तीस वर्षीय युद्ध – यूरोप 

तीस वर्षीय युद्ध यूरोप का पहला महायुद्ध था जिसमें यूरोप के सभी बड़े देशों ने भाग लिया था। यह युद्ध 1618 ई० में आरम्भ हुआ था और 1648 ई० में वेस्टफेलिया की सन्धि से समाप्त हुआ। तीस वर्षो तक युद्ध जर्मनी की भूमि पर लड़ा गया परिणामस्वरूप जर्मनी सभ्यता तथा आर्थिक विकास के क्षेत्र में यूरोप के अन्य देशों से पिछड़ गया। दुर्भिक्ष, हत्या, महामारी और उत्प्रवास से वहाँ की आबादी एक-तिहाई रह गई। यह युद्ध धार्मिक कारणों से आरम्भ हुआ था। एक ओर कैथोलिक देश और दूसरी ओर प्रोटेस्टेन्ट देश थे लेकिन युद्ध के अन्तिम चरण में युद्ध धार्मिक न होकर राजनीतिक हो गया।

Thirty years war - Europe
Thirty years wars-Europe 

युद्ध के कारण 

धार्मिक कारण

तीसवर्षीय युद्ध धार्मिक कारणों से आरम्भ हुआ था। जर्मनी के कैथोलिक प्रोटेस्टेन्टों का दमन करना चाहते थे। वास्तव में, 1555 ई० की आग्सबर्ग की सन्धि के प्रावधानों से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गयीं थी। प्रथम समस्या यह थी कि राजाओं को अपनी प्रजा के धर्म को निर्धारित करने का अधिकार प्राप्त हो गया था। इसमें जनता के अधिकारों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था। दूसरी समस्या यह थी कि सन्धि ने प्रोटेस्टेन्ट धर्म के केवल लूथरवाद को मान्यता प्रदान की थी जबकि काल्विनवाद का प्रभाव बढ़ता जा रहा था और उसे मान्यता प्राप्त नहीं थी। तीसरी समस्या यह थी कि आग्सबर्ग की सन्धि में कैथोलिक चर्च की सम्पत्ति की रक्षा की व्यवस्था की गई थी किन्तु इसका ठीक तरह से पालन नहीं किया जा रहा था। कैथोलिकों का कहना था कि 1 जनवरी, 1552 ई० के पश्चात जो विशप प्रोटेस्टेन्ट धर्म के अनुयायी हो गए थे, उनकी सम्पत्ति वापस की जाए। इसके विपरीत, प्रोटेस्टेन्ट शासक इस सम्पत्ति को वापस करने को तैयार नहीं थे। इस प्रकार दोनों सम्प्रदायों में कटुता बढ़ती गयी।

राजनीतिक कारण 

  • आस्ट्रिया का हेप्सवर्ग वंशीय शासक पवित्र रोमन साम्राज्य  (जर्मनी) का सम्राट भी था वह पवित्र रोमन साम्राज्य पर अपनी निरंकुश और सार्वभौम सत्ता स्थापित करना चाहता था, लेकिन जर्मनी में राजागण अपनी परम्परागत स्वतन्त्रता तथा अधिकारों को सुरक्षित रखना चाहते थे किन्तु इन राजाओं में एकता नहीं थी।
  • हेप्सवर्ग वंश के विस्तार से फ्रांस को अपनी सुरक्षा की चिन्ता हो रही थी। इस वंश के शासक आस्ट्रिया के अतिरिक्त स्पेन, नीदरलैंड, फ्रेन्च काम्टे, मिलान, सिसली पर राज करते थे। फ्रांस को लगता था कि वह हेप्सवर्ग क्षेत्रों से घिर रहा था।
  • फ्रांस का प्रधानमन्त्री रिश्लू जर्मनी में राइन नदी तक फ्रांस का विस्तार करना चाहता था। उसका उद्देश्य फ्रांस को यूरोप का सर्वशक्तिशाली राज्य बनाना था। अतः वह जर्मनी में हस्तक्षेप करके आस्ट्रिया के सम्राट की शक्ति को दुर्बल करना चाहता था।
  • बाल्टिक सागर के व्यापार पर डेनमार्क का नियन्त्रण था। स्वीडन ने भी इस समय बाल्टिक सागर के पूर्वी तट पर अधिकार कर लिया था और अब वह जर्मनी के उत्तरी भाग पर अधिकार करके बाल्टिक सागर को स्वीडिश झील बनाना चाहता था। 

