एलोरा का कैलाश मन्दिर

एलोरा की पहाड़ी को काट एवं तराश कर बनाया गया कैलाश नाथ का एकाश्मक मन्दिर यदि शैलोत्खनन परंपरा की परिणिति है तो राष्ट्रकूट युगीन द्राविड़ मन्दिर वास्तु का भी एक अनुपम दृष्टांत है। इसकी दिव्य रचना के सम्बन्ध में रोजर फ्राई ने ठीक ही लिखा है कि "भारतीय वास्तुकला पाश्चात्य कला की भांति संरचनात्मक सिद्धांतों पर नहीं वरन एक ही ठोस पदार्थ को काट छांट कर हाथी दांत की मूर्ति की भांति डालने की परंपरा पर आधारित है।"

kailash temple of ellora
ellora temple

निर्माण काल -

एलोरा के कैलाश मन्दिर का निर्माण सम्भवतः प्रथम राष्ट्रकूट नरेश दन्तिदुर्ग के काल में प्रारंभ हुआ तथा कृष्ण प्रथम के काल में पूर्ण हुआ।

निर्माण योजना -

कैलाश मन्दिर के निर्माण में राष्ट्रकूटों का वह अदम्य उत्साह एवं धैर्य निहित है, वह महत्वाकांक्षा है, जिसके बल पर उन्होंने गंगाघाटी से सिंहल तक अपना प्रभुत्व स्थापित किया था। अत्यधिक श्रमसाध्य एवं दीर्घकालापेक्षित कैलाश मन्दिर का उत्खनन कई चरणों में संपन्न हुआ। पूर्ण विकसित रूप से यह मन्दिर 300 फीट लंबे तथा 200 फीट चौड़े आयताकार प्रांगण का निर्माण करता है। यद्यपि इस विशाल प्रांगण में अनेक सम्बद्ध कृतियाँ हैं, किन्तु इसके विमान का मण्डप सर्वाधिक आकर्षक एवं विस्मयजनक है।

विमान एवं मण्डप -

कैलाश मन्दिर एक गहन शिला-गर्त में स्थित है। विमान मण्डप, अंतराल, नन्दीमण्डप तथा गोपुरम एक ही अक्ष पर निर्मित हैं। विमान एवं मण्डप संयुक्त रूप से निर्मित हैं। 25 फीट ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित होने के कारण यह आभासित नहीं होता है कि विमान एवं मण्डप किसी गहरे गड्ढे में हैं। यह अधिष्ठान क्षैतिज लहरों से भरा है जिनके मध्य सिंह-गज पंक्ति बनी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सिंह-गज मंदिर भार को ढो रहे हों।

गर्भगृह -

गर्भगृह विमान इस मन्दिर का सर्वाधिक मोहक अंग है। यह पिरामिडाकार शिखर से युक्त है। लम्बवत दीवार के ऊपर पिरामिडाकार शिखर चार पीढों या खंडों में विभाजित है। सबसे ऊपर स्तूपिका है। आधार से स्तूपिका तक संपूर्ण विमान की ऊंचाई 95 फीट के लगभग है।

मण्डप -

गर्भगृह के समक्ष मण्डप 16 स्तम्भों पर टिका है। जिसकी छत सपाट है। यह गर्भगृह के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है जिस पर पहुंचने के लिए पश्चिम में एक दीर्घ सोपान माला है।

अन्तराल -

गर्भगृह एवं मण्डप को जोड़ता हुआ एक लघु अंतराल है। वास्तव में यह अंतराल मण्डप से गर्भगृह में प्रवेश के लिए एक द्वार मात्र है जिससे इसका पृथक अस्तित्व आभासित ही नहीं होता।

प्रदक्षिणापथ -

गर्भगृह एवं मण्डप के चतुर्दिक गहरी खाई है। इसके बाहर दीवार के अन्तःभाग में मुख्य मन्दिर के अनुकरण पर पांच अन्य लघु मन्दिर तथा अनेक मण्डप बने हैं। इन मण्डपों से मुख्य गर्भगृह एवं मण्डप तक सेतु बने हैं। इस प्रकार सेतु के नीचे विमान के चतुर्दिक जो गड्डानुमा रिक्त भाग है, वह प्रदिक्षणापथ के रूप में प्रयुक्त होता है।

नन्दी मण्डप -

मण्डप के सामने उसी रेखा में किंतु पृथक रूप में एक मण्डप है जिसमें विशाल नन्दी की मूर्ति है। इसकी छत सपाट है। इसके उत्तर-दक्षिण में दो विशाल स्तम्भ बने हैं जिनके शीर्ष पर त्रिशूल है।

गोपुरम --

मन्दिर के विशाल प्रांगण में पश्चिम की ओर प्रवेशद्वार है जो दो मंजिला है। यद्यपि द्राविड़ कलाकार ने उसे गोपुरम का रूप देने का प्रयास किया है किन्तु यह गोपुरम का प्रारम्भिक रूप ही प्रतीत होता है।

लंकेश्वर मण्डप -

कैलाशनाथ मंदिर में हर अंग विभिन्न मूर्तियों से अलंकृत है। प्रदक्षिणापथ के चारों ओर अनेक उपमन्दिर या कक्ष बने हैं। इसे इस मन्दिर का दोष कह सकते हैं क्योंकि इससे मन्दिर के मुख्य अंग गड्ढे में स्थित प्रतीत होते हैं। उत्तरी दीवार का एक कक्ष विशेष उल्लेखनीय है जिसमें रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाने का दृश्य अंकित है। इसलिए उसे लंकेश्वर मण्डप के नाम से सम्बोधित किया गया है।

स्तम्भ -

इस मंदिर में स्तम्भ जहाँ आवश्यक अंग है वहीं अलंकरण के साधन भी हैं। स्तम्भों का निर्माण कुम्भ निस्सृत पत्र-पुष्प की भांति किया गया है। स्वतन्त्र स्तम्भ विशुद्ध द्राविड़ शैली में हैं जिनका आधार वर्गाकार या बहुकोणिक है, उसके ऊपर अठपहलू स्तम्भ यष्टि है जिसके शीर्ष पर कण्ठ एवं फलक है।

विशेषता -

कैलाशनाथ मन्दिर यद्यपि एक ही शिला खण्ड को काटकर बनाया गया है किंतु इसके विभिन्न अंगों में संतुलन एवं सामन्जस्य सौन्दर्यशास्त्र के नियमों पर आधारित है। कोई भी अंग अनावश्यक नहीं है। मूर्तियां भी इस प्रकार समुचित स्थानों को अलंकृत करती हैं कि मूर्तिकला एवं वास्तुकला में कहीं कोई विरोध नहीं है। वास्तव में सम्पूर्ण मन्दिर को ही एक विशाल एकाश्मक मन्दिर-मूर्ति कहा जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी।
यह मन्दिर कलाकार की उस कल्पना को साकार करता है कि शिव कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। पर्वत को काटकर पुनः मन्दिर पर्वत का रूप निर्धारित करना कलाकार की मौलिक प्रतिभा की देन है। कलाकारों ने विशाल शिला खण्ड में वह गति एवं लय उत्पन्न कर दिया है जिससे मन्दिर एक कविता की भांति अंतःकरण को स्पर्श करता है। इसकी विशालता में भी कमनीय सौन्दर्य का बोध होने के कारण इसे सम्यक् ही विश्व का महानतम पाषाण काव्य कहा गया है।
The world's greatest rock poem.
धन्यवाद।
https://purasampada.blogspot.com/2020/04/king-harshvardhan.html

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