दीर्घ पार्लियामेन्ट- इंग्लैण्ड 

चार्ल्स प्रथम की पांचवी पार्लियामेन्ट को दीर्घ कहा गया है। 1640 ई० से यह पार्लियामेन्ट गृहयुद्ध तक रही। 1660 ई० में इसने स्वयं को समाप्त किया। 

दीर्घ पार्लियामेन्ट और चार्ल्स प्रथम -इंग्लैण्ड
England 

दीर्घ पार्लियामेन्ट के कार्य 

1640 ई० में पार्लियामेन्ट की बैठक आरम्भ हुई। पिम उसका नेता था। इस पार्लियामेन्ट के निम्नलिखित उद्देश्य थे - 1. कार्यपालिका की शक्ति अपने हाथों में लेना। 2. बन्दियों को मुक्त कराना तथा व्यक्तियों की जब्त की गई सम्पत्ति वापस कराना। 3. उन्हें दण्डित करना जिन व्यक्यियों के परामर्श पर चार्ल्स ने निरंकुश शासन स्थापित किया था। 4. भविष्य में निरंकुश शासन स्थापित न हो सकने की व्यवस्था करना। 5. पुरानी व्यवस्था को दूर करना। इस सम्बन्ध में उसने इन कार्यों को किया।

  • चार्ल्स की बलपूर्वक वसूली को जिन न्यायाधीशों ने वैध ठहराया था, उन्हें बन्दी बना लिया गया। जिन व्यक्तियों को चार्ल्स ने बन्दी बनाया था, उन्हें मुक्त कर दिया गया। जिनकी सम्पत्ति जब्त की गई थी, उन्हें सम्पत्ति वापस दे दी गई।
  • आर्च विशप लाड को बन्दी बनाया गया और राजद्रोह के अपराध में फांसी दी गई।
  • वेन्टवर्थ, जिसे चार्ल्स  ने अर्ल ऑफ स्टेफर्ड को उपाधि प्रदान की थी, पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया और फांसी दी गई।

दीर्घ पार्लियामेन्ट ने भविष्य में निरंकुश शासन की स्थापना सम्भव न हो सकने हेतु कई अधिनियम पारित किये जो इस प्रकार थे -

  • त्रैवार्षिक कानून के अनुसार कम से कम प्रति तीसरे वर्ष संसद की बैठक अवश्य बुलाये जाने का नियम बनाया गया।
  • उसकी स्वीकृति के बिना वर्तमान पार्लियामेन्ट को भंग नहीं किया जा सकेगा।
  • राजा की इच्छानुसार पार्लियामेन्ट की बैठक भंग नहीं की जा सकती। पार्लियामेन्ट ने 50 दिन के बाद ही भंग किया जा सकता था।
  • राजा टनेज और पौण्डेज की वसूली केवल दो महीने के लिए करेगा। कर की स्वीकृति पार्लियामेन्ट से लेना आवश्यक होगा।
  • न्यायालय जो राजा के अत्याचार के साधन बन गये थे, समाप्त कर दिये गये।
  • जहाजी कर को अवैध घोषित किया गया।
  • बलपूर्वक नाइटहुड की उपाधि देकर चार्ल्स ने धन वसूलने का कार्य किया था। इसे अवैध घोषित कर दिया गया।

पार्लियामेन्ट द्वारा पारित इन कानूनों के परिणामस्वरूप राजा की निरंकुश सत्ता समाप्त हो गई। अनिच्छा से राजा ने इन कानूनों को स्वीकार किया। पार्लियामेन्ट पर राजा को विश्वास नहीं था। इसी प्रकार राजा पर पार्लियामेन्ट के अधिकांश सदस्यों को विश्वास नहीं था। कई अन्य कारणों से राजा और पार्लियामेन्ट के मध्य अविश्वास और बढ़ गया।

  • चार्ल्स ने स्काटलैंड की यात्रा की। पार्लियामेन्ट को संदेह हो गया कि वह पार्लियामेन्ट के विरुद्ध कार्रवाई हेतु स्काट सेना की सहायता प्राप्त करना चाहता है।
  • आयरलैंड में इस समय विद्रोह हो गया जिसके दमन के लिए सेना भेजना आवश्यक हो गया था। पार्लियामेन्ट इस सेना का सेनापति स्वयं नियुक्त करना चाहती थी। उसे सन्देह था कि राजा को यह अधिकार मिलने पर वह इस सेना का प्रयोग पार्लियामेन्ट के विरुद्ध कर सकेगा।
  • पार्लियामेन्ट ने अब राजा के विरुद्ध राष्ट्र का समर्थन पाने के लिए महान विरोध पत्र पारित किया।

