होमरूल आन्दोलन
होमरूल आन्दोलन की प्रेरणा एक आयरिश महिला श्रीमती ऐनी बिसेन्ट ने दी थी जिन्होंने थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना की थी। आयरलैंड में होमरूल लीग की स्थापना आयरिश नेता रेमण्ड ने की थी। लीग का उद्देश्य वैधानिक और शान्तिपूर्ण उपायों से आयरलैंड के लिए होमरूल प्राप्त करना था। श्रीमती ऐनी बिसेन्ट चाहती थीं कि उसी प्रकार वैधानिक और शान्तिपूर्ण आन्दोलन भारत में भी चलाया जाए। इसी उद्देश्य से वे 1914 ई० में काँग्रेस में सम्मिलित हुई। आन्दोलन को सफल बनाने के लिए उन्होंने एक महत्वपूर्ण कार्य किया कि उदारवादियों तथा उग्रवादियों में समझौता कराके काँग्रेस में एकता स्थापित की। बाद में उन्होंने काँग्रेस और लीग के मध्य समझौता कराने में योगदान किया।
Annie Besent |
होमरूल लीग का गठन
दिसम्बर 1915 ई० में श्रीमती ऐनी बिसेन्ट ने काँग्रेस अधिवेशन में आग्रह किया कि उन्हें सारी शक्ति होमरूल प्राप्त करने में लगानी चाहिए। 1915 ई० में गंगाधर तिलक ने श्रीमती ऐनी बिसेन्ट की योजना को स्वीकार कर लिया था। उन्होंने स्वराज के स्थान पर होमरूल शब्द का प्रयोग करना स्वीकार कर लिया। श्रीमती ऐनी बिसेन्ट चाहती थीं कि काँग्रेस भी अपना उद्देश्य होमरूल के रूप में स्वीकार कर ले। श्रीमती ऐनी बिसेन्ट ने स्पष्ट कर दिया कि अगर सितम्बर 1916 तक काँग्रेस प्रस्ताव को क्रियान्वित नहीं करेगी तो वह अपनी होमरूल लीग का गठन कर लेंगी और आन्दोलन भी आरम्भ कर देंगी। तिलक प्रतिक्षा करने के लिए तैयार नहीं थे। अतः अप्रैल, 1916 ई० में महाराष्ट्र काँग्रेस के प्रान्तीय वेलगाँव सम्मेलन में उन्होंने होमरूल लीग के गठन की घोषणा कर दी जिसका मुख्यालय पूना था। इससे श्रीमती ऐनी बिसेन्ट के समर्थकों ने भी तुरन्त कार्यवाही की माँग की और 1सितम्बर को मद्रास में अखिल भारतीय होमरूल लीग की स्थापना की जिसका मुख्यालय अड्यार था।
होमरूल आन्दोलन के उद्देश्य
भारतीय जनता को यह बताना कि स्वशासन प्राप्त करना उनका अधिकार था और अंग्रेजों को यह बताना कि भारत को होमरूल देना उनके हित में भी है।
कुछ विशिष्ट उद्देश्य
- ब्रिटिश साम्राज्य के अन्य उपनिवेशों के समान भारत को औपनिवेशिक शासन प्राप्त कराना।
- इस आन्दोलन का उद्देश्य शान्ति बनाये रखना था और सरकार को सहयोग देना था।
- भारत में उग्रवादी विचारधारा को रोकना था।
- 1912 ई० के बाद भारत में राष्ट्रवादी आन्दोलन लगभग समाप्त हो गया था। देश में एक प्रकार की राजनीतिक रिक्तता थी। इस रिक्तता को भरने की आवश्यकता थी।
होमरूल का प्रचार
प्रचार कार्य के लिए तिलक तथा ऐनी बिसेन्ट ने क्षेत्रों का बँटवारा कर लिया। तिलक की लीग का क्षेत्र कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रान्त, बरार था। देश के बाकी क्षेत्रों में श्रीमती ऐनी बिसेन्ट का कार्यक्षेत्र था। तिलक ने महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि क्षेत्रों का धुआँधार दौरा किया। श्रीमती ऐनी बिसेन्ट ने बंगाल, संयुक्त प्राप्त आदि क्षेत्रों में जोरदार प्रचार किया। तिलक की लीग की सदस्य संख्या श्रीमती ऐनी बिसेन्ट की लीग से लगभग दूनी थी और उनका प्रचार कार्य भी ज्यादा था। लेकिन श्रीमती ऐनी बिसेन्ट ने प्रचार कार्य में कुछ आधारभूत कार्य भी किये गये जैसे जनता को राजनीतिक शिक्षा देना, पुस्तकालयों की