मुहम्मद बिन तुगलक–राजधानी परिवर्तन 

राजधानी परिवर्तन की योजना मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल का एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रयोग था। दिल्ली के स्थान पर उसने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया तथा देवगिरी का नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया।

Muhammad bin tughlaq -capital transformation
Tughlaq Empire 

राजधानी परिवर्तन के कारण 

  • इस समय तक दिल्ली सल्तनत काफी विस्तृत हो चुका था। अतः दिल्ली से साम्राज्य के दूरस्थ क्षेत्रों का ठीक ढंग से प्रबन्ध करना कठिन हो रहा था। दौलताबाद साम्राज्य के मध्य में था।
  • दक्षिण पर नियन्त्रण रख सकना बहुत कठिन था क्योंकि हिन्दू शासक जो कभी उपयुक्त अवसर मिलता सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह कर देते तथा कर देना बन्द कर देते थे। अतः सुल्तान ने दक्षिण की ओर ध्यान देना अधिक आवश्यक समझा और राजधानी परिवर्तन की योजना बनाई।
  • सम्भवतया सुल्तान देवगिरी की भौगोलिक स्थिति से अधिक आकृष्ट और प्रभावित था। देवगिरी का दुर्ग दृढ़ और अभेद्य होने के कारण बाह्य आक्रमणों से सुरक्षित था। राजनीतिक एवं सामरिक दृष्टि से इसका महत्व बहुत अधिक था।
  • इब्नबतूता का मत है कि दिल्ली के निवासियों ने सुल्तान को कुछ ऐसे पत्र डाले थे जिनमें उसकी तीव्र आलोचना की गई थी। इससे सुल्तान उनसे काफी रूष्ट था और उसने उन्हें दण्ड देने के उद्देश्य से अपने घरों को छोड़कर दौलताबाद जाने को बाध्य किया।

राजधानी परिवर्तन का स्वरूप 

राजधानी परिवर्तन का निश्चय कर सुल्तान ने दिल्ली के नागरिकों को अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति तथा परिवार के साथ दौलताबाद जाने का आदेश दिया। जो व्यक्ति आज्ञा मानकर दौलताबाद जाने को तैयार हो गए, उनकी जमीन-जायदाद सुल्तान ने खरीद ली और उन्हें नगद धनराशि प्रदान की। दिल्ली से दौलताबाद की दूरी लगभग 950 किलोमीटर थी। सुल्तान ने इस मार्ग पर एक पक्की सड़क का निर्माण करवाया तथा यात्रियों की सुविधा के लिए सड़क के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाये। इस सड़क पर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर यात्रियों के लिए सरायें और विश्रामगृह बनवाये गये। सरायों में निस्सहाय यात्रियों को ठहरने और मुफ्त भोजन प्राप्त करने की व्यवस्था थी। गरीबों को रास्ते का खर्च राजकोष से दिया गया। यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से दौलताबाद तक डाक की व्यवस्था भी की गयी। अपनी नयी राजधानी दौलताबाद के निर्माण पर सुल्तान ने अपार धन व्यय किया। यहाँ अनेक सुन्दर भवनों का निर्माण किया गया तथा उसे काफी सजाया गया। दौलताबाद के महत्व को बढ़ाने के लिए ही सुल्तान ने यह निश्चय किया कि वहाँ पर राजवंश के लोग, बड़े-बड़े अमीर, विद्वान, सन्त, महात्मा आदि बसा दिये जाएँ। इन लोगों के वहाँ बसने पर ही दौलताबाद मुस्लिम सभ्यता एवं संस्कृति का केन्द्र बन सकता था और मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने पर ही दक्षिण में अधिकार बनाए रखने में सुविधा होती। इस प्रकार सुल्तान ने राजधानी परिवर्तन के लिए यात्रियों को पूरी सुविधाएँ देने का प्रयास किया।

