भारतीय दुर्ग 

दुर्ग, जो दुर्गम शब्द से बना है, जिसका अर्थ है – जहाँ पहुँचना कठिन हो। दुर्ग शब्द पहली बार हमारे देश के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में देखने को मिलता है। दुर्ग के लिए अरबी भाषा का शब्द है किला, जिसका अर्थ है – लड़ाई के समय रक्षा का एक सुरक्षित स्थान। इसी से किलेदार और किलेबंदी जैसे शब्द बने हैं। वैदिक काल में पुर शब्द का अर्थ था- बाड़ा और  खाई से घिरी हुई बस्ती। इन्द्र ने ऐसे अनेक पुरों को नष्ट किया था, इसलिए उसे पुरन्दर कहा गया। दुर्ग के लिए अन्य प्रचलित शब्द हैं – कोट और गढ़। लैटिन और फ्रांसीसी भाषाओं के फोर्टिस शब्द से अपनाए गए अंग्रेजी के फोर्ट शब्द का अर्थ है – मजबूत।

Indian fort
Indian Fort

प्राचीन काल से ही दुर्ग को राज्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। महाभारत, रामायण और पुराणों में दुर्गों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। वाल्मीकि रामायण में अयोध्या,  किष्किंधा, लंका जैसे नगरों का वर्णन किया गया है जिससे पता चलता है कि उस समय के नगरों और दुर्गों की रक्षा के लिए उनके चारों ओर खाइयां खोदी जाती थीं। रक्षा दीवारों के ऊपर बुर्ज बनाए जाते थे। इनके ऊपर से शत्रु की हलचल पर नजर रखी जाती थी। नगर के चारों ओर प्रवेशद्वार बनाए जाते थे। महाभारत के शांतिपर्व में कहा गया है कि जो नगरी दुर्ग वाली हो, सुदृढ़ परकोटे और परिखा से घिरी हो, बलवान मनुष्यों तथा हाथी- घोड़ों से सुशोभित हो, उसी में राजा को निवास करना चाहिए। मनुस्मृति, कौटिल्य के अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र से सम्बन्धित ग्रन्थों में दुर्गों के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाएं हैं। इनमें एक स्वतन्त्र विषय के रूप में दुर्गविद्या की चर्चा की गई है। भारतीय प्राचीन ग्रंथों में प्रमुख रूप से दुर्गों के छह प्रकार बताए गए हैं- 

गिरीदुर्ग – पहाड़ की चोटी पर बना दुर्ग

जलदुर्ग – नदी, सरोवर या समुद्र के जल से घिरा हुआ दुर्ग

धन्वदुर्ग – मरूभूमि अथवा दलदली भूमि पर बना दुर्ग 

महीदुर्ग – सामान्यतः भूमि पर बना दुर्ग 

वनदुर्ग – वह दुर्ग जिसके चारों ओर घना जंगल हो

नरदुर्ग – ऐसे साहसी आदमियों की बस्तियों से घिरा दुर्ग जो जरूरत के समय राजा की सहायता कर सके

मनुस्मृति में गिरीदुर्ग को अधिक गुणों वाला बताया गया है; इसमें नाना प्रयत्नों से शत्रु का संहार किया जा सकता है। कौटिल्य ने गिरीदुर्ग और जलदुर्ग को सबसे उत्तम बताया है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में बताया है कि दुर्ग में आवश्यक वस्तुओं का भरपूर संग्रह होना चाहिए और जरूरत पड़ने पर दुर्ग से निकल भागने के लिए उसमें गुप्त मार्ग बनाए जाने चाहिए।

कामंदकी का नीतिसार राज्य के सात अंगों में दुर्ग को शामिल करता है और  बताता है कि दुर्ग के बिना राजा उसी प्रकार असहाय है, जिस प्रकार तूफान द्वारा भगाए जाने वाले बादल। एक अच्छे दुर्ग में जल और खाद्य पदार्थों का पर्याप्त भण्डार, हथियार और दूसरी युद्ध सामग्री का भरपूर संचय, बहादुर सैनिकों की रक्षक सेना और गुप्त शरण स्थल तथा बाहर निकलने के लिए मार्ग होना चाहिए।

प्राचीन भारत के दुर्गों की दीवारें और उनके प्रवेशद्वार कैसे थे, इसके दृश्य सांची, भरहुत आदि के शिल्पांकनों में देखने को मिलते हैं। सांची के एक दृश्य में नगर को पत्थरों की एक मजबूत दीवार से घेरे हुए दिखाया गया है। कुशीनगर का प्रवेश द्वार इतना ऊंचा था कि उसमें से हाथी, उस पर सवार महावत सहित,  गुजर सकता था। सांची के एक दृश्य में एक स्त्री को परकोटे के पास की परिखा से पानी भरते हुए दिखाया गया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में बताया गया है कि परिखा में मगरमच्छ पालने चाहिए, ताकि शत्रु उसे तैरकर पार न कर सके।

भारत में मिले दुर्ग या किले के सबसे प्राचीन अवशेष सिन्धु सभ्यता के ही हैं। सिन्धु सभ्यता के लगभग एक दर्जन नगरों की खुदाई में परकोटे के अवशेष मिले हैं। किलेबंदी के सबसे प्राचीन अवशेष हड़प्पा काल के कुछ पहले के कोट दीजी स्थान से प्राप्त हुए हैं। सिन्धु सभ्यता के मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगा जैसे प्रमुख नगरों के दो भाग रहे हैं – पश्चिम की ओर मिट्टी की ईंटों के ऊंचे चबूतरे पर बना आयताकार दुर्ग और पूर्व की ओर मुख्य आबादी वाला निचला शहर। 

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे कुछ प्रमुख नगरों में केवल गढ़ी  (दुर्ग) को ही दीवार से घेरा गया था, मगर कालीबंगा में निचले शहर की भी घेराबंदी की गई थी। सिन्धुजनों ने धुप में सुखाई और आवें में पकाई , दोनों ही प्रकार की ईंटों का प्रयोग किया है – न केवल अपने मकानों के निर्माण में, बल्कि दुर्ग की दीवार बनाने में भी। दुर्ग की दीवार काफी चौड़ी थी और प्रवेशद्वारके दोनों तरफ बुर्ज बने हुए थे।

धन्यवाद 

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