राष्ट्रीय राजतन्त्रों के उदय के कारण 

यूरोप में 16वीं शताब्दी के आरम्भ में जिन राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हुई उनमें राजा की सत्ता निरंकुश थी। वह पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि था। राजा की इच्छा ही कानून थी। प्रजा ने राजा की  ऐसी असीमित सत्ता का समर्थन किया क्योंकि उसका विचार था कि शक्तिशाली राजा ही शान्ति और व्यवस्था को स्थापित कर सकता था। राजा के विरुद्ध विद्रोह को सबसे गम्भीर अपराध माना जाता था। इस प्रकार के राष्ट्रीय राजतन्त्रों के उत्थान के कई कारण थे जो विशेष रूप से पुनर्जागरण के प्रभाव से उत्पन्न हुए थे।

राष्ट्रीय राजतन्त्रों के उदय के कारण
National States

धर्मयुद्धों का प्रभाव 

क्रूसेड या धर्मयुद्धों के कारण यूरोप के शासक पश्चिम एशिया के मुस्लिम और विजेन्टाइन साम्राज्य के सम्पर्क में आए थे। पश्चिम एशिया के इन राज्यों में निरंकुश राजतन्त्र स्थापित था और उन्हें इन राजतन्त्रों से ही निरंकुश राजसत्ता स्थापित करने की प्रेरणा प्राप्त हुई। जब 1453 ईस्वी में तुर्कों ने विजेन्टाइन साम्राज्य पर अधिकार कर लिया और उन्होंने मध्य यूरोप की ओर बढ़ना आरम्भ किया, तब पश्चिमी यूरोप के राज्यों के लिए संकट उत्पन्न हो गया। अब इन राज्यों को अपनी सुरक्षा के लिए चिन्तित होना पड़ा। इस स्थिति में इन राज्यों में सुदृढ़ राजतन्त्रों का उदय हुआ।

सामन्तवाद का पतन 

धर्मयुद्धों में अनेक सामन्त मारे जा चुके थे। कुछ निकट पूर्व में जाकर बस गए थे और कुछ नगरों में रहकर व्यापार करने लगे थे। इससे पश्चिमी यूरोप के देशों में सामन्तवाद दुर्बल हो गया था और वह जनता को नेतृत्व देने की स्थिति में नहीं था। इसके अतिरिक्त जो सामन्त व्यापार करने लगे थे, वे भी अन्य व्यापारियों के समान शान्ति और सुरक्षा चाहते थे। इसके लिए वे दृढ़ राजतन्त्रीय सरकार चाहते थे। दूसरा कारण सामन्तों का अत्याचार था जिससे कृषक, व्यापारी सभी पीड़ित थे। अतः इन वर्गों ने राजा की सत्ता का समर्थन किया जिससे राजाओं ने सामन्तों की शक्ति को नष्ट करके निरंकुश राजतन्त्र स्थापित किया। 

मध्यमवर्ग का उत्थान 

पुनर्जागरण के प्रभाव के अन्तर्गत व्यापारी और बौद्धिक वर्गों का उत्थान हुआ था। ये वर्ग दृढ़ राजतन्त्र के समर्थक थे क्योंकि उनका विश्वास था कि शक्तिशाली राजा ही शान्ति और व्यवस्था स्थापित कर सकता था। शान्ति और व्यवस्था व्यापार, शिक्षा, कला, साहित्य आदि के विकास के लिए आवश्यक थी। इस वर्ग ने राजाओं को धन तथा बौद्धिक समर्थन तथा सैनिक प्रदान किए। इस वर्ग के धनी और विद्वान लोगों ने राजा की आवश्यकताओं को पूरा किया और इसके बदले में राजा ने इस वर्ग को व्यापारिक तथा आर्थिक एकाधिकार व सुविधाएँ प्रदान कीं। प्रबुद्ध वर्ग राष्ट्रीय विकास के लिए दृढ़ राजतन्त्र चाहता था।     

आग्नेयास्त्रों का आविष्कार

निरंकुश राजतन्त्रों के उत्थान में आग्नेयास्त्रों के अविष्कार ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। बारूद और बन्दूकों के सामने सामन्तों के दुर्ग और उनकी अश्वारोही सेना व्यर्थ हो गई। राजाओं ने बारूद तथा बन्दूकों पर एकाधिकार रखा। उन्होंने स्थाई सेनाओं का निर्माण किया और सामन्तों की सेनाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इन कार्यों से सामन्त अत्यन्त दुर्बल हो गए और उन्हें शक्तिशाली राजाओं के सेवक की स्थिति स्वीकार करनी पड़ी।

