जेम्स प्रथम और पार्लियामेन्ट- इंग्लैण्ड

जेम्स प्रथम स्काटलैंड का राजा था। वह हेनरी सप्तम की पुत्री का वंशज था जिसका स्काटलैंड के राजा से विवाह हुआ था। 1603 ई० में जेम्स के इंग्लैण्ड के सिंहासन पर बैठने के बाद से ही पार्लियामेन्ट से उसका संघर्ष आरम्भ हो गया। जेम्स ने चार बार पार्लियामेन्ट को बुलाया और चारों अवसरों पर उसका पार्लियामेन्ट से झगड़ा हुआ।

James I and Parliament -England
James I King of England 

जेम्स और पार्लियामेन्ट के मध्य संघर्ष के कारण 

परिवर्तित स्थिति 

ट्यूडर काल में पार्लियामेन्ट ने राजाओं के साथ सहयोग किया था। लेकिन स्टुअर्ट वंश की स्थापना के समय स्थिति में परिवर्तन हो गया था। विदेशी आक्रमण का भय समाप्त हो चुका था, इंग्लैण्ड विदेशी व्यापार स्थापित कर रहा था, राष्ट्रीय विचार तथा कार्य शक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी, देश समृद्धिशाली तथा आत्मविश्वास से पूर्ण था, अराजकता समाप्त हो चुकी थी और सामन्त दुर्बल हो चुके थे। इस परिवर्तित स्थिति में पार्लियामेन्ट अपने अधिकारों को प्रभावित बनाकर राजा की पार्लियामेन्ट सत्ता को सीमित करना चाहती थी।

राजा का दैवी अधिकार 

जेम्स स्काटलैंड से इंग्लैण्ड आया था। स्कॉटलैण्ड में उसकी सत्ता सर्वोपरि थी। वह राजा के दैवी सिद्धान्त में विश्वास करता था कि ईश्वर ने उसे राजा बनाया था। प्रजा का कर्तव्य उसकी आज्ञाओं का पालन करना था। उसके विरुद्ध विद्रोह करना ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह करना था। इंग्लैण्ड में दैवी सिद्धान्त की परम्परा नहीं थी। पार्लियामेन्ट राजा के दैवी अधिकार को स्वीकार करने के लिए तैयार नही थी, अतः दोनों के मध्य संघर्ष अवश्यम्भावी हो गया था

मध्यम वर्ग का शक्तिशाली होना 

इंग्लैण्ड की राजनीतिक स्थिति में भी परिवर्तन हो गया था। सामन्तों तथा चर्च के दुर्बल होने से मध्यम वर्ग शक्तिशाली हो गया था। यह मध्यम वर्ग पार्लियामेन्ट के माध्यम से राजा की निरंकुश सत्ता को सीमित और नियंत्रित करना चाहता था जिससे करारोपण तथा धन के व्यय पर उनका नियंत्रण स्थापित हो। इस धनी वर्ग का विचार था कि राजा की निरंकुश सत्ता प्रगति में बाधक हो रही थी।

पार्लियामेन्ट के विशेष अधिकार 

राजा के कुछ विशेषाधिकार होते थे। पार्लियामेन्ट को बुलाना और भंग करना राजा का विशेषाधिकार था। इसी प्रकार पार्लियामेन्ट के भी कुछ विशेषाधिकार थे। उसके सदस्यों को सदन में भाषण देने की स्वतन्त्रता थी। उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा प्राप्त थी और राज्य उन्हें बन्दी नहीं बना सकता था। पार्लियामेन्ट की स्वीकृति के बिना कर नहीं लगाया जा सकता था। पार्लियामेन्ट को कानून बनाने का अधिकार था। जेम्स ने पार्लियामेन्ट के इन अधिकारों की उपेक्षा और आलोचना की। अतः अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए पार्लियामेन्ट को संघर्ष का मार्ग अपनाना पड़ा।

जेम्स की धार्मिक नीति 

जेम्स स्काटलैंड की प्रेसबिटेरियन (प्रोटेस्टेन्ट धर्म का ही एक रूप) चर्च का अनुयायी था। लेकिन उसका झुकाव कैथोलिक धर्म की ओर था। जेम्स के राज्यारोहण के समय प्यूरिटन लोगों को आशा थी कि जेम्स प्रोटेस्टेन्ट चर्च में सुधार करेगा। लेकिन जब प्यूरिटनों ने चर्च में सुधार की मांग की, जेम्स ने उसे अस्वीकार कर दिया। पार्लियामेन्ट में प्यूरिटन लोगों का बहुमत था। इसका परिणाम यह हुआ कि प्यूरिटन उसके विरोधी हो गये। अब उनका उद्देश्य राजा से चर्च की प्रधानता छीनना हो गया।

जेम्स की आर्थिक नीति 

जेम्स नवीन कर लगाना चाहता था जिससे आय में वृद्धि हो लेकिन पार्लियामेन्ट ने नये कर लगाना अस्वीकार कर दिया। इस पर जेम्स ने आयात-निर्यात करों में वृद्धि कर दी और नये कर लगा दिये। जेम्स ने धन लेकर पदवियाँ प्रदान की। पार्लियामेन्ट ने इन सबका विरोध किया लेकिन जेम्स ने पार्लियामेन्ट की उपेक्षा की। पार्लियामेन्ट का कहना था कि राजा को यह सब करने का अधिकार नही था। जेम्स का कहना था कि राजा को विशेषाधिकार प्राप्त थे और वह कर लगा सकता था, किसी की सम्पत्ति पर अधिकार कर सकता था और धर्म में हस्तक्षेप भी कर सकता था।

