शिवनेरी दुर्ग 

शिवाजी के चरित्र निर्माण में शिवनेरी दुर्ग ने बड़े महत्व की भूमिका निभाई। शिवाजी का बचपन शिवनेरी और आसपास के पहाड़ी परिसर में बीता। 

शिवनेरी दुर्ग - महाराष्ट्र
Shivneri Fort

शिवनेरी दुर्ग पुणे से करीब 85 किलोमीटर उत्तर में जुन्नार शहर के नजदीक है। यह त्रिभुजाकार किला सह्यादि की लगभग 300 मीटर ऊंची एक पृथक पहाड़ी पर स्थित है। इसका चौड़ा आधार भाग दक्षिण की ओर और संकरा शीर्षभाग उत्तर की ओर है। किले की दीवार काफी ऊंची और  फिसलन वाली है, जो चट्टानें काटकर बनाई गई है। किले में प्रवेश के लिए महादरवाजा, परवन, पीर, शिवाई आदि सात दरवाजे हैं। ये सभी मजबूत किलेबंदी और बुर्जों से युक्त रहे हैं। एक किलोमीटर की चढ़ाई के बाद पहला महादरवाजा आता है। 

दूसरे और तीसरे दरवाजों पर शरभ की शिल्पाकृतियां उकेरी हुई हैं। बाघ और सिंह से मिलते-जुलते इस काल्पनिक पशु की आकृतियां महाराष्ट्र के अन्य कई दुर्गों के प्रवेश द्वारों पर भी देखने को मिलती हैं। इन आकृतियों में प्रायः दिखाया जाता है कि शरभ (जिसे शार्दुल भी कहते हैं) अपने पंजों में हाधियों को पकड़े हुए है। शरभ को विजयी सत्ता का और पकड़े हुए हाथियों को पराजित सत्ता का प्रतीक माना जाता था।

पांचवे शिवाई नामक दरवाजे से किले की तीसरी किलेबंदी शुरू होती है। इस दरवाजे के फाटक में लोहे की नुकीली कीलें ठुकी हुई हैं, ताकि वह हाथी की टक्कर को सह सके। पांचवे दरवाजे को पार करने के बाद एक रास्ता दाईं ओर जाता है। थोड़ी दूरी पर देवी शिवाई का प्राचीन मंदिर है। शिवाई को इस दुर्ग की मुख्य देवी माना जाता है। सम्भवतया इसी के नाम पर बालक शिवाजी का नाम रखा गया।

ऊपर पहुंचने के लिए दो और दरवाजे पार करने पड़ते हैं। छठा दरवाजा 85 मीटर की ऊंचाई पर और सांतवा दरवाजा आगे 25 मीटर की ऊंचाई पर है। अंतिम दरवाजे को पार करके थोड़ी बाईं ओर जाने पर अस्तबल और अंबारखाना (मालगोदाम) के कमरों की कतारों के खंडहर नजर आते हैं। नजदीक ही मुस्लिम काल के शासकों के महलों के अवशेष हैं।

शिवनेरी पर चट्टान को काटकर लगभग 30 कुंड और तालाब बनाए गए थे। अंग्रेजों ने उसमें से कई जलकुंड नष्ट कर दिए। मगर कुछ अब भी बचे हुए हैं, जिनमें से दो के नाम गंगा और यमुना हैं। दुर्ग में अब कुछ ही स्मारक शेष बचे हैं। एक सिरे पर अंबारखाना है, तो दूसरे सिरे पर वह स्थान जहां 19 फरवरी, 1630 ई० को शिवाजी का जन्म हुआ था। जन्मस्थान की पुरानी इमारत ढह गई थी। आधुनिक काल में शिवभक्तों ने उसका पुनर्निमाण करके उसे नया रूप दे दिया। शिवाजी के जन्मस्थान के पास ही महाराष्ट्र शासन द्वारा निर्मित शिवकुंज नामक एक नया मंदिर है। इसमें माता जीजाबाई और बालक शिवाजी की पंचधातु की मूर्तियां हैं।

