मेटरनिख
नेपोलियन के बाद यूरोप की राजनीति पर प्रिंस मेटरनिख का प्रभाव स्थापित हुआ था। वह आस्ट्रिया का प्रधानमन्त्री था लेकिन तत्कालीन यूरोप पर 1815 ई. से 1848 ई. तक उसका इतना व्यापक प्रभाव था कि इस अवधि को मेटरनिख युग कहा जाता है।
Matternich |
जीवन
मेटरनिख का जन्म 1773 ईस्वी में राइन नदी के तट पर काब्लेन्ज नगर में हुआ था। वह अभिजात वर्ग का था। उसके पिता ऑस्ट्रिया की राजनयिक सेवा में उच्च पद पर थे। जब नेपोलियन काल में उसकी पैतृक संपत्ति जब्त कर ली गई तो वह क्रान्ति का कट्टर शत्रु हो गया। आस्ट्रिया के प्रधानमन्त्री कानिट्ज की पुत्री से विवाह होने के कारण उच्च वर्ग की राजनीति में उसका महत्व बढ़ गया और उसे उच्च पद प्राप्त हुआ। वह 1809 ईस्वी में आस्ट्रिया का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया। इस पद पर वह 1848 ईस्वी तक बना रहा। इस अवधि में उन्होंने सम्पूर्ण शक्ति से क्रान्तिकारी विचारों का दमन किया और निरंकुश राजतन्त्र की रक्षा की। अंत में 1848 ई. की क्रान्ति के भीषण प्रवाह के कारण आस्ट्रिया में भी क्रान्ति हो गई, जिसने मेटरनिख प्रणाली को नष्ट कर दिया और उसे इंग्लैण्ड भाग जाना पड़ा।
मेटरनिख की विचारधारा
मेटरनिख क्रान्ति को भयानक संक्रामक रोग समझता था जिसका इलाज करना आवश्यक था। वह पुरातन व्यवस्था का कट्टर समर्थक था और निरंकुश राजतन्त्र की रक्षा करना अपना पवित्र कर्म था। वह राजाओं की निरंकुश सत्ता का समर्थक था और उनके दैवी सिद्धान्त में विश्वास रखता था। उसका मत था कि यूरोप को स्वतन्त्रता की नहीं बल्कि शान्ति की आवश्यकता थी। उसकी नीति का सार था, "शासन करो किन्तु परिवर्तन मत करो" । वह राजनीति में यथास्थिति के सिद्धान्त की स्थापना करना चाहती थी। उस के चरित्र का सबसे बड़ा दोष उसका अहंकार था। वह जानती थी कि उसका जन्म यूरोप के पतनशील राज्यों की रक्षा के लिए हुआ था।
मेटरनिख की गृहनीति
मेटरनिख प्रणाली
मेटरनिख नीति के मुख्य तत्व निम्नलिखित थे -
- क्रान्ति, स्वतन्त्रता, समानता के सिद्धान्तों का दमन करना।
- राष्ट्रीयता के विपरीत राजतन्त्र को मजबूत करना।
- यूरोपीय राजनीति में आस्ट्रिया का प्रभुत्व स्थापित करना।
- मध्य यूरोप में आस्ट्रिया को सर्वोच्च शक्ति रखना।
- आस्ट्रिया को क्रान्ति विरोधी अवस्था के आदर्श रूप में प्रस्तुत करना।
- हस्तक्षेपकारी पुलिस व्यवस्था,
- सर्वव्यापी विस्तृत गुप्त प्रणाली,
- उदार विचारों का दमन और नियन्त्रण।
उसने समाज और राजनीति में यथास्थिति रखने के लिए प्रेस, शिक्षण संस्थाओं, नाट्यशालाओं, समाचार पत्रों पर कठोर नियन्त्रण लगा दिया। आस्ट्रिया की सीमाओं पर निरीक्षक नियुक्त किए गए जिससे उदार विचारों की पुस्तकें देश में प्रवेश करके जनता को भ्रष्ट न कर सकें। उसने सर्वत्र गुप्तचरों का जाल बिछा दिया। गुप्तचर कक्षाओं में बैठकर प्राध्यापकों का व्याख्यान सुनते थे। प्राध्यापक या विद्यार्थी अध्ययन के लिए विदेश नहीं जा सकते थे। प्राध्यापक जो पुस्तकें पुस्तकालय से लेते थे, उनकी सूची रखी जाती थी। विद्यार्थी अपना संघ नहीं बना सकते थे। विदेशी विचार आस्ट्रिया में प्रवेश न कर सकें इसलिए विदेशियों का आस्ट्रिया में प्रवेश रोक दिया गया। आस्ट्रिया के निवासी भी पर्यटन के लिए विदेश नहीं जा सकते थे। इस प्रकार आस्ट्रिया की बौद्धिक प्रगति को रोक दिया गया। विदेशों से व्यापारिक सम्बन्धों को कम करने के लिए भारी चुंगी लगा दी गई।
