चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई०)
वेलेजली की साम्राज्यवादी नीति थी। वह भारत में फ्रांसीसी गतिविधियों को पूर्ण रूप से नष्ट कर देना चाहता था। मैसूर फ्रान्सीसियों की गतिविधियों का केन्द्र था, अतः वेलेजली मैसूर पर आक्रमण करना चाहता था। उसने पहले निजाम को सहायक सन्धि के अन्तर्गत लाकर उसे मैसूर से पृथक कर दिया। अन्त में युद्ध की तैयारी पूरी हो जाने पर उसने टीपू पर श्रीरंगपट्टनम की सन्धि के उल्लंघन का आरोप लगाया और मांग की कि सहायक सन्धि स्वीकार करके वह अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करे। टीपू ने सहायक सन्धि करना अस्वीकार कर दिया। इस पर वेलेजली ने उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
Fourth Anglo-Mysore War |
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण
टीपू द्वारा युद्ध की तैयारी -
श्रीरंगपट्टनम की सन्धि टीपू के प्रति घोर अपमानजनक थी। टीपू इसका प्रतिशोध लेने के लिए युद्ध की तैयारी कर रहा था। वेलेजली को ज्ञात था कि वह अंग्रेजों का कट्टर शत्रु था। अतः वेलेजली उसकी शक्ति को पूर्ण रूप से नष्ट करना चाहता था।
फ्रांसीसी आक्रमण का भय -
नेपोलियन की योजनाओं को असफल करने के लिए भारत से फ्रांसीसी गतिविधियों को नष्ट करना वेलेजली का उद्देश्य था। इस समय टीपू के दरबार में फ्रांसीसी प्रभाव स्थापित था। अतः वेलेजली मैसूर राज्य को नष्ट करना चाहता था।
निजाम और मराठों का सहयोग -
वेलेजली ने निजाम से सन्धि करके तथा सिन्धिया के प्रभाव का लाभ उठाकर पेशवा का समर्थन भी प्राप्त कर लिया था लेकिन मराठों ने टीपू पर आक्रमण में सहयोग देना अस्वीकार कर दिया था। अतः मराठा तटस्थता को प्राप्त करने के बाद उसने टीपू पर युद्ध थोप दिया।
वेलेजली की साम्राज्यवादी नीति -
वेलेजली का उद्देश्य भारत में अंग्रेजी सत्ता को सर्वोच्च बनाना था। इसके लिए वह मराठों से संघर्ष आवश्यक मानता था। अतः अब मैसूर को बफर राज्य के रूप में रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अतः मराठों से युद्ध आरम्भ करने के पूर्व उसने मैसूर राज्य को नष्ट करने का निर्णय किया।
टीपू द्वारा सहायक सन्धि अस्वीकार -
वेलेजली ने पहले टीपू के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वह सहायक सन्धि स्वीकार करे। टीपू के अस्वीकार करने पर वेलेजली ने युद्ध की घोषणा कर दी।
युद्ध की घटनाएँ
युद्ध अल्पकालिक और निर्णायक था। मैसूर पर अंग्रेजी सेनाओं ने चारों ओर से आक्रमण किया। कर्नाटक से जनरल हेरिस, कुर्ग से जनरल स्टुअर्ट, हैदराबाद से कर्नल वेलेजली, दक्षिण से कर्नल रीड तथा कर्नल ब्राउन ने एक साथ श्रीरंगपट्टनम की ओर बढ़ना शुरू किया। टीपू ने सीमावर्ती दुर्गों को रक्षापंक्ति बनाया था लेकिन अंग्रेजों के तोपखाने ने इस रक्षापंक्ति को भंग कर दिया। टीपू जनरल स्टुअर्ट से सदासीर तथा जनरल हेरिस से मलावली स्थानों पर पराजित हो गया। इन पराजयों के कारण विवश होकर टीपू को श्रीरंगपट्टनम के दुर्ग में शरण लेनी पड़ी। अंग्रेज़ी सेना ने दुर्ग को घेर लिया। इस स्थिति में टीपू ने सन्धि वार्ता चलाने का प्रयास किया लेकिन जो शर्ते रखी गयीं; वे इतनी कठोर थीं कि टीपू ने युद्ध जारी रखना श्रेयस्कर समझा। अन्त में टीपू युद्ध करते हुए मारा गया और 4 मई, 1799 ई० को अंग्रेजों ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
परिणाम
- वेलेजली ने मैसूर राज्य का विभाजन कर दिया।
- वेलेजली ने शेष मैसूर राज्य को वोदेयार राजवंश के एक अल्पव्यस्क राजकुमार को दे दिया। पूर्णिया को उसका मन्त्री नियुक्त किया गया। उसके साथ सहायक सन्धि की गयी।
- टीपू के पुत्रों को बन्दी के रूप में बेल्लौर भेज दिया गया।
- इस युद्ध की सफलता के लिए वेलेजली को मार्क्विस की उपाधि प्रदान की गयी। उसने अंग्रेजों के सबसे कट्टर शत्रु को नष्ट कर दिया था।
मूल्यांकन
वेलेजली की मैसूर नीति की आलोचना की गयी है कि उसने बिना पर्याप्त कारण के युद्ध किया था। उसने अन्य भारतीय शासकों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं की जिन्होंने टीपू के समान फ्रान्सीसी सैनिक रखे थे। यह आलोचना निराधार है क्योंकि वेलेजली साम्राज्यवादी था और ब्रिटिश साम्राज्य के हित में वह टीपू का विनाश आवश्यक समझता था। टीपू की भयंकर भूल यह थी कि उसने मराठों तथा निजाम के सहयोग का महत्व नहीं समझा। उसकी पराजय का अन्य कारण उसके अधिकारियों का विश्वासघातथा। वस्तुतः हैदरअली का उत्थान अंग्रेजों के लिए चिन्ता का कारण बन गया था। अतः मैसूर की शक्ति के विनाश का उन्होंने निरन्तर प्रयत्न किया और इसके लिए निजाम और मराठों की सहायता भी प्राप्त की।
धन्यवाद
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