प्रागैतिहासिक काल (Prehistory)

प्रागैतिहासिक काल सामान्यतः मानव सभ्यता के उस काल को कहते हैं जिसके विषय में कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं होते हैं। प्रागैतिहासिक काल में मानव सभ्यता एवं संस्कृति प्रारम्भ हुई तथा धीरे-धीरे उसका विकास हुआ। प्रागैतिहासिक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1851 ई० में डैनियल विलसन  ने किया था। भारत में प्राग इतिहास के जनक राबर्ट ब्रुश फुट थे। राबर्ट ब्रुश फुट ने 1863 ई० को मद्रास के पल्लवरम् से पाषाण युग के पहले उपकरण को पाया।  

पाषाणकालीन औजार
Stone tools

प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में बांटा गया है -

  1. पुरा पाषाण काल (Palaeolithic age)
  2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic age)
  3. नवपाषाण काल (Neolithic age)

प्रत्येक काल का विभाजन उन पदार्थों के नाम के आधार पर किया गया, जिन पदार्थों से बने औजार तथा दैनिक जीवन की वस्तुएँ मानव उपयोग में लाते थे। इन औजारों और वस्तुओं की बनावट, सुन्दरता और सुडौलता के आधार पर मानव सभ्यता के विकास के युग निश्चित किए गए।

पुरापाषाण काल

उपकरणों में भिन्नता के आधार पर पुरापाषाण काल को तीन कालों में विभाजित किया जाता है-

  1. निम्न पुरापाषाण काल (Lower Palaeolithic)
  2. मध्य पुरापाषाण काल (Middle Palaeolithic)
  3. उच्च पुरापाषाण काल (Upper Palaeolithic)

निम्न पुरापाषाण काल -

भारत के विभिन्न भागों से निम्न पुरा पाषाणकाल से सम्बन्धित उपकरण प्राप्त होते हैं। इन्हें दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है -

1. चॉपर-चॉपिंग पेबुल संस्कृति -

इसके उपकरण सर्वप्रथम पंजाब की सोहन नदी घाटी से प्राप्त हुए। इसी कारण इसे सोहन संस्कृति भी कहा गया है। पत्थर के वे टुकड़े, जिनके किनारे पानी के बहाव में रगड़ खाकर चिकने और सपाट हो जाते हैं, पेबुल कहे जाते हैं। चॉपर बड़े आकार वाला वह उपकरण है जो पेबुल से बनाया जाता है। इसके ऊपर एक ही ओर फलक निकालकर धार बनाई गयी है। चॉपिंग उपकरण द्विधार होते हैं, अर्थात्‌ पेबुल के ऊपर दोनों किनारों को छीलकर उनमें धार बनाई गई है।

2. एश्यूलियन संस्कृति -

एश्यूलियन संस्कृति को हैण्डऐक्स संस्कृति कहते हैं। इसके उपकरण सबसे पहले प्रो० किंग ने मद्रास के समीप बदमदुरै तथा अत्तिरपक्कम से प्राप्त किए थे इसीलिए इसे मद्रासी संस्कृति भी कहा जाता है।

  • 1928 ई० में डी० एन० वाडिया ने सोहन घाटी में सबसे पहले उत्खनन किया। इनको सोहन घाटी का पितामह कहा जाता है।
  • सोहन घाटी में मानव आवास का साक्ष्य एवं हैण्डऐक्स प्राप्त करने वाले एच० डी० संकलिया थे।
  • चौन्तरा को उत्तर एवं दक्षिण की परम्पराओं का मिलन स्थल माना जाता है।
  • मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में स्थित हथनोरा ( नर्मदा नदी घाटी) से एश्यूलियन औजार के साथ मानव कपाल एवं हाथियों का जीवाश्म प्राप्त किया। 
  • चिरकी-नेवासा (महाराष्ट्र) को उपकरण निर्माण की कार्यशाला माना गया है क्योंकि यहाँ से निर्मित, अर्द्धनिर्मित उपकरण तथा उनकी निर्माण सामग्री प्राप्त हुई है।

मध्य पुरापाषाण काल 

इसे नेवासियन संस्कृति तथा फलक संस्कृति भी कहा जाता है। दक्षिण भारत में इस काल की संस्कृति की पहचान फ्लेक उपकरणों से की जाती है जोकि लेवल्वा तकनीक से निर्मित थे। यही उपकरण पश्चिमी यूरोप की मुस्तुरियन संस्कृति में भी प्रचलित थे इसीलिए इस काल के उपकरणों को मुस्तुरियन संस्कृति भी कहा गया।

  • इस काल के उपकरणों की विशेषता है कि उनमें पुनगर्ढ़न के प्रमाण मिलते हैं।
  • महाराष्ट्र में स्थित नेवासा इस संस्कृति का प्रारूप स्थल (Proto Site) है।

उच्च पुरापाषाण काल 

भारत में बेलन घाटी में ही सबसे पहले उच्च पुरापाषाण काल के साक्ष्य मिलने शुरू हुए। उच्च पुरापाषाण काल की अन्तिम संस्कृति को मेग्देलियन संस्कृति कहा जाता है। इस काल से पहले के उपकरण बहुप्रयोजनीय होते थे अर्थात् एक ही उपकरण से काटने, चीरने, खोदने आदि का कार्य लिया जाता था। उच्च पुरापाषाण काल से उपकरणों के निर्माण में विशेषीकरण पर बल दिया जाने लगा। प्रत्येक कार्य के लिए विशिष्ट उपकरण बनाये जाने लगे। विशेष उपकरणों में तक्षणी या गिरमिट (Burin) का विशेष महत्व है। इस काल का मुख्य उपकरण ब्लेड था। इस का की दो मुख्य विशेषताएं हैं -

  1. नये चकमक उद्योग की स्थापना  (New flint Industry)
  2. प्रज्ञ मानव (होमोसेपियन्स) का पदार्पण सर्वप्रथम इसी काल में हुआ।

  • इसी काल से हड्डियों के बने उपकरण आन्ध्र प्रदेश के कर्नुल से मिले हैं।
  • बेलन घाटी के लोहदानाला क्षेत्र से दुनिया की सबसे प्राचीनतम अस्थिनिर्मित स्त्री की मूर्ति मिली है।
  • शुतुरमुर्ग के अंडे पर की गई चित्रकारी सर्वप्रथम 1860 ई० में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के केन नदी तट पर प्राप्त हुई।
  • शुतुरमुर्ग के अंडों पर प्राचीनतम चित्रांकन पाटणे से ही प्राप्त होता है।
  • इस काल के चित्रों का उदाहरण मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका से मिलता है।
  • कर्नुल जिले से प्राप्त जानवरों के दातों में छिद्र है जिसका प्रयोग सम्भवतः आभूषण हेतु किया गया था।

पुरापाषाण काल में मानव जीवन -

मानव पुर्णतया प्रकृति पर निर्भर था। शिकार एवं कन्दमूल ही उसके भोजन थे। वह अग्नि के प्रयोग से अपरिचित था इसीलिए मांस कच्चा खाता था। क्योंकि इस काल में कृषि, पशुपालन ऐवं मृदभाण्डों के प्रचलन का अभाव था इसीलिए लोगों के जीवन में स्थायित्व नहीं था। यही कारण है कि इस काल का मानव उपभोक्ता था, उत्पादक नहीं।







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