मुहम्मद बिन तुगलक – दोआब में कर वृद्धि 

सुल्तान ने अपने राज्यारोहण के उपरान्त अनेक नवीन एवं महत्वाकांक्षी योजनाएं बनायीं तथा उन्हें क्रियान्वित किया। यद्यपि उसकी अधिकांश योजनाएं असफल रहीं, किन्तु उनकी असफलता में भी सुल्तान की महानता, श्रेष्ठता, उदारता, जनकल्याण की भावना, सुल्तान के पद और सल्तनत को प्रतिष्ठित करने की आकांक्षा तथा प्रतिभा की झलक मिलती है।

Muhammad bin tughlaq - tax increase in Doab
Tughlaq Empire

दोआब में कर वृद्धि 

मुहम्मद तुगलक की योजनाओं में दोआब क्षेत्र में उसके द्वारा करों की वृद्धि अत्यन्त महत्वपूर्ण समझी जाती है।

कर वृद्धि के कारण 

  • दान पुरस्कार, उपाधि आदि के वितरण में तथा अपने राज्याभिषेक के अवसर पर सुल्तान ने धन को पानी की तरह बहाया था। इससे उसका राजकोष रिक्त हो गया था। किन्तु सुल्तान को शासन संचालन हेतु, सेना की व्यवस्था तथा अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं को क्रियान्वित करने तथा राजकोष को भरने के लिए काफी धन की आवश्यकता थी।
  • दोआब क्षेत्र अत्यन्त उर्वर, धनी एवं समृद्ध था। सुल्तान की धारणा थी कि इस क्षेत्र की जनता सरलता से अधिक कर दे सकती थी।
  • दोआब क्षेत्र में हिन्दुओं की प्रधानता थी, जो निरन्तर दिल्ली के सुल्तानों के विरुद्ध षड्यंत्र तथा विद्रोह किया करते थे। इस क्षेत्र के हिन्दुओं पर अंकुश रखने तथा उनका दमन करने के लिए उनसे अधिक कर वसूल करना और उन्हें निर्धन बनाना आवश्यक था।
  • उन दिनों यह धारणा थी कि जो सुल्तान दोआब क्षेत्र तथा वहाँ के निवासियों के ऊपर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता था, उसे न सिर्फ धन की प्राप्ति होती, बल्कि समस्त उत्तरी भारत को वह अपनी मुट्ठी में रख सकता था।

कर की दर तथा क्रियान्वयन 

सर्वप्रथम सुल्तान ने दो नवीन विभागों दीवान-ए-मुस्तखरीज एवं दीवान-ए-कोही की स्थापना की। प्रथम विभाग प्रान्तपतियों तथा कोषाध्यक्षों से आय-व्यय का विवरण प्राप्त करता था और दूसरे विभाग के द्वारा भूमि कर का एक रजिस्टर बनाया गया। दोनों विभागों से प्राप्त सूचनाओं और परामर्शों पर ही सुल्तान ने दोआब क्षेत्र में कर की दर में वृद्धि की। अधिकांश विद्वानों का मत है कि सुल्तान ने सम्पूर्ण उपज का 50 प्रतिशत कर के रूप में निश्चित किया था। कर वृद्धि की इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए सुल्तान ने प्रत्येक गांव में एक अधिकारी नियुक्त किया जो गांव के हिन्दू राजस्व अधिकारी चौधरी, खूत, मुकद्दम, मुतसर्रिफ, अमील आदि के ऊपर नियन्त्रण रखता और उनके कार्यों का निरीक्षण करता। लेनपूल के अनुसार, “लगान इतनी कठोरता के साथ वसूल किया गया कि किसान भिखारी बन गये। अमीरों ने विद्रोह कर दिया और भूमि बंजर पड़ी रह गई।

कर वृद्धि के परिणाम 

  • इस कर वृद्धि से किसानों को काफी हानि हुई। अतः उन्होंने इसका विरोध किया।
  • भ्रष्ट अधिकारियों ने वृद्धि किये हुए करों से भी अधिक धन जनता से वसूल किय। इससे जनता की विद्रोही भावना और बढ़ गई।
  • राजस्व अधिकारियों ने इस क्षेत्र की जनता से बगैर प्रतिकूल परिस्थिति का अथवा उनकी आय का ध्यान किये हुए,  बड़ी निर्ममता से कर वसूल किये।
  • इससे न सिर्फ कृषि, बल्कि कृषि पर आधारित उद्योगों और व्यवसायों पर भी भारी आघात हुआ।
  • साधारण स्थिति में इस वृद्धि के कारण कोई विशेष असंतोष नहीं होता। किन्तु सुल्तान ने जिस वर्ष दोआब में कर वृद्धि की, दुर्भाग्यवश उसी वर्ष इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ गया परन्तु राजस्व अधिकारियों ने दुर्भिक्ष की सूचना सुल्तान को नहीं दी तथा अकाल पीड़ित प्रजा पर भयंकर अत्याचार करके निर्ममतापूर्वक कर वसूल किये। परिणामस्वरूप किसान भय-त्रस्त होकर अपने गाँवों को छोड़कर भागने लगे। 
  • सम्पूर्ण दोआब में चोरी, डकैती, लूटपाट, हिंसा आदि के कारण अशान्ति और अव्यवस्था फैल गई। अधिकारियों ने फिर भी किसानों को नहीं छोड़ा।

सुल्तान द्वारा राहत कार्य 

सुल्तान को जब दोआब के दुर्भिक्ष और जनता के कष्टों की सूचना मिली तो उसने शीघ्र न सिर्फ अपने पूर्व अध्यादेश को रद्द कर दिया, बल्कि इस क्षेत्र की जनता को सहायता हेतु धन एवं खाद्यान्न भेजे। दोआब में उसने निःशुल्क भोजन और पशुओं के चारे की व्यवस्था की। प्रजा के कष्टों को दूर करने के लिए उसने फर्रुखाबाद जिले में सरगद्वारी नामक स्थान पर अपना दरबार स्थापित किया। किसानों को यथेष्ट आर्थिक अनुदान दिये गये तथा कृषि को समुन्नत बनाने के उद्देश्य से सिंचाई की उचित व्यवस्था की गई। परन्तु इन सब से विशेष लाभ नहीं हुआ और लाखों व्यक्ति भूखों मर गये, कृषि की दशा खराब हो गई तथा अनेक गांव उजड़ गये।

कर वृद्धि योजना की समीक्षा 

सुल्तान ने दोआब क्षेत्र में इतने अधिक कर नहीं लगाये थेकि जनता उनको दे ही न सके। मुहम्मद तुगलक के पूर्व सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने भी इस क्षेत्र के लोगों से उपज का पचास प्रतिशत कर के रूप में वसूल किया था। दुर्भाग्यवश इसी समय अकाल पड़ गया और सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की योजना असफल हो गई। इस क्षेत्र में राहत कार्य भी काफी देर से किये गए  इससे जनता का कष्ट और बढ़ गया। यह भी कहा जा सकता है कि सुल्तान ने इस क्षेत्र की व्यवस्थाओं के ऊपर अपना पूर्ण नियन्त्रण नहीं रखा।

धन्यवाद 

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