जेम्स की विदेश नीति 

तीसवर्षीय युद्ध चल रहा था और पार्लियामेन्ट प्रशा के प्रोटेस्टेन्ट राजा फ्रेडरिक की सहायता करने तथा इसके लिए धन स्वीकार करने को तैयार थी। जेम्स भी फ्रेडरिक की मदद करना चाहता था, लेकिन इसके लिए वह स्पेन से मित्रता करके कूटनीतिज्ञ समाधान चाहता था। इसके लिए वह अपने पुत्र चार्ल्स का विवाह स्पेन की राजकुमारी से करना चाहता था। पार्लियामेन्ट ने इसका विरोध किया।

जेम्स का चरित्र 

जेम्स अहंकारी तथा राजपद की उच्च भावना रखने वाला था। उसे अपने ज्ञान का भी अहंकार था और पार्लियामेन्ट को तुच्छ समझता था। वह दूसरों से परामर्श करना या उनके परामर्श को सुनना अनावश्यक समझता था। दूसरी ओर पार्लियामेन्ट में प्यूरिटन लोगों का बहुमत था जो पवित्र जीवन, स्पष्टवादिता तथा राष्ट्र प्रेम से प्रेरित थे और राजा की इन बातों का विरोध करते थे।

जेम्स प्रथम और उसकी चार पार्लियामेन्ट 

प्रथम पार्लियामेन्ट 

पार्लियामेन्ट राजा की नीति से असंतुष्ट थी फिर भी यह पार्लियामेन्ट सात वर्षों तक कार्य करती रही लेकिन इन वर्षों में कई संवैधानिक प्रश्नों पर विवाद हुआ। प्रथम विवाद गाडविन का कामन्स सभा के लिए निर्वाचन था। राजा की आपत्ति पर कि उसका निर्वाचन अवैध था चासरी के न्यायालय ने चुनाव को निरस्त कर दिया। पार्लियामेन्ट ने इसका विरोध किया। पार्लियामेन्ट ने जेम्स को एक निवेदन पत्र प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया कि संसद के अधिकार उन्हें परम्परा से प्राप्त थे और राजा इनमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकता था। राजा पार्लियामेन्ट की अनुमति के बिना कोई कर लगाने या कानून बनाने का कार्य नहीं कर सकता। द्वितीय विवाद यह था कि राजा ने आयात-निर्यात कर में वृद्धि कर दी। बेट व्यापारी था और उसने आपत्ति की कि यह वृद्धि पार्लियामेन्ट की स्वीकृति के बिना की गई थी, अतः अवैधानिक थी। यद्यपि न्यायालय ने राजा के पक्ष में निर्णय दिया तदापि पार्लियामेन्ट ने इसे अवैधानिक घोषित कर दिया। तृतीय विवाद न्यायालयों के बारे में था जिसमें निर्णय किया गया कि राजा को न्याय में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं था। चतुर्थ विवाद राजा की घोषणाओं के बारे में था। न्यायाधिशों की समिति ने निर्णय दिया कि राजा नवीन अपराध या कानून का सृजन नहीं कर सकता था। जेम्स ने इन सब विरोधों की उपेक्षा की और 1611 ई० में पार्लियामेन्ट को भंग कर दिया।

द्वितीय पार्लियामेन्ट 

जेम्स ने 1614 ई० में दूसरी पार्लियामेन्ट बुलायी। वह आर्थिक संकटों में फंसा था और धन चाहता था। पार्लियामेन्ट ने धन स्वीकार करने से पहले अपनी शिकायतों को दूर करने की मांग की। इस पर जेम्स ने दो माह बाद पार्लियामेन्ट को भंग कर दिया।

तृतीय पार्लियामेन्ट 

जेम्स ने 1621 ई० में तीसरी पार्लियामेन्ट बुलायी। यूरोप में तीस वर्षीय युद्ध आरम्भ हो गया था। पार्लियामेन्ट धन स्वीकार करने के लिए तैयार थी और चाहती थी कि राजा स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दे। जेम्स इसके लिए तैयार नहीं था। 

चतुर्थ पार्लियामेन्ट 

1624  ई० में जेम्स ने चतुर्थ पार्लियामेन्ट बुलायी। पार्लियामेन्ट ने केवल युद्ध के लिए सीमित धन स्वीकार किया। उसने धन के व्यय पर नियंत्रण रखने के लिए जेम्स के कोषाध्यक्ष को हटाकर उस पर महाभियोग चलाया और अपना कोषाध्यक्ष नियुक्त किया।

निष्कर्ष 

जेम्स प्रथम के 22 वर्षों के शासनकाल में राजा और पार्लियामेन्ट के मध्य संघर्ष चलता रहा। इस संघर्ष से पार्लियामेन्ट शक्तिशाली हुई और उसने कई संवैधानिक प्रश्नों पर विजय प्राप्त की। 

धन्यवाद 

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