कलिंग युद्ध
कलिंग युद्ध सम्राट अशोक के राज्याभिषेक के 8वें तथा राज्य प्राप्ति के 13वें वर्ष अर्थात् 261 ई०पू० में हुआ था। इस युद्ध का उल्लेख सम्राट अशोक के 13वें शिलालेख (शाहबाजगढ़ी राजाज्ञा) में हुआ है। युद्ध में एक लाख लोग मारे गए और एक लाख पचास हजार लोग बन्दी बना लिए गए। इस युद्ध में भीषण रक्तपात एवं ह्रदयविदारक दृश्य देखकर अशोक ने अपनी विजय नीति बदल दी। यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग शुरू हुआ। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। सिंहली अनुश्रुतियों दीपवंश एवं महावंश के अनुसार सम्राट अशोक को अपने शासन के चौदहवें वर्ष निग्रोथ नामक भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा प्राप्त हुई। तत्पश्चात् मोगलीपुत्र तिस्स के प्रभाव से वह पूर्णतः बौद्ध बन गया। दिव्यावदान के अनुसार सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में दीक्षित करने का श्रेय उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु को जाता है।
Kalinga War |
कलिंग युद्ध के कारण –
साम्राज्य विस्तार की लालसा –
सम्राट अशोक अपने पूर्वजों के समान ही अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। भारत के अधिकतर भू-भाग पर उसका अधिकार था। कलिंग के दोनों ओर बंगाल एवं दक्षिणी भारत पर मौर्य साम्राज्य होने से अशोक ने इस पर आधिपत्य करना सरल समझा होगा। अतः वह कलिंग पर विजय प्राप्त करके राजनैतिक एकीकरण पूर्ण करना चाहता था।
विदेशी व्यापार की लालसा –
कलिंग लंका, बंगाल तथा पूर्वी द्वीपसमूह के मध्य में था। अत: कलिंग व्यापार का महत्वपूर्ण केन्द्र था। प्लिनी ने कलिंग को समुद्र के निकटतम बताते हुए उसके विदेशी व्यापार का उल्लेख किया है क्योंकि स्थल और समुद्र दोनों से दक्षिण भारत जाने वाले मार्गों पर कलिंग का आधिपत्य था। अतः विदेशी व्यापार की समृद्धि के लिए सम्राट अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया। बोगार्ड लेनिन ने भी कलिंग युद्ध का एक कारण व्यापार को माना है।
स्वराज की सुरक्षा –
कलिंग मगध राज्य की सीमा से संलग्न एक समृद्ध राज्य था। कलिंग की बढ़ती हुई शक्ति मौर्य साम्राज्य के लिए खतरे का कारण बन सकती थी। तारानाथ के अनुसार, नागों जो कि समुद्री लुटेरे थे, उनसे दक्षिणी पूर्व एशिया में सामुद्रिक व्यापार पर खतरे उत्पन्न हो गए थे। सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य की तथा समुद्री मार्गों की सुरक्षा कलिंग पर अधिकार करके प्राप्त कर ली। इसी को तारानाथ सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की विजय के रूप में अतिशयोक्ति के साथ वर्णित करते हैं।
आय में वृद्धि –
कलिंग से दक्षिण पूर्वी देशों से उचित व्यापारिक सम्बन्ध सरलता से स्थापित किए जा सकते थे। इसके साथ ही कलिंग में कुछ प्रमुख आयगत व्यवसाय भी प्रचलित थे। अर्थशास्त्र में कलिंग को सूती वस्त्रों के निर्माण का यह एक प्रमुख केन्द्र बताया गया है। अतः कलिंग पर अधिकार करके सम्राट अशोक मौर्य साम्राज्य की आय में वृद्धि करना चाहता था।
विशाल सेना –
सम्राट अशोक के पास एक विशाल सेना थी जो पूर्णरूप से हाथियों की शक्ति पर निर्भर थी। राजाओं की जीत जितनी हाथियों पर निर्भर थी उतनी किसी अन्य पर नहीं। कलिंग भी अति उत्तम हाथियों के लिए प्रसिद्ध था। अतः हाथियों की प्राप्ति के लिए भी कलिंग पर आक्रमण किया गया।
उपरोक्त सभी करणों से प्रेरित होकर सम्राट अशोक ने विशाल सेना के साथ कलिंग पर आक्रमण कर दिया। कलिंग के सैनिकों ने भी वीरतापूर्वक युद्ध किया परन्तु पराजित हुए और सम्राट अशोक को विजय प्राप्त हुई।
कलिंग युद्ध के परिणाम –
जन-धन की हानि –
सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख से ज्ञात होता है कि इस भयंकर युद्ध में एक लाख लोग मारे गए डेढ़ लाख लोग बन्दी बना लिए गए। कलिंग की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई तथा बन्दी सैनिकों को अपने राज्य में रखने के कारण मौर्य साम्राज्य की आर्थिक स्थिति पर भी अत्यधिक दबाव बढ़ गया। अतः स्पष्ट है कि इस अत्यन्त विनाशकारी युद्ध के कारण अपार जन-धन की हानि हुई।
मौर्य साम्राज्य का विस्तार –
कलिंग विजय के परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य का विस्तार हुआ तथा कलिंग मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित हो गया। तोशाली को इसकी राजधानी घोषित किया गया।
साम्राज्यवादी नीति का अन्त –
कलिंग युद्ध के विनाशकारी परिणामों को देखकर सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तित हो गया तथा उसने प्रथम सम्राट के रूप में आजीवन तलवार न उठाने का प्रण लिया। अतः बिम्बिसार द्वारा प्रतिपादित साम्राज्य विस्तार की नीति को अशोक ने त्याग दिया तथा कलिंग विजय उसके जीवन की अन्तिम विजय सिद्ध हुई।
बौद्ध धर्म की स्वीकृति –
कलिंग युद्ध के प्रायश्चित के कारण सम्राट अशोक ने अहिंसावादी बौद्ध धर्म अपना लिया। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करना प्रारम्भ कर दिया तथा अहिंसावादी विचारों को व्यवहारिक रूप से स्वीकार किया।
धम्म की स्थापना –
कलिंग विजय ने सम्राट अशोक को धम्म की स्थापना के लिए प्रेरित किया। इसके फलस्वरूप सम्राