सिन्धु सभ्यता और विज्ञान

सिंधु सभ्यता का नागरिक सुविधा और विलास का जिस मात्रा में उपभोग करता था उसकी तुलना समकालीन सभ्य संसार के अन्य भागों में नहीं हो सकती।

सिन्धु सभ्यता और विज्ञान।
Harappan civilization

वास्तुकला -

सिन्धु सभ्यता के मकानों में सफाई तथा प्रकाश की पूरी व्यवस्था थी। सार्वजनिक सफाई तो अद्भुत थी। स्थान स्थान पर कूड़ा डालने का प्रबंध था। सड़क के दोनों ओर नालियों की व्यवस्था थी। शहर के गन्दे पानी को इन्हीं नालियों द्वारा बाहर किया जाता था। सिन्धु निवासी सीढ़ियों की निर्माण विधि एवं उनकी उपयोगिता से परिचित थे। मोहनजोदड़ो के कुछ गृहों के अन्दर दीवारों से बाहर निकले हुए ईंटों के टोड़े बने हैं। इन टोड़ों का उपयोग दीपकों के रखने के लिए किया जाता रहा होगा। मोहनजोदड़ो में दीवारों की चुनाई करते समय ईंटों को पहले लम्बाई के आधार पर, फिर चौड़ाई के आधार पर जोड़ा गया है। चुनाई की इस प्रणाली को 'इंग्लिश बांड' कहते हैं। दीवारों का अनुलम्ब संरेखण अत्यन्त सही है जिससे स्पष्ट है कि राज लोगों ने दीवारों को सीधा बनाने में साहुल की सहायता ली होगी। कालीबंगा का एक फर्श अलंकृत ईंटों का बना है जिन पर प्रतिच्छेदी वृत्त का अलंकरण है। कुओं में जो ईंटें लगी हैं वे चौड़ाई में एक ओर कम और दूसरी ओर अधिक है। इस प्रकार की ईंटों का प्रयोग साधारणतया वर्त्तुलाकार वास्तु के बनाने में किया जाता है। सिन्धु नदी में समय-समय पर आने वाली बाढ़ से दुर्ग क्षेत्र की रक्षा के लिए ४३ फीट चौड़े मिट्टी की ईंटों से बने एक बांध के अवशेष मोहनजोदड़ो से मिलें हैं।

स्नानागार -

मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार एक बड़े चौकोर आँगन के बीच स्थित है। पानी में उतरने के लिए सीढ़ियाँ तथा नहाने के लिए चबूतरे हैं। इसके साथ एक हम्माम भी था, जिसके द्वारा नहाने के लिए गर्म जल का उपयोग होता था। इस स्नानकुंड की मजबूत बनावट, इसकी पक्की फर्श,  ईंटों की सीढ़ियां तथा पानी के निकास के लिए बड़ी चौड़ी तथा ढकी नालियां तत्कालीन वास्तुकला की सफलता का आश्चर्यजनक प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।

अन्नागार -

निर्माण विशिष्टता एवं वैज्ञानिकता की दृष्टि से सिन्धु सभ्यता के अन्नागार अपना सानी नहीं रखते। सिन्धु सभ्यता में हलों से खेतों की जुताई होती थी तथा कुदाल और फावड़ों का भी प्रयोग कृषि कार्य में होता था। अनाज पीसने के लिए सिलबट्टे, चक्कियाँ तथा कूटने के लिए ओखल का प्रयोग होता था। लोथल में एक वृत्ताकार चक्की के दो पाट मिले हैं। ऊपर वाले पाट में अनाज ड़ालने के लिए छेद है। बैलगाड़ियों के द्वारा अनाज शहरों तक पहुँचाया जाता था, जहाँ विशाल गृहों तथा अन्नागारों में अनाज का संग्रह किया जाता था। इसकी बनावट ऐसी थी, जिससे उनके भीतर वायु प्रवेश कर सके और अनाज को खराब होने से बचाया जा सके। अनाज और अन्य वस्तुओं को चूहों से बचाने के लिए लोगों ने चूहेदानियों का प्रयोग किया था। मिट्टी की बनी चूहेदानियाँ उत्खनन से मिली हैं।

मिट्टी के बर्तन -

सिन्धु सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तनों पर चमकीली पॉलिश चढ़ाने में प्रवीण थे। बड़े घड़े अनाज अथवा पानी संग्रह के लिए थे। कुछ घड़ों पर पॉलिश की गई है जिससे सतह अत्यन्त  चिकनी हो गई है। चिकनी सतह के कारण अनाज की चूहों से रक्षा हो सकती होगी। कुल्हड़, जिनका पेंदा नोंकदार है, और इसीलिए जिन्हें उल्टा कर रखा जाता रहा होगा, पानी पीने के लिए प्रयुक्त होते रहे होंगे। 

