संस्कृति
संस्कृति किसी समाज के वे सूक्ष्म संस्कार हैं, जिनके द्वारा लोग परस्पर सम्प्रेषण, विचार और जीवन के विषय में अपने ज्ञान एवं अभिवृत्तियों को दिशा प्रदान करते हैं। संस्कृति के दो भिन्न उप विभाग हैं – भौतिक और अभौतिक। भौतिक संस्कृति उन विषयों से सम्बद्ध है जिसे सभ्यता कहते हैं जो व्यक्ति के जीवन के भौतिक पक्षों से जुड़ा होता है, जैसे वेशभूषा, भोजन, घरेलू सामान आदि। अभौतिक संस्कृति विचारों, आदर्शों, भावनाओं और विश्वास से सम्बद्ध है। संस्कृति एक देश से दूसरे देश में एवं एक समाज से दूसरे समाज में परिवर्तित होती रहती है। इसका विकास एक राष्ट्रीय अथवा सामाजिक निर्देश में होने वाली ऐतिहासिक एवं ज्ञान सम्बन्धी प्रगति व प्रक्रिया पर आधारित होता है।
Indian Culture |
संस्कृति का अर्थ –
संस्कृति शब्द संस्कार से बना है संस्कार का अर्थ है शुद्धि की क्रिया अथवा परिष्कार। इसका तात्पर्य यह है कि संस्कृति का सम्बन्ध उन सभी वस्तुओं व विचारों से है जो व्यक्ति का परिष्कार कर सके। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि संस्कृति का अभिप्राय सामाजिक प्रशिक्षण के उन तरीकों तथा मानवीय ज्ञान से है जिनके द्वारा व्यक्ति समाज में अनुकूलन करना सीखता है।
टायलर के अनुसार, “संस्कृति वह जटिल सम्पूर्णता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और इसी तरह की उन सभी क्षमताओं का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है।"
प्राचीन भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ –
भारतीय संस्कृति विश्व की अति प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है। भारतीय संस्कृति आदि काल से ही अपने परम्परागत अस्तित्व के साथ निरन्तर बनी हुई है। इसने स्वयं की उदारता तथा समन्वयवादी प्रकृति के कारण अन्य संस्कृतियों को समाहित किया है, परन्तु इसके साथ उसने अपने अस्तित्व के मूल को सुरक्षित रखा है। भारतीय संस्कृति में निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं –
प्राचीनता –
भारत की संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। भारत आदि मानवों की प्राचीनतम कर्मभूमि रही है इसके स्पष्ट प्रमाण मध्य प्रदेश के भीमबेटका में पाए गए शैलचित्र, नर्मदा घाटी में की गई खुदाई से प्राप्त होते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के विवरणों से भी स्पष्ट होता है कि आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व उत्तरी भारत के विशाल भाग में एक उच्च कोटि की संस्कृति विकसित हो चुकी थी। वेदों की प्रमाणिकता में न केवल भारतीय संस्कृति की प्राचीनता का प्रमाण है, बल्कि भारतीय अध्यात्म और चिन्तन की भी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति है।
निरन्तरता –
भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण लक्षण उसकी निरन्तरता है। विश्व की अन्य संस्कृतियां जैसे मिस्र, असीरिया, यूनान और रोम की संस्कृतियां अपने मूल स्वरूप को जहाँ लगभग विस्मृत कर चुकी हैं अथवा समय के साथ लुप्त हो गई हैं जबकि वहीं भारतीय संस्कृति कई वर्षों के बाद आज भी जीवित है। भारत में सदियों से नदियों, वट, पीपल जैसे वृक्षों, सूर्य तथा अन्य प्राकृतिक देवी-देवताओं की पूजा अर्चना का क्रम निरन्तर बना हुआ है।करोड़ो भारतीयों की आस्था और विश्वास वेदों और वैदिक धर्म में आज भी उतना ही है, जितना हजारों वर्ष पूर्व था। कुछ परिवर्तनों के बाद भी भारतीय संस्कृति के बुनियादी तत्वों, जीवन मूल्यों एवं वचन पद्धति में इस प्रकार की निरन्तरता बनी रही है, कि आज भी उन मूल्यों एवं चिन्तन प्रणालियों से अनेक भारतीय स्वयं को सम्बन्धित महसूस करते हैं।