तात्कालिक कारण 

तीसवर्षीय युद्ध का तात्कालिक कारण आस्ट्रियन साम्राज्य के विरुद्ध बोहेमिया का विद्रोह था। बोहेमिया की जनता चेक जाति की थी और काल्विन धर्म की अनुयायी थी। एक शताब्दी से अधिक समय से आस्ट्रिया के कैथोलिक सम्राट बोहेमिया पर शासन कर रहे थे। 1618 ई० में फर्डीनेण्ड आस्ट्रिया का सम्राट बना। फर्डीनेण्ड कट्टर कैथोलिक था। बोहेमिया की चेक जनता को भय हुआ कि उनको बलपूर्वक कैथोलिक बना लिया जाएगा। इसी समय फर्डीनेण्ड ने प्रोटेस्टेन्ट लोगों की सभाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इससे बोहेमिया के लोगों ने विद्रोह करनेका निर्णय किया। सम्राट फर्डीनेण्ड ने वार्ता करने के लिए अपने दो प्रतिनिधि प्राग बोहेमिया की राजधानी भेजे लेकिन वातावरण इतना कटुतापूर्ण हो गया कि क्रोध में आकर चेक प्रोटेस्टेन्ट लोगों ने उन दोनों को खिड़की से नीचे फेंक दिया यद्यपि वह दोनों बच गए लेकिन यह सम्राट की सत्ता और कैथोलिक लीग को खुली चुनौती थी। सम्राट ने सेना भेजी। इस पर बोहेमिया के विद्रोहियों ने फर्डीनेण्ड को पद से हटाकर पेलेटिनेट के इलेक्टर फ्रेडरिक को अपना राजा घोषित कर दिया। फ्रेडरिक प्रोटेस्टेन्ट लीग का नेता था। इस प्रकार प्रोटेस्टेन्ट और कैथोलिक लीग के मध्य युद्ध आरम्भ हो गया।

युद्ध - तीसवर्षीय युद्ध को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है -

1. बोहेमियन या पेलेटिनेट काल (1618-1624 ई०)

सम्राट फर्डीनेण्ड ने स्पेन के राजा फिलिप द्वितीय से सहायता मांगी। फिलिप द्वितीय ने बवेरिया के सेनापति काउण्ट टेली के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी। टेली ने फ्रेडरिक को पूर्ण रूप से पराजित कर सम्पूर्ण बोहेमिया पर अधिकार कर लिया। प्रोटेस्टेन्ट लीग को भंग कर दिया गया। अनेक चेक नेताओं को प्राणदण्ड दिया गया और बोहेमिया पर बलपूर्वक कैथोलिक धर्म थोप दिया गया।

2. डेनिश काल (1625-1629 ई०)

कैथोलिकों की विजय से जर्मनी के लूथरवादी राजकुमारों में भय उत्पन्न हो गया। सम्राट फर्डीनेण्ड ने इन राजकुमारों को किसी प्रकार की स्वतन्त्रता व धार्मिक अधिकार देना भी अस्वीकार कर दिया। ऐसे संकट काल में डेनमार्क के राजा क्रिश्चियन चतुर्थ ने अपने सहधर्मियों की सहायता से युद्ध में हस्तक्षेप किया। उसने उत्तरी जर्मनी पर आक्रमण किया। सम्राट फर्डीनेण्ड के प्रतिभाशाली सेनापति वेलेन्सटाइन और टेली की सेनाओं ने लट्टूर नामक स्थान पर क्रिश्चियन चतुर्थ को पराजित कर दिया और ल्यूबेक की सन्धि द्वारा युद्ध समाप्त हो गया। सफलता से उत्साहित हो फर्डीनेण्ड ने 1629 ई० में सम्पत्ति वापसी की घोषणा की जिसके अनुसार 1555 ई० के बाद कैथोलिक चर्च की जो भी सम्पत्ति जब्त की गई थी, वह सब कैथोलिक चर्च को वापस कराई गई। 

3. स्वीडिश काल (1630-1635 ई०)

स्वीडन का शासक गस्टावस एडोल्फस जर्मनी के प्रोटेस्टेन्टों की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझता था। उसका उद्देश्य उत्तरी जर्मनी के तटीय प्रदेशों को अधिकृत करके बाल्टिक सागर को स्वीडिश झील बनाना भी था। फ्रांस का प्रधानमन्त्री रिश्लू, जो कैथोलिक था, ने एडोल्फस के साथ सन्धि की और उसे धन तथा अस्त्र-शस्त्रों की सहायता दी। एडोल्फस ने बवेरिया पर आक्रमण किया। टेली युद्ध में पराजित हुआ और मारा गया। सम्राट ने वेलेन्सटाइन को बुलाकर पुनः सेनापति नियुक्त किया। एडोल्फस ने वेलेन्सटाइन को पराजित किया लेकिन एडोल्फस भी गोली लग जाने से मारा गया। वेलेन्सटाइन ने प्रोटेस्टेन्टों से समझौता करने के लिए वार्ता आरम्भ की जिसे कैथोलिकों ने पसन्द नही किया। उन्होंनें वेलेन्सटाइन की हत्या कर दी। दोनों पक्ष युद्ध से ऊब चुके थे। अतः दोनों पक्षों में प्राग की सन्धि हो गई।

