महमूद गजनवी 

महमूद गजनवी यामिनी वंश के गजनी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। उसका जन्म 971 ई० में हुआ था। सुबुक्तगीन ने 986 ई० में शाही राजा जयपाल के सीमावर्ती क्षेत्रों पर आक्रमण किया जिसमें जयपाल पराजित हुआ। 991 ई० में पुनः सुबुक्तगीन ने जयपाल पर आक्रमण किया। इस बार भी जयपाल पराजित हुआ और दर्रा-खैबर तथा पेशावर क्षेत्र पर सुबुक्तगीन ने कब्जा कर लिया। इस प्रकार तुर्कों को वह मार्ग प्राप्त हो गया जिससे वे अब भारत के आन्तरिक प्रदेशों पर आक्रमण कर सकते थे। 997 ई० में सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद महमूद गजनी का शासक बना। महमूद बचपन से भारतवर्ष की अपार समृद्धि और धन-दौलत के विषय में सुन रहा था। अतः महमूद भी भारत की दौलत को लूटना चाहता था। उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया और यहाँ की अपार सम्पत्ति को लूटकर गजनी ले गया। 
Mahmood ghaznavi
Mahmood Ghaznavi Coin

महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण – 

पेशावर क्षेत्र पर आक्रमण – 

महमूद गजनवी ने अपना पहला आक्रमण 1000 ई० में किया तथा पेशावर के कुछ भागों पर अधिकार करके गजनी लौट गया। 

जयपाल से युद्ध – 

महमूद ने 1001 ई० में सीमान्त प्रदेशों के शाही राजा जयपाल के विरुद्ध युद्ध किया, जिसमें जयपाल की पराजय हुई और उसकी राजधानी बैहिन्द पर महमूद गजनवी ने अधिकार कर लिया। इस पराजय और अपमान के कारण जयपाल ने अग्नि में प्रवेश कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। 

भेरा पर अधिकार – 

महमूद का तीसरा आक्रमण 1004 ई० में हुआ। इस बार उसका उद्देश्य झेलम नदी पर स्थित भेरा नामक व्यापारिक केन्द्र पर अधिकार करना था। इसके शासक विज्जीराय ने चार दिनों तक भीषण युद्ध किया लेकिन वह पराजित हुआ और मारा गया। 

मुल्तान पर अधिकार – 

1005 ई० में महमूद ने मुल्तान पर आक्रमण किया। मुल्तान अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था तथा इसे स्वर्ण नगरी भी कहा जाता था। मुल्तान का शासक अबुलफतह भाग गया और मुल्तान पर महमूद गजनवी का अधिकार हो गया। 

वैहिन्द का युद्ध – 

1008 ई० में महमूद ने शाही राजा आनन्दपाल पर आक्रमण किया जो जयपाल का उत्तराधिकारी था। मुल्तान पर आक्रमण के समय आनन्दपाल ने महमूद को अपने राज्य से गुजरने नहीं दिया था। आनन्दपाल ने महमूद के विरुद्ध तैयारियाँ की और कुछ राजाओं से सहायता भी प्राप्त की लेकिन भीषण युद्ध में वह पराजित हुआ। विजय के पश्चात् महमूद ने नगरकोट के प्रसिद्ध मन्दिर को लूटा। आनन्दपाल शिवालिक पहाड़ियों में भाग गया। 

नरायणपुर पर आक्रमण – 

1009 ई० में महमूद ने नरायणपुर (अलवर) पर आक्रमण किया और विजय प्राप्त की। 

मुल्तान पर आक्रमण – 

मुल्तान के शासक दाऊद ने स्वतन्त्र होने का प्रयास किया। महमूद ने 1010 ई० में मुल्तान पर आक्रमण किया और उसे गजनी में मिला लिया। 

त्रिलोचनपाल पर आक्रमण – 

1013 ई० में महमूद ने आनन्दपाल के उत्तराधिकारी त्रिलोचनपाल पर आक्रमण किया। त्रिलोचनपाल पराजित हुआ और कश्मीर भाग गया। 

थानेश्वर पर आक्रमण – 

1014 ई० में महमूद ने थानेश्वर के विरुद्ध अभियान किया। उसका उद्देश्य थानेश्वर के प्रसिद्ध चक्रस्वामी मन्दिर को लूटना था। 

