथा केकड़ा इत्यादि हैं। जल का भी अंकन इन मुद्राओं पर हुआ है। हालांकि भारतीय धार्मिक परम्परा में नदी को प्राय: देवी के रूप में परिकल्पित किया गया है जबकि जल का महत्व भी  विश्वव्यापी है।

धन्यवाद

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