कांग्रेस का उदारवादी युग (1885 ई० से 1905 ई० तक)
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रारम्भिक युग उदारवादी युग के नाम से जाना जाता है। इस काल में राष्ट्रीय आन्दोलन का संचालन उन नेताओं के हाथों में रहा जो अपने विचार तथा कार्यों में उदारवादी थे। इन नेताओं ने अनुनय विनय का रास्ता अपनाना ही उचित समझा, क्योंकि उदार राष्ट्रीयता के इस युग में कांग्रेस पर ऐसे लोगों का नियन्त्रण था जिनकी शिक्षा-दीक्षा पर पश्चिम की उदार शिक्षा का प्रभाव था।
उदारवादीयों का मत था कि यदि ब्रिटिश सरकार को भारतीय समस्याओं से अवगत करा दिया जाए तो वे भारतीय जनता के हित में शासन करना आरम्भ कर देंगे। उन्हें विश्वास था कि यदि वे प्रार्थना पत्र के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के समक्ष अपनी माँगे प्रस्तुत करेंगे तो वह उन्हें स्वीकार कर लेंगी। इस धारणा के आधार पर काँग्रेसी नेताओं ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उदार दृष्टिकोण अपनाया।
Surendra nath banerjee |
उदारवादी युग में काँग्रेस का लक्ष्य –
उदारवादी नेता यद्यपि सुधार में विश्वास करते थे। उनकी हार्दिक इच्छा थी कि ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग की नीति अपनायी जाए अतः उनका अन्तिम लक्ष्य वैधानिक सुधारों के माध्यम से स्वशासन की प्राप्ति था। वे ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत स्वशासन की स्थापना करना चाहते थे। श्री सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने काँग्रेस के दूसरे अधिवेशन में ही स्वशासन की बात कही थी और सन् 1906 ई० के काँग्रेस अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में काँग्रेस द्वारा स्वशासन के इस लक्ष्य को स्पष्ट रूप से अपनाया गया था। परन्तु काँग्रेस का स्वशासन से आशय पूर्ण स्वाधीनता से नहीं था, पूर्ण स्वाधीनता का लक्ष्य तो सन् 1929 ई० के लाहौर अधिवेशन में घोषित किया गया।
उदारवादी युग में काँग्रेस द्वारा आयोजित विभिन्न अधिवेशन –
सन् 1885 ई० से 1905 ई० तक के उदारवादी युग में काँग्रेसी नेताओं द्वारा विभिन्न समयों पर अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न व्यक्तियों की अध्यक्षता में इक्कीस अधिवेशन आयोजित किए गए। इसका प्रथम अधिवेशन श्री वोमेशचन्द बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया तथा अनेक प्रस्ताव स्वीकृत कर ब्रिटिश सरकार के विचारार्थ भेजे गए जो संयत एवं विनम्र भाषा में थे। इस तरह प्रत्येक अधिवेशन में कुछ न कुछ माँगे ब्रिटिश सरकार के पास भेजी जाती थीं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है –
- विधान परिषदों का विस्तार किया जाए तथा उनके लिए निर्वाचन की प्रणाली अपनाई जाए।
- जूरी प्रथा को देश के अन्य भागों में भी लागू किया जाए।
- कार्यकारिणी और न्यायपालिका एक-दूसरे से स्वतन्त्र होनी चाहिए।
- भारतीय परिषद् को समाप्त किया जाए।
- सेना पर व्यय कम किया जाए।
- भारतवासियों को सैनिक शिक्षा दी जाए व सरकार सैनिक शिक्षा के लिए विद्यालय खोले।
- भारतीयों के हितों की विदेशों में रक्षा की जाए।
- भारतीय नागरिक सेवा (आई. सी. एस.) की परीक्षाएँ भारत एवं इंग्लैण्ड में साथ-साथ आयोजित की जायें एवं उनमें भाग लेने के लिए अधिकतम आयु रखी जाये।
- भूमि कर में कमी की जाये।
- भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाये।
- नमक कर कम किया जाये।
- शस्त्र कानून में संशोधन हो।
- बेगार प्रथा का अन्त हो।
- कृषि बैंक खोले जायें जिससे गरीब जनता को ऋण मिल सके।
- सरकार को कृषि व्यवस्था में सुधार करना चाहिए।
धन्यवाद
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