यद्यपि मुहम्मद तुगलक ने दिल्ली से दौलताबाद जाने वालों को अनेक सुविधाएँ एवं सहायता प्रदान की,  परन्तु लोगों को सुल्तान की यह योजना कष्टदायक प्रतीत हुई। अनेक पीढ़ियों से दिल्ली में निवास करने वाले व्यक्तियों को इस नगरी से इतना मोह हो गया था कि स्वेच्छा से वे उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। अतः सुल्तान को उनके साथ कठोर व्यवहार करना पड़ा तथा जबरन लोगों को दौलताबाद भेजना पड़ा। ऐसे व्यक्ति मार्ग में अनेक सुविधाओं के होते हुए भी खुश नहीं थे और दौलताबाद पहुंचने पर उनका मन उचट गया। दौलताबाद की जलवायु भी उन्हें हितकर एवं रूचिकर प्रतीत नहीं हुई। इसके अतिरिक्त मार्ग के कष्टों को अनेक व्यक्ति सह न सके और रास्ते में ही उनका प्राणान्त हो गया। 

जब सुल्तान को लोगों के कष्टों और  कठिनाइयों का पता चला तथा जब सुल्तान स्वयं दौलताबाद आया तो उसने सभी व्यक्तियों को पुनः दिल्ली लौट जाने की आज्ञा दे दी जो इसके लिए इच्छुक थे। उनकी वापसी यात्रा को भी सुखकर बनाने का प्रयास किया गया। उसने उदारतापूर्वक उनकी क्षति की पूर्ति की और उन्हें सहायता दी।

राजधानी परिवर्तन के परिणाम 

  • दिल्ली से दौलताबाद आने-जाने में दिल्ली के अमीरों, अधिकारियों और सामान्य प्रजा को अनेकानेक असुविधाओं एवं कष्टों का सामना करना पड़ा। बहुत से लोग इन कष्टों को सह न सकने के कारण मार्ग में ही मर गए और अनेकों दौलताबाद पहुँचकर मर गए। 
  • इससे विशेषकर मुसलमानों को और अधिक कष्ट हुआ, क्योंकि दौलताबाद के हिन्दू प्रधान वातावरण में रहने में वे असमर्थ थे।
  • दिल्ली से राजधानी और अनेक लोगों के चले जाने से उसकी पुरानी शान शौकत नष्ट हो गई और वह उजड़ गई। बाद में उसे अपनी पुरानी श्रेष्ठता एवं सौन्दर्य को प्राप्त करने में काफी समय लगा।
  • सुल्तान को इस कार्य के कारण बहुत बदनामी मिली, प्रजा में इसके चलते काफी असंतोष फैला और कुछ लोगों ने सुल्तान को इसके लिए केवल क्रूर, अदूरदर्शी तथा प्रजापीड़क कहकर ही संतोष नहीं किया वरन् उसे पागल ठहराने की दु:चेष्टा की है।
  • बरनी के अनुसार, “इस योजना के परिणामस्वरूप दौलताबाद के चारों ओर मुसलमानों के मकबरे प्रगट हुए। उन मकबरों ने उत्तरी निवासियों के ह्रदय दक्षिण की भूमि से जोड़े। बहमनी राज्य का उत्थान उस आबादी के आगमन से ही सम्भव हो सका।"

राजधानी परिवर्तन योजना की समीक्षा 

लेनपूल के अनुसार, “दौलताबाद मुहम्मद की शक्ति के दुरूपयोग का स्मारक था।" वास्तव में सुल्तान ने दिल्ली की पूरी जनता को दौलताबाद ले जाकर एक बड़ी भूल की थी। ऐसा जरूरी नहीं था। उसे सिर्फ अपने साथ अपने कार्यालयों तथा आवश्यक कर्मचारियों को ले जाना चाहिए था। दौलताबाद तो कालान्तर में बस ही जाता। ऐसा होने से इस योजना पर व्यय भी कम होता, जनता को कष्ट भी नहीं उठाने पड़ते और सुल्तान अपनी भारी बदनामी एवं अलोकप्रियता से बच जाता। सच पूछा जाए तो राजधानी परिवर्तन की योजना अविवेकपूर्ण अथवा दोषपूर्ण न होकर सुल्तान के मष्तिष्क की एक अद्भुत उपज थी। अगर यह सफल हो जाती तो सुल्तान की श्रेष्ठता एवं लोकप्रियता काफी बढ़ जाती। किन्तु दुर्भाग्यवश यह असफल हो गई। इसकी असफलता का कारण योजना का तर्कहीन तथा मूर्खतापूर्ण होना नहीं, बल्कि परिवर्तन का गलत ढंग था।

धन्यवाद 


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