महान विरोध पत्र

पिम और हेम्पडन इस विरोध पत्र के प्रमुख नेता थे तथा इस महान विरोध पत्र में तीन भाग थे -

  1. चार्ल्स के अत्याचारों तथा पार्लियामेन्ट की कार्यवाही का वर्णन और भविष्य में सुधार की योजना 
  2. शासन में परिवर्तन की मांग और पार्लियामेन्ट के विश्वासपात्र व्यक्तियों को ही मन्त्री नियुक्त करना।
  3. धर्म सुधार की योजना जिसमें विशपों को हटाना तथा उनके स्थान पर संसद द्वारा मनोनीत पादरियों की सभा स्थापित करना जो धर्म पर नियन्त्रण रखे।

महान विरोध पत्र को पार्लियामेन्ट में पारित कराने में प्रबल विरोध हुआ। यह केवल ग्यारह मतों के बहुमत से पारित हुआ। इसका मुख्य कारण इसके धार्मिक प्रावधानों पर विरोध था। प्रस्ताव के विरोधी राजा के पक्ष में चले गए। राजा को विश्वास हो गया कि पार्लियामेन्ट विभाजित हो गई थी और वह उसके विरुद्ध कार्रवाई कर सकता था।

राजा द्वारा पांच सदस्यों को बन्दी बनाने का प्रयत्न 

राजा का उद्देश्य पाँच प्रमुख नेताओं - पिम, हेम्पडन, हेजलेरिंग, होल्लेस और  स्ट्रोट को गिरफ्तार करना था। सार्जेन्ट उन्हें बन्दी बनाने में असफल रहा। चार्ल्स 400 सैनिकों के साथ स्वयं पार्लियामेन्ट सदन में गया लेकिन पाँचों नेता पहले ही सदन से उठकर लन्दन नगर के संरक्षण में चले गए। दूसरे दिन राजा ने लन्दन नगर से माँग की कि उन पाँचों को समर्पित किया जाए। नगर पार्षदों ने ऐसा करना अस्वीकार कर दिया। रानी इंग्लैण्ड छोड़कर चली गई और राजा यार्क चला गया।

मिलीशिया बिल 

पार्लियामेन्ट ने घोषणा की कि पार्लियामेन्ट के किसी भी सदस्य को बन्दी नहीं बनाया जा सकता था जब तक कि पार्लियामेन्ट उसके अपराध के बारे में सन्तुष्ट न हो जाए। इस पर चार्ल्स ने पाँचों सदस्यों राजद्रोही घोषित कर दिया। पार्लियामेन्ट ने मिलीशिया अधिनियम पारित किया। इसके अन्तर्गत पार्लियामेन्ट ने आयरलैंड के विद्रोह के दमन के लिए एक सेना का निर्माण किया और उसका सेनापति नियुक्त किया। चार्ल्स ने इसे अस्वीकार कर दिया। पार्लियामेन्ट ने इसे अध्यादेश के रूप में लागू कर दिया। 

पार्लियामेन्ट का अन्तिम प्रस्ताव 

2 जून, 1642 ई० में पार्लियामेन्ट ने 14 बिन्दुओं का अन्तिम प्रस्ताव चार्ल्स के पास भेजा। प्रस्ताव के दो मुख्य बिन्दु इस प्रकार थे - 1. पार्लियामेन्ट राजा के मन्त्रियों, किलों के किलेदारों, राज्य के अधिकारियों, न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगी। 2. पार्लियामेन्ट की इच्छानुसार धार्मिक नीति का निर्धारण किया जायेगा। राजा ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और प्रत्येक काउन्टी को सैनिक एकत्रित करने का आदेश दिया। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में गृहयुद्ध आरम्भ हो गया।

दीर्घ पार्लियामेन्ट का महत्व 

इंग्लैण्ड के संवैधानिक इतिहास में दीर्घ पार्लियामेन्ट का विशेष महत्व था। इसने राजा की निरंकुश सत्ता समाप्त करने वैधानिक राजतन्त्र स्थापित करने का प्रयास किया। 

धन्यवाद 


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