सुवर्णदुर्ग
Suvarnadurga |
सुवर्णदुर्ग की दीवार ठोस चट्टान को काटकर उठाई गई है और बड़े-बड़े चौकोर प्रस्तर-खंडों का उपयोग करके परकोटे को ऊंचा किया गया है। चुनाई के लिए किसी मसाले का इस्तेमाल नहीं हुआ है। किले की दीवार में कई बुर्ज बने हैं और इसकी पश्चिम दिशा में, खुले समुद्र की ओर, एक दरवाजा बना हुआ है। पूर्व की ओर का मुख्य प्रवेशद्वार, जो भूमि की ओर से छिपा हुआ है, उत्तराभिमुख है। दरवाजे की दहलीज पर एक कच्छप की शिल्पाकृति उकेरी गई है और उसके बगल की दीवार में मारूति (हनुमान) की मूर्ति बनाई गई है। किले के भीतर कई इमारतें, जलकुंड और बारूदखाना तथा शस्त्रागार के लिए स्थान थे। सभी इमारतें नष्ट हो गई हैं।
सुवर्णदुर्ग का निर्माण 17वीं सदी के आरंभ में सम्भवतः बीजापुर के आदिलशाही शासकों ने किया था। शिवाजी ने इस किले को जीतकर उसकी मरम्मत कराई और इसे एक मजबूत जलदुर्ग में बदल डाला। सुवर्णदुर्ग भी मराठा नौसेना का एक प्रमुख गढ़ बन गया।
सुवर्णदुर्ग के समीप समुद्रतट पर तीन छोटे किले हैं – गोवा, कणकदुर्ग और फतहगढ़। इनके और सुवर्णदुर्ग के बीच में तीन-चार सौ मीटर का जलांतराल है। इन तीन छोटे किलों में तट पर बना गोवा सबसे मजबूत था। इसके दो दरवाजे हैं – एक पूर्व दिशा में जमीन की ओर और दूसरा उत्तर दिशा में समुद्र की ओर, सुवर्णदुर्ग की दिशा में। समुद्री द्वार के बराबर की दीवार पर बाघ, गरूड़ और हाथियों की शिल्पाकृतियां उकेरी गई हैं। किले के भीतर की पुरानी इमारतें नष्ट हो गई हैं। इसका दक्षिणी भाग समुद्र सतह से करीब 15 मीटर ऊंचा है।
कणकदुर्ग की स्थिति ऐसी है मानो हर्णे बन्दरगाह से एक छोटी पहाड़ी चट्टान समुद्र में डाल दी गई है। इसकी तीन दिशाओं में समुद्र है और अब इसके केवल दो खंडित बुर्ज कायम हैं। इस किले के सबसे ऊंचे स्थान पर एक दीपस्तम्भ है। फतहगढ़ पूर्तः नष्ट हो गया है। सम्भवतः इन तीनों तटवर्ती छोटे किलों को, सुवर्णदुर्ग की सुरक्षा के लिए, कान्होजी आंग्रे ने बनवाया था।
सन् 1755 ई० तक सुवर्णदुर्ग और विजयदुर्ग किले कान्होजी आंग्रे के पौत्र तुलाजी के अधिकार में थे। आंग्रे और पेशवा में अनबन चल रही थी। पेशवा ने अंग्रेजों के साथ मिलकर सुवर्णदुर्ग और विजयदुर्ग पर कब्जा करने की योजना बनाई। कमोडोर जेम्स के नेतृत्व में अंग्रेजों के जहाज मुम्बई से 29 मार्च, 1755 ई० को सुवर्णदुर्ग के समीप पहुंच गए। शीघ्र ही पेशवा के जहाज भी वहां पहुंच गए। तुलाजी की मराठा नौसेना सुवर्णदुर्ग की रक्षा में तैनात थी। परन्तु जब उन्होंने देखा कि अंग्रेजों और पेशवा के जहाज मिलकर एकसाथ हमला करने वाले हैं, तो तुलाजी ने वहां से हटकर अपने जहाज दक्षिण में विजयदुर्ग की ओर ले जाने का फैसला किया। तब अंग्रेजों के जहाजों ने नजदीक के तीनों किलों पर भारी बमबारी की। वहां के बारूदखाने में आग लगने से वे किले नष्ट हो गए।
उसके पश्चात अंग्रेजों के जहाजों ने मुख्य किला सुवर्णदुर्ग पर भारी बमबारी शुरू कर दी। फिर उनके एक साहसी दल ने किले में प्रवेश करके उस पर अधिकार कर लिया। 3 अप्रैल, 1755 ई० को सुवर्णदुर्ग का पतन हो गया। कहा जा सकता है कि उसके साथ ही मराठा नौसेना का भी अन्त हो गया।
सुवर्णदुर्ग पर अंग्रेजों के अधिकार को भारतीय नौसेना के इतिहास में बड़े महत्व का माना जाता है। बाद में कमोडोर जेम्स की विधवा पत्नी ने इंग्लैंड के केंट नामक स्थान पर एक स्मारक खड़ा करके उस पर भारत में अपने पति की प्रमुख उपलब्धियों को अंकित कराया, तो उसमें 3 अप्रैल, 1755 ई० को सुवर्णदुर्ग पर अंग्रेजों की विजय का विशेष रूप से उल्लेख किया।
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