सहिष्णुता –
भारत में प्राचीन समय से ही अनेक सम्प्रदायों के प्रति सम्मान का भाव रहा है। इसकी सहिष्णु प्रकृति के कारण ही इसमें विभिन्न संस्कृतियों का समन्वय हो पाया है। भारतीय संस्कृति वह समुद्र है जिसमें विभिन्न संस्कृति रूपी सरिताएँ अपना पृथक अस्तित्व समाप्त कर विलीन हो गई हैं। इस सहिष्णु प्रकृति ने उसे दीर्घ आयु और स्थायित्व प्रदान किया है।
ग्रहणशीलता –
भारतीय संस्कृति की प्रकृति सहिष्णु एवं उदार होने के कारण उसे एक ग्रहणशील प्रवृत्ति के रूप में भी स्वयं का विकास करने का अवसर प्राप्त हुआ। भारतीयों का जब-जब अन्य देशों के साथ सम्पर्क हुआ है उसने वहाँ की अच्छाइयों को ग्रहण किया। परिणामतः भारतीय संस्कृति अधिक समृद्ध हो गई। विदेशी जातियों जैसे शक, हूण, यूनानी एवं कुषाण लोगों के रीति-रिवाज, धर्म एवं भाषा को हमारे भारतीयों ने आत्मसात किया है। भारत में इस्लामी संस्कृति का आगमन भी अरबों, तुर्कों और मुगलों के माध्यम से हुआ। भारतीय संस्कृति इसके बावजूद स्वयं का पृथक अस्तित्व बनाए हुए है।
आध्यात्मिक एवं भौतिक –
भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिकता की भी विशेषता रही है। यहाँ आश्रम व्यवस्था के साथ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चार पुरूषार्थ का विशिष्ट स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति में वस्तुतः इन पुरूषार्थों ने ही आध्यात्मिकता के साथ भौतिकता का एक अद्भुत समन्वय दिखाया है। धर्म उन सिद्धान्तों, तत्वों और जीवन प्रणाली को कहते हैं, जिसमें ईश्वर प्रदत्त शक्तियों के विकास से मानव जाति अपने लौकिक जीवन को सुखी बना सके और मृत्यु के पश्चात् जीवात्मा शान्ति का अनुभव कर सके। शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है, यह अमरता मोक्ष से जुड़ी हुई है और यह मोक्ष प्राप्ति हेतु अर्थ और काम के पुरूषार्थ करना आवश्यक है। इस प्रकार भारतीय संस्कृति में धर्म और मोक्ष आध्यात्मिक सन्देश एवं अर्थ और काम की भौतिक अनिवार्यता आपस में सम्बन्धित है। आध्यात्मिकता और भौतिकता का यह समन्वय भारतीय संस्कृति की वह विशिष्ट अवधारणा परिलक्षित करता है, जो भारतीय मनीषियों ने मनुष्य के इस लोक और परलोक को सुखी बनाने हेतु निर्मित की थी।
कर्मवाद –
भारतीय संस्कृति में कर्म को अधिक महत्व दिया गया है। यहाँ माना जाता है कि अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा मिलता है। श्रेष्ठ कर्म करने वाले को उच्च योनि में जन्म मिलता है जबकि बुरे कर्म करने वाले निम्न एवं हेय योनि में जन्म लेते हैं। अतः कर्मवाद भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है।
विविधता में एकता –
विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की अनुपम विशेषता है। यहाँ भाषा, धर्म, जाति, भौगोलिक पर्यावरण, जनसंख्या, प्रजाति, जनजाति आदि के आधार पर अनेक विभिन्नताएँ व्याप्त है। फिर भी उनमें एकता के दर्शन होते हैं।
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