कश्मीर पर आक्रमण – 

1015 ई० में महमूद ने कश्मीर पर आक्रमण किया जहाँ त्रिलोचनपाल ने शरण ली थी। कश्मीरी सैनिकों ने घाटी में डटकर महमूद का मुकाबला किया। अन्त में महमूद को असफल होकर वापस लौटना पड़ा।  

कन्नौज पर आक्रमण – 

1018 ई० में महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया। यहाँ के शासक राज्यपाल ने आत्मसमर्पण कर उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। राज्यपाल द्वारा इस आत्मसमर्पण से कालिंजर का चन्देल शासक क्रोधित हो गया। उसने ग्वालियर के शासक के साथ सन्धि कर कन्नौज पर आक्रमण कर दिया और राज्यपाल को मार ड़ाला। 

मथुरा पर आक्रमण – 

महमूद कन्नौज से मथुरा आया। स्थानीय शासकों ने उससे युद्ध किया जो निष्फल सिद्ध हुआ। मथुरा के मन्दिरों को देखकर महमूद आश्चर्यचकित रह गया लेकिन उसने मन्दिरों को नष्ट कर दिया। यह विनाश और लूट का कार्य कई दिनों तक चलता रहा। 

कालिंजर पर आक्रमण – 

1020 ई० में महमूद ने चन्देल राजा विद्याधर पर आक्रमण किया। इस समय चन्देल शासक उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा था और महमूद का उद्देश्य उसकी शक्ति को दुर्बल करना था। कालिंजर चन्देल राज्य का दुर्भेद किला था। महमूद कालिंजर को जीतने में असफल रहा और उसे असफल हो वापस लौटना पड़ा। 

पंजाब पर आक्रमण – 

1020 ई० में महमूद ने पंजाब पर अधिकार कर वहाँ प्रशासन स्थापित किया जिससे पंजाब उसके लिए आधार का कार्य कर सके। शाही शक्ति नष्ट हो जाने से महमूद का कोई प्रतिरोध नहीं हुआ। 

कालिंजर पर आक्रमण – 

1022 ई० में महमूद ने कालिंजर पर पुनः आक्रमण किया। इस बार भी उसका उद्देश्य चन्देल शक्ति को नष्ट करना था। इस बार भी उसे असफल होकर वापस लौटना पड़ा। 

सोमनाथ पर आक्रमण – 

सोमनाथ का मन्दिर सौराष्ट्र में समुद्रतट पर स्थित था। यह मन्दिर अपनी अपार सम्पत्ति के लिए प्रसिद्ध था। महमूद का उद्देश्य इस अपार सम्पत्ति को प्राप्त करना था। महमूद ने 1025 ई० में सोमनाथ पर आक्रमण किया। तीन दिनों के भीषण युद्ध के पश्चात् महमूद को विजय प्राप्त हुई। मन्दिर की अतुल सम्पत्ति को लूटते हुए महमूद ने यहाँ नरसंहार किया जिसमें हजारों व्यक्ति मारे गए। वह कच्छ के रन के मार्ग से वापस लौटा। मार्ग में उसकी सेना ने अवर्णनीय कष्ट उठाये। सिंध में जाटों ने सम्पत्ति को लूटने का प्रयास किया। 

जाटों के विरुद्ध अभियान – 

अगले वर्ष महमूद ने सिंध के जाटों को दण्डित करने के लिए अभियान किया जिसमें हजारों जाट मारे गए। 
महमूद पहला सुल्तान था जिसने सुल्तान की उपाधि धारण की। खलीफा अल-कादिर बिल्लाह ने उसे अमीन-उल-मिल्लत और यामिन-उद-दौला की उपाधियाँ प्रदान की थीं। यद्यपि उसने खलीफा के नाम का इस्तेमाल अपनी निरंकुश सत्ता को मजबूत बनाने में किया, तदापि उसने खलीफा की सत्ता को कभी मान्यता नहीं दी। भारत पर अपने प्रत्येक आक्रमण को महमूद ने जेहाद का नाम दिया और अपना नाम बुतशिकन रखा। 1030 ई० में महमूद की मृत्यु गजनी में ही हो गई।

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