यथास्थिति
आस्ट्रिया में सामाजिक परिवर्तन को भी पूर्णरूप से रोक दिया गया। मेटरनिख ने सामन्तों के विशेष अधिकारों को सुरक्षित रखा। रोमन चर्च की श्रेष्ठता को सुरक्षित रखा गया और धार्मिक असहिष्णुता को भी रखा गया। कोई भी प्रोटेस्टेन्ट विद्यार्थी आस्ट्रिया के किसी विश्वविद्यालय से उपाधि प्राप्त नहीं कर सकता था। विभिन्न जातियों को नियन्त्रण में रखने के लिए मेटरनिख ने सेना का प्रयोग किया। भिन्न-भिन्न प्रजातियों के क्षेत्र में भिन्न प्रजाति की सेना को नियुक्त किया गया।
जर्मनी और इटली में मेटरनिख प्रणाली
आस्ट्रिया में इस व्यवस्था को मजबूती से स्थापित करने के बाद मेटरनिख ने इसे जर्मनी और इटली में भी लागू किया। जर्मनी में इसे लागू करने के लिए उसने जर्मन संसद से कार्ल्सवाद घोषणाओं को स्वीकृत कराया और जर्मन राजाओं के द्वारा उन्हें लागू कराया। इटली में इस कार्य को उसने प्रत्यक्ष सैनिक हस्तक्षेप के द्वारा सम्पन्न किया और इटली के शासकों को सन्धियों द्वारा बाध्य किया कि वे अपने राज्यों में आस्ट्रिया के विरुद्ध कोई गतिविधि न होने दें।
परिणाम
इस नकारात्मक नीति का परिणाम यह हुआ कि आस्ट्रिया की प्रगति रुक गई। बौद्धिक प्रगति रुक गई। उद्योग, व्यापार और कृषि की अपरिमित हानि हुई। व्यापार अवरुद्ध होने से आस्ट्रिया का आर्थिक विकास भी रुक गया। नागरिकों के अधिकार समाप्त हो गए थे और असमानता का बोलबाला था, लेकिन विदेशों से साहित्य, समाचार-पत्रों की तस्करी होती रही और क्रान्ति की दबी आग सुलगती रही।
विदेश नीति
मेटरनिख ने विदेश नीति के क्षेत्र में भी गृह नीति के सिद्धांत को ही लागू किया। उसका उद्देश्य सबसे पहले नेपोलियन को यूरोप के मंच से हटाना था। उसके पतन में आस्ट्रिया की प्रमुख भूमिका थी। उसका दूसरा उद्देश्य वियेना कांग्रेस में क्रान्ति पूर्व की व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास था। अध्यक्ष के रूप में मेटरनिख की वियेना सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका थी। उसने संयुक्त रक्षा व्यवस्था की स्थापना की और उसके माध्यम से यूरोप में क्रान्तिकारी गतिविधियों का दमन किया।
मेटरनिख का पतन
1848 ईस्वी की क्रान्ति ने आस्ट्रिया, जर्मनी और इटली में व्यापक रूप धारण कर लिया। वियेना में श्रमिकों तथा कृषकों ने भीषण उपद्रव किया। विशाल भीड़ ने राज प्रासाद को घेर लिया। इस संकट की स्थिति में मेटरनिख ने त्यागपत्र दे दिया और भेष बदलकर इंग्लैण्ड भाग गया। उसका पता यूरोप के लिए आश्चर्यकारी समाचार था। उसके पतन के साथ ही प्रतिक्रिया की सम्पूर्ण व्यवस्था भी नष्ट हो गई।
मेटरनिख का मूल्यांकन
मेटरनिख योग्य राजनीतिक था लेकिन वह समय की गति को नहीं पहचान सका। उसने क्रान्ति के प्रवाह को रोकने का प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा और क्रान्ति ने उसे नष्ट कर दिया।
धन्यवाद।
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