थोड़ी दूरी पर दो मीनारों वाली मुगल काल की एक मस्जिद है। मीनारें 7 मीटर ऊंची हैं और उनके बीच की 9 मीटर की दूरी को मेहराबों से जोड़ा गया है। करीब 35 मीटर ऊपर चढ़ने के बाद मजार और ईदगाह हैं। कुछ दूरी पर एक चौथरा है। सन् 1650 ई० में जब इस क्षेत्र के महादेव कोली कबीले के सैकड़ों आदमियों ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह किया था, तब उन्हें शिवनेरी दुर्ग में मौत के घाट उतार दिया गया था। उसी स्थान पर यह चौथरा बना है। 

शिवनेरी दुर्ग पर पहुंचने के लिए एक ओर रास्ता है। किले के पूर्वोत्तर में जुन्नर शहर है। वहां से शिवनेरी की ओर आगे बढ़ा जाए, तो आधी चढ़ाई के बाद दाईं ओर एक पैदल रास्ता मिलता है, जो सीधी चढ़ाई के बाद किले पर पहुंचा देता है। इस रास्ते से जाने पर,  सीढ़ियों की खड़ी चढ़ाई के पहले, बाईं ओर कई बौद्ध गुफाएं हैं। ऐसी बौद्ध गुफाएं शिवनेरी की पश्चिम और दक्षिण दिशाओं की ढलानों पर भी हैं। इन गुफाओं में कई अभिलेख भी मिले हैं। इनसे पता चलता है कि ईसा की आरंभिक तीन सदियों में यह स्थान एक प्रसिद्ध बौद्ध केन्द्र रहा है।

शिवनेरी दुर्ग का इतिहास बहुत पुराना है। मौर्यों के बाद सातवाहन शासकों ने महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश पर 236 ई०पू० से 230 ई० तक, लगभग साढ़े चार सौ साल तक, शासन किया। उनकी एक राजधानी गोदावरी तट के पैठन (प्राचीन प्रतिष्ठान) नगर में थी, तो दूसरी राजधानी शिवनेरी दुर्ग के समीप जुन्नर नगर में। सातवाहनों के बाद इस क्षेत्र में चालुक्यों और राष्ट्रकूटों का शासन रहा। फिर शिवनेरी पर यादवों की सत्ता रही। उनके बाद यह दुर्ग बहमनी सुल्तानों के अधिकार में चला गया। बहमनी सत्ता के पांच भाग हो जाने पर शिवनेरी दुर्ग अहमदनगर के निजामशाह के अधिकार में आया। निजामशाह ने 1595 ई० में यह किला मालोजी भोसले (शिवाजी के दादा) को जागीर के रूप में सौंपा और फिर यह शाहजी (शिवाजी के पिता) को उत्तराधिकार में मिला। शिवाजी के आरंभिक छह-सात साल शिवनेरी दुर्ग में ही बीते। 

बाद में शिवनेरी दुर्ग मुगलों के अधिकार में चला गया। इस दुर्ग का सामरिक दृष्टि से बड़ा महत्व था, इसलिए औरंगजेब ने यहां बड़ी संख्या में सैनिक तैनात कर रखे थे। जन्मस्थान और बाल्यकाल की क्रीड़ास्थली होने के कारण शिवाजी को इस दुर्ग से विशेष लगाव था। उन्होंने मुगलों से इसे वापस लेने के तीन बार प्रयास किए,  किन्तु सफलता नहीं मिली। मराठे इस किले को 1762 ई० में ही वापस ले सके। 1818 ई० में पेशवाशाही का अंत हुआ, तो मराठों के अन्य किलों के साथ-साथ शिवनेरी भी अंग्रेजों के अधिकार में चला गया। उन्होंने महाराष्ट्र के गिरीदुर्गों के अधिकांश रक्षा साधनों, प्रवेश द्वारों और जलकुंडों को तहस-नहस कर डाला।

शिवाजी का जन्मस्थान होने के कारण शिवनेरी दुर्ग के साथ महाराष्ट्रवासियों का भावनात्मक लगाव बरकरार रहा। नए महाराष्ट्र राज्य के गठन की घोषणा 27 अप्रैल, 1960 ई० को इसी दुर्ग में की गई थी।

धन्यवाद 


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