स्थापना, छात्रों को शिक्षा देने के लिए कक्षाओं का आयोजन, पेम्फ्लेट बाँटना, सामाजिक कार्य करना, आन्दोलन के पक्ष में बहस आयोजित करना आदि। दोनो लीग के कार्यकर्ताओं ने प्रचार कार्य को अत्यन्त उत्साह से किया। लाखों पेम्फ्लेट गांव-गांव, नगर-नगर में बाँटे जा चुके थे। ये पेम्फ्लेट क्षेत्रीय भाषाओं में थे। प्रचार का एक ढंग था- बाजार में, स्कूलों में बैठकों का आयोजन करना। वास्तव में, सम्पूर्ण आन्दोलन एक बौद्धिक प्रक्रिया थी जिसमें सम्पूर्ण जनता को शामिल किया गया था। सारा आन्दोलन पूर्ण रूप से शान्त तथा वैधानिक था।
सरकार का दमन
1916 ई० में श्रीमती ऐनी बिसेन्ट के बरार और मध्य प्रान्त में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 1917 ई० में तिलक पर पंजाब और दिल्ली जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया, 1915 ई० में डिफेन्स ऑफ इण्डिया रूल लगाया गया। छात्रों द्वारा राजनीतिक बैठकों में भाग लेने पर सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया। मद्रास सरकार ने श्रीमती ऐनी बिसेन्ट तथा उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया। श्रीमती ऐनी बिसेन्ट की रिहाई के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। 1916 ई० में तिलक को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकद्दमा चलाया गया। 1917 ई० में माण्टेग्यू के भारतमंत्री बनने के बाद श्रीमती ऐनी बिसेन्ट को रिहा कर दिया गया।
आन्दोलन का शिथिल होना
- भारतमन्त्री माण्टेग्यू की सुधार घोषणा 8 जुलाई, 1917 ई० को प्रकाशित हुई। इससे आन्दोलनकारियों में मतभेद उत्पन्न हो गए। कुछ इससे सन्तुष्ट थे, कुछ अस्थायी तौर पर इसे आजमाना चाहते थे, कुछ इसे अस्वीकार करना चाहते थे।
- श्रीमती ऐनी बिसेन्ट ने सुधारों को पर्याप्त बताया और आन्दोलन से पृथक हो गयीं।
- तिलक अकेले आन्दोलन चलाने में असमर्थ थे। इसके अलावा एक मुकद्दमे के सिलसिले में वह इंग्लैण्ड चले गए। इससे आन्दोलन बन्द हो गया।
- नरमपंथी श्रीमती ऐनी बिसेन्ट की रिहाई और सुधारों से सन्तुष्ट थे। वे आन्दोलन से पृथक हो गये।
- तिलक का आन्दोलन चलता रहा लेकिन उसमें अब शक्ति नहीं थी। अगस्त 1920 ई० को उनकी मृत्यु से यह नाममात्र का आन्दोलन भी समाप्त हो गया।
आन्दोलन का महत्व
होमरूल आन्दोलन ने युद्धकाल में एक राष्ट्रीय आवश्यकता को पूरा किया था। युद्धकाल में सरकार आन्दोलन का कठोरता से दमन करने को तैयार थी जिससे युद्ध प्रयासों में बाधा न पड़े। अतः इस स्थिति में एक ऐसे आन्दोलन की आवश्यकता थी जो पूर्णरूप से शान्तिपूर्ण और वैधानिक हो और अंग्रेजों को आपत्ति न हो।
आन्दोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से घोषणा कराना था। 20 अगस्त, 1917 ई० को माण्टेग्यू घोषणा में कहा गया था कि भारत में ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य क्रमिक रूप से उत्तरदायी शासन स्थापित करना था। पहली बार ब्रिटिश सरकार ने उत्तरदायी शब्द का प्रयोग किया था।
इस प्रकार होमरूल आन्दोलन ने देशभक्तों की एक नई पीढ़ी तैयार की जिसे नेता की आवश्यकता थी। 1919 ई० में जब गाँधीजी ने रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह की अपील की तो ये सभी देशभक्त इस आन्दोलन में शामिल हो गए।
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