4. फ्रान्सीसी काल (1635-1648 ई०)

रिश्लू प्राग की सन्धि के पक्ष में नहीं था। अतः उसने प्रत्यक्ष हस्तक्षेप का निर्णय किया। फ्रांस एक कैथोलिक देश था जो जर्मनी के प्रोटेस्टेन्टों के पक्ष में युद्ध कर रहा था। स्पष्ट था कि युद्ध अब धार्मिक की बजाय राजनीतिक हो गया था। 1643 ई० में फ्रांसीसी सेनापति कोण्डे ने निर्णायक रूप से स्पेनी सेना को पराजित कर दिया 1648 ई० में उन्होंने सम्राट और बवेरिया की सेना को बुरी तरह पराजित किया। अन्त में 1648 ई० में वेस्टफेलिया की सन्धि से युद्ध समाप्त हो गया।

वेस्टफेलिया की सन्धि 

  • पवित्र रोमन साम्राज्य का बाह्य स्वरूप तो वैसा ही बना रहा लेकिन प्रत्येक सदस्य राज्य को सार्वभौमिक अधिकार प्रदान कर दिये गये। कोई भी राज्य युद्ध और शान्ति का निर्णय कर सकता था, लेकिन यह सम्राट के विरुद्ध न हो।
  • फ्रांस को अल्सास प्रान्त और मेट्ज , तूल और  वर्दुन के किले प्राप्त हुए।
  • स्वीडन को पश्चिमी पोमेरेनिया, ब्रेमन तथा वर्डेन के प्रदेश प्रदान किये गये।
  • फ्रांस और स्वीडन को जर्मनी डायट में अपने प्रतिनिधि भेजने का अधिकार प्राप्त हुआ।
  • पेलेटिनेट के दो भाग किये गये। उत्तरी भाग बवेरिया तथा दक्षिणी भाग फ्रेडरिक के पुत्र को दिया गया।
  • स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड्स को पूर्ण स्वतन्त्र राज्य माना गया।
  • काल्विनवादियों को भी मान्यता प्रदान की गई।
  • 1624 ई० के पूर्व  कैथोलिक या प्रोटेस्टेन्ट चर्चों के पास जो सम्पत्ति थी, वह उन्हीं की मानी जायेगी।
  • साम्राज्य के न्यायालयों में कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेन्ट न्यायाधीश समान संख्या में होंगे।

तीसवर्षीय युद्ध का परिणाम 

नवयुग का आरम्भ -

युद्ध ने धर्म सुधार युग को समाप्त कर दिया। इससे स्पष्ट हो गया कि राजनीतिक प्रश्न धार्मिक प्रश्नों से अधिक महत्वपूर्ण थे।

आधुनिक राज्य व्यवस्था का आरम्भ -

युद्ध से अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति और कानून पर आधारित आधुनिक राज्य व्यवस्था के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह सिद्धान्त स्थापित हुआ कि राज्यों का आकार चाहे छोटा हो या बड़ा, वे सभी समान है। इससे यह भी स्थापित हुआ कि पोप अब राजाओं की सम्प्रभुता में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

राजनीतिक परिवर्तन -

युद्ध से फ्रांस का उत्थान आरम्भ हुआ। जर्मनी पर भी आस्ट्रिया का नियन्त्रण ढ़ीला हो गया।

बाल्टिक सागर की स्थिति -

स्वीडन ने बाल्टिक सागर को स्वीडिश झील बना लिया।

जर्मनी पर घातक प्रभाव -

इस युद्ध ने जर्मनी का आर्थिक विनाश कर दिया। विदेशी सेनायें जर्मनी की भूमि रौंदती रहीं जिससे जर्मनी पश्चिमी देशों से सौ साल पिछड़ गया।

संक्रमण काल -

इसने मध्ययुगीन दृष्टिकोण तथा परम्पराओं को दुर्बल किया और आधुनिक दृष्टिकोण का विकास किया। धर्म का प्रभाव समाप्त हो गया और राजनीतिक प्रश्न निर्णायक हो गये।

धन्यवाद।



Post a Comment

और नया पुराने