राष्ट्रीयता की भावना 

धर्मयुद्ध और स्वदेशी साहित्य तथा अन्तर्राष्ट्रीय युद्धों ने राष्ट्रीयता की भावना को शक्तिशाली बनाया था। इस प्रकार की देशभक्ति की भावना मुख्य रूप से मध्यम वर्ग में फैली थी। इस भावना ने राष्ट्रीय राजतन्त्रों को शक्ति प्रदान की। इस काल में राजभक्ति को ही देशभक्ति समझा जाता था। राष्ट्रीय गौरव तथा सम्मान की भावना के कारण जनता ने राजाओं को शक्तिशाली बनाया। समुद्र पार सुदूर क्षेत्रों में व्यापार की तथा उपनिवेशों की स्थापना के लिए शक्तिशाली नाविक तथा सैन्य शक्ति की आवश्यकता थी जो एक शक्तिशाली राजतन्त्र ही प्रदान कर सकता था। व्यापार और उपनिवेश भी राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक बन गए और इनके कारण भी सुदृढ़ राजतन्त्र को समर्थन मिला।

चर्च की दुर्बल स्थिति 

मध्यकाल में चर्च शक्तिशाली था और उसने विभिन्न राज्यों पर अपना नियन्त्रण रखा था। पोप की आज्ञा सर्वोपरि होती थी। उसकी स्वीकृति से राजा गद्दी पर बैठते थे और उसके नाराज होने पर उन्हें राजगद्दी छोड़नी पड़ती थी। पुनर्जागरण के कारण जब तर्क ने अन्धविश्वासों का स्थान ले लिया तो पोप की स्थिति दुर्बल हो गई। इससे राजा पोप के नियन्त्रण से मुक्त हो गए। जनसाधारण ने भी पोप का विरोध करके राजाओं को शक्तिशाली बनाया। एक और कारण भी था। मध्ययुग की अन्तिम शताब्दियों में पश्चिमी यूरोप में अराजकता इतनी फैल गई थी कि चर्च ने शान्ति और व्यवस्था स्थापित करने के लिए राजाओं का समर्थन किया था। इस प्रकार राजाओं की निरंकुश सत्ता की स्थापना में चर्च का भी अप्रत्यक्ष योगदान था। धर्म-सुधार के फलस्वरुप चर्च पर भी राजाओं की सत्ता स्थापित हो गई। इस प्रकार चर्च की दुर्बलता ने निरंकुश राजतंत्र की स्थापना में योगदान दिया।

राजनीतिक विचारों का योगदान

तत्कालीन विचारधारा भी निरंकुश राजतन्त्र के पक्ष में थी। मेकियावली ने अपने ग्रंथ दि प्रिन्स में इस सिद्धांत की स्थापना की कि राज्य का उद्देश्य व्यक्ति तथा सम्पत्ति की सुरक्षा होना चाहिए। उसका विचार था कि प्रजातन्त्र इन कार्यों को करने के लिए पर्याप्त नहीं था और इस प्रकार की सुरक्षा निरंकुश राजतन्त्र में ही सम्भव हो सकती थी। वास्तव में मेकियावली प्रथम राजनीतिक विचारक था जिसने निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन किया तथा उसको वैधता प्रदान करके उसकी दार्शनिक व्याख्या की। 

राष्ट्रीय राजतन्त्रों ने भी अपनी सत्ता निरंकुश बनाने के लिए प्राचीन रोम साम्राज्य के कानूनों के अध्ययन को प्रोत्साहित किया। रोमन कानून के अन्तर्गत राजा को कानून बनाने,  कानून में परिवर्तन करने या कानून को समाप्त करने का अधिकार था। यह उल्लेखनीय है कि मध्य युग में राजाओं को ईसाई धर्म के कानूनों का पालन करना अनिवार्य था। वह स्वयं इन कानूनों से ऊपर नहीं था। अतः राष्ट्रीय राजतन्त्रों ने रोम के कानूनों को स्वीकार किया जिससे उनकी निरंकुश सत्ता सुदृढ़ हुई।

धन्यवाद।

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