सम्राट हर्षवर्धन
हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश का सबसे प्रतापी राजा था। हर्षवर्धन का जन्म 590 ईस्वी में हुआ था। उसके पिता का नाम प्रभाकरवर्धन था। हर्षवर्धन के बचपन की शिक्षा थानेश्वर में हुई थी। वह युद्ध कला में निपुण था। 605 ईस्वी में हूणों के विरुद्ध राज्यवर्धन (बड़ा भाई) के अभियान में उसने भी योगदान किया था। 606 ईस्वी में बंगाल के शासक शंशाक द्वारा राज्यवर्धन की हत्या के पश्चात हर्षवर्धन सिंहासन पर बैठा।
king harshvardhan empire |
हर्षवर्धन की आरम्भिक समस्याएं -
- सिंहासन पर बैठते ही हर्ष के समझ तीन प्रमुख समस्याएं थी-
- राज्यश्री का पता लगाना।
- पुष्यभूति और मौखरी वंश के शत्रुओं से अपने दोनों वंशों की रक्षा करना।
- कान्यकुब्ज के सिंहासन के उत्तराधिकारी का प्रश्न हल करना।
हर्षवर्धन का राज्य -
- हर्षवर्धन ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया। जहाँ से उसने चारों ओर अपना प्रभुत्व फैलाया।
- कश्मीर को छोड़कर उत्तर प्रदेश और बिहार उसके प्रत्यक्ष नियंत्रण में था।
- पूर्व में हर्षवर्धन का सामना गौड़ के शैव राजा शशांक से हुआ।
- दक्षिण की ओर हर्ष को राजा पुलकेशिन द्वितीय ने रोका।
बौद्ध धर्म -
- हर्षवर्धन ने बौद्ध धर्म को संरक्षण प्रदान किया।
- एक सच्चे बौद्ध के रूप में उसने महायान के सिद्धांतों के प्रचार के लिए कन्नौज में एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया।
- यह सम्मेलन 18 दिनों तक चलता रहा और अन्त में सम्राट हर्षवर्धन ने महायान सम्प्रदाय को सर्वश्रेष्ठ सम्प्रदाय घोषित करके ह्वेनसांग को विशेष रूप से सम्मानित किया था।
- इसमें ह्वेनसांग के अतिरिक्त अन्य कई राजाओं ने एक विशाल स्तंभ का निर्माण कराया जिसके बीच में बुद्ध की एक स्वर्ण प्रतिमा स्थापित थी।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय में बौद्ध धर्म अट्ठारह संप्रदाय में बंटा हुआ था।
- नालंदा, जहां बौद्ध भिक्षुओं को शिक्षित करने के लिए, एक महान विश्वविद्यालय था।
- कहा जाता है कि उसमें 10,000 छात्र थे। उसमें महायान संप्रदाय का बौद्ध दर्शन पढ़ाया जाता था
हर्षवर्धन का प्रशासन -
- हर्ष का प्रशासन निरंकुश तथा गणतंत्रीय तत्वों का मिश्रण था।
- उसके पास विशाल सेना थी।
- वह युद्ध के समय अपने सभी सामन्तों का सहयोग प्राप्त कर सकता था।
- दण्ड विधान काफी कठोर था।
- राज्य को समर्पित विशेष सेवाओं के लिए पुरोहितों को भूमि दान देने की परंपरा थी।
- हर्ष के समय राजकीय आय को चार भागों में बांट दिया जाता था -
- राजा के खर्च के लिए।
- विद्वानों के लिए।
- अधिकारियों एवं अमलों के बंदोबस्त के लिए।
- धार्मिक कार्य के लिए।
हर्षवर्धन के समय के प्रमुख अधिकारी -
- अवन्ति - युद्ध और शान्ति का मंत्री
- सिंहनाद - सेना का महासेनापति
- कुन्तल - अश्व सेना का मुख्य अधिकारी
- स्कन्दगुप्त - हस्ति सेना का मुख्य अधिकारी
प्रयाग का महादान -
- सम्राट हर्षवर्धन पाँचवें वर्ष प्रयाग में एक दान वितरण का आयोजन करता था। इसे महामोक्ष परिषद कहा जाता था।
- इसमें सम्राट हर्षवर्धन विभिन्न देवी-देवताओं विशेष रूप से शिव, दुर्गा, विष्णु की पूजा करता था। 10 दिन तक सम्राट इसमें सम्मिलित मनुष्यों को मुक्त हस्त से दान देता था।
- ऐसा कहा जाता है कि अन्त में वह अपने कपड़ों आदि को भी दान दे दिया करता था।
साहित्य और कला -
- मधुबन पत्र अभिलेख चार पीढ़ियों तक हर्षवर्धन की वंशावली बताता है।
- सोनीपत अभिलेख हर्षवर्धन के राज्य के कालक्रम की कठिनाइयों को सुलझाने में सहायक रहा।
- बांसखेड़ा अभिलेख से हर्षवर्धन के हस्ताक्षर की प्रतिलिपि प्राप्त हुई है।
- हर्षवर्धन द्वारा रचित रत्नावली, नागानन्द और प्रियदर्शिका पुस्तकें प्रेम तथा दरबार के षडयंत्रों से सम्बन्धित है।
- नागानन्द में हर्षवर्धन की दानशीलता और सह्रदयता का चित्रण है।
- मध्य प्रदेश के रायपुर जिले में सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर और यमुना के पास का मुन्देश्वरी मंदिर हर्षकालीन है।
हर्षवर्धन के समय भारत आए चीनी यात्री -
- ह्वेनसांग - 630 ईस्वी
- ल्यांग-होआई-किंग - 643 ईस्वी
- लीन्यप्याओ - 646 ईस्वी
- वाॅग-ह्वान-त्से - 646 ईस्वी
हर्षवर्धन का इतिहास में स्थान -
- हर्षवर्धन भारत के महान शासकों में से एक था।
- वह एक महान विजेता भी था। उसमें पर्याप्त मात्रा में सैनिक गुण विद्यमान थे।
- उसने भारत के बहुत बड़े भाग को राजनैतिक एकता प्रदान की।
- वह धर्म परायण सम्राट था और उसकी धार्मिक नीति उदार तथा व्यापक थी।
- वह विद्या और कला का प्रेमी था।
- स्वेच्छाचारी सम्राट होते हुए भी उसने अपनी शक्ति का प्रयोग कभी निरंकुश शासक के रूप में नहीं किया।
- उसने अपनी प्रजा के कल्याण और देश के सांस्कृतिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए हर सम्भव प्रयास किया।
- इतिहास में वह अपनी सहिष्णुता, उदारता, दान और विभिन्न प्रतिष्ठानों की स्थापना के लिए हमेशा प्रसिद्ध रहेगा।
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