असीरगढ़ दुर्ग 

असीरगढ़ दुर्ग देश के प्राचीनतम दुर्गों में से एक है। यह महेश्वर के निकट है। असीरगढ़ निमाड़ राज्य का एक प्रमुख किला है। असीरगढ़ सतपुड़ा पर्वतश्रेणी पर स्थित है। असीरगढ़ दुर्ग को लम्बी दूरी से देखा जा सकता है। खण्डवा से दक्षिण की ओर 48 किलोमीटर तथा बुरहानपुर से 20 किलोमीटर उत्तर पर रणनीतिजन्य रूप से स्थित, यह दुर्ग दक्षिण के प्रवेशद्वार के रूप में जाना जाता है। 

Asirgarh Fort
Asirgarh Fort

मुगल बादशाह अकबर को असीरगढ़ दुर्ग जीतने के लिए लोहे के चने चबाने पड़े। जब शक्तिबल से असीरगढ़ मिलना संभव नहीं जान पड़ा, तो उसने कूटनीति का सहारा लिया। एक लालची गुप्त सिपाही ने गुप्त सुरंग का राज बता दिया, तब अकबर ने दुर्ग को फतह किया। आदिलखाँ के मकबरे की दीवार पर मुगल बादशाह अकबर द्वारा खुदवाए गये फारसी अभिलेख में उसकी असीरगढ़ दुर्ग की विजय के बारे में जाना जा सकता है। अकबर ने आठ महीने की घेराबंदी के बाद 17 जनवरी 1601 ई० में इस किले को फतह किया था। 

खण्डवा बुरहानपुर के मध्य असीरगढ़ रोड़ पर रेलवे स्टेशन आता है। उत्तर से दक्षिण जाने वाला प्राचीन राजमार्ग किले के नीचे से गुजरता है। इतिहास में इसे दक्षिण द्वार कहा गया है। उस समय दक्षिण भारत की विजय हासिल करने के लिए असीरगढ़ को जीतना जरूरी था।

दुर्ग के प्रवेशद्वार पर केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के सूचना पट्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत से दक्षिण को जोड़ने वाले प्राचीन मार्ग पर यह दुर्ग सबसे ऊंचे और शक्तिशाली गढ़ों में से एक है। इसकी तीन किलेबंदियां हैं। सबसे ऊंचे किले का नाम असीरगढ़, बीच में कमरगढ़ और तलहटी में मलयगढ़ है। दक्षिणी भाग में भयावह ढलान है। चट्टानों की लम्बी ढलान के कारण दुर्ग में जाने के दो मार्ग, पूर्व और उत्तर में हैं। ऊपरी भाग का पहाड़ी शिखर प्रपाती है और ये ढलानें पहाड़ियों से सुरक्षित हैं। दूसरी पहाड़ी पर कमरगढ़ है, जिसे फारूखी सुल्तान आदिलशाह ने बनवाया था। कमरगढ़ और असीरगढ़ को मिलाने के लिए 10 मीटर ऊंची प्राचीर है। चट्टान के पास राजा गोपालदास ने बड़ा दरवाजा बनवाया था, सात दरवाजों को पार करके मुख्य द्वार तक पहुंचा जा सकता है।

दुर्ग में विक्रमादित्य के द्वारा बनाया हुआ शिव मन्दिर तालाब के किनारे पर है। महाभारत के युद्ध नायक अश्वत्थामा, यहां शिवपूजन के लिए आया करते थे। किले में बने शिव मन्दिर को अश्वत्थामा मन्दिर भी कहते हैं।

गढ़ की चोटी पर मस्जिद बनी है। उस पर लगे शिलालेख पर अरबी और संस्कृत में फारूखी बादशाहों की नामावली है। असीरगढ़ में तालाब, कुंआ और बावड़ियों की काफी संख्या है। असीरगढ़ दुर्ग को एक चरवाहे आसा अहीर ने सन् 1370 ईस्वी में बनवाया था। पृथ्वीराज रासो में भी असीरगढ़ के किले का वर्णन मिलता है। यह दुर्ग भारत के सर्वाधिक पुराने दुर्गों में से एक है। इस दुर्ग पर आसा अहीर के वंशजों ने 200 वर्षों तक शासन किया।

अलाउद्दीन खिलजी ने सन् 1295 ईस्वी में देवगिरी की विजय से लौटते समय असीरगढ़ को फतह किया था और सन् 1400 ईस्वी में आसा अहीर के वंशजों से फारूखी बादशाह नसीरखान ने धोखे से किला छीना था। फारूखी बादशाहों ने गढ़ के परकोटे और किलेबंदी को और मजबूत किया।

दुर्ग का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्रमुख द्वार के निकट है जहां गन टॉवर के नाम से प्रसिद्ध एक विशाल बुर्ज, दक्षिण-पश्चिम की ओर की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूती देने हेतु निर्मित किया गया था। यह नुकीले कोनों वाले अनेक परकोटों से युक्त है। इस टॉवर पर बाहरी सीढ़ियों से होकर पहुंचा जा सकता है और  एक नुकीले मेहराब वाले द्वार मार्ग से इसमें प्रवेश किया जा सकता है।

धन्यवाद 


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