प्रस्तर एवं धातु कला -

सिन्धु सभ्यता की प्रस्तर तथा धातु की उत्कृष्ट मूर्तियाँ तत्कालीन तकनीकी प्रगति की परिचायिका हैं। पाषाण मूर्तियों और विस्मयकारी मुहरों का निर्माण अत्यन्त कुशलता के साथ किया गया है। पाषाण कृतियों को देखने से प्रतीत होता है कि सिन्धु सभ्यता के कलाकार पाषाण को काटने, तराशने, उस पर पच्चीकारी करने तथा छेद करने में निपुण थे। सिन्धुवासी धातु को गलाने की  क्रिया से भी परिचित थे। गली हुई धातु को विभिन्न साँचों में ढालकर लोग विविध आकार-प्रकार की वस्तुएँ बनाते थे। लोथल के नीचले नगर के उत्तरी कोने पर तांबे को ढालने का एक कारखाना मिला है। टिन मिलाकर कांसा बनाने की विधि सभ्यता के प्रथम चरण से ही ज्ञात थी। धातु पर चमकती हुई पाॅलिश के प्रयोग से दर्पण बनाए जाते थे। 

नर्तकी -

मोहनजोदड़ो से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति में नर्तकी की भावचेष्टा, उसके अवयवों की तनुता, अंगागों के अभिराम भंग, सब उसकी नर्तन क्रिया को सूचित करते हैं। देह का सहज लचीलापन और उसका उतार-चढ़ाव नर्तकी की वृत्ति के अनुरूप है। साक्ष्यों से स्पष्ट है कि सिन्धुवासियों को शारीरिक संरचना का समुचित ज्ञान था। सिन्धु घाटी से प्राप्त मुहरों पर वृषभ का अंकन अद्भुत रूप में हुआ है। इसका गलकम्बल, स्कंध, श्रृंग अनुपम एवं दर्शनीय है।

शंख की वस्तुएं तथा लिपि -

सिन्धु सभ्यता के कारीगर शंख से वस्तुएं बनाने में अत्यन्त दक्ष थ। लोथल से शंख का बना एक दिशामापक यंत्र मिला है। इस उपकरण की सहायता नगर निर्माण में भवनों तथा नालियों की सीध बांधने में और भूमि की पैमाइश में ली जाती रही होगी। सिन्धु सभ्यता में गुड़िया निर्माण कला बड़ी उन्नत थी। गुड़ियों पर रंग, पाॅलिश और पच्चीकारी भी की जाती थी। मुद्राओं पर लेख अंकित है जिससे पता चलता है कि सिन्धु सभ्यता के नागरिकों को लिपि का ज्ञान था।

मनके -

मनकों का निर्माण भी एक विकसित उद्योग था। मनकों में छेद करने के लिए तांबे या पत्थर की वेधनी का प्रयोग किया गया। चन्हुदड़ों से इस तरह की पत्थर की वेधनियां मिली हैं।

व्यापार -

सिन्धु सभ्यता की एक अद्वितीय विशेषता है रूई से वस्त्र बुनने की कला। मोहनजोदड़ो के घरों मे तकुओं के दमकड़े बड़ी संख्या में मिले हैं। उत्खनन में तौल के बट्टे भी उपलब्ध हुए हैं। मोहनजोदड़ो के अवशेषों में सीपी के बने फूटे का एक टुकड़ा भी मिला है, जिसमें नौ समान विभाग अंकित हैं। सिन्धु सभ्यता में जल मार्ग से भी पर्याप्त मात्रा में व्यापार होता था। मोहनजोदड़ो व लोथल से प्राप्त मुद्रा एवं मृदभाण्ड के टुकड़ों पर नाव का अंकन मिलता है।

खिलौने -

बच्चों के विचित्र खिलौनों में एक बैल है, जिसकी पूंछ को हिलाने से सिर भी हिलता है। एक हाथी को दबाने से शब्द होता है। एक मुर्गे के खिलौने में छिद्र है, जिसमें फूंक मारने पर ध्वनि होती है।

चिकित्सा -

कालीबंगा तथा लोथल से खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के दो उदाहरण ज्ञात हैं। कालीबंगा से प्राप्त एक बालक की खोपड़ी पर छह छेद हैं। निरीक्षण में पाया गया कि ये छेद कुछ भर गए थे। स्पष्ट है कि बालक की खोपड़ी की शल्य चिकित्सा की गई थी।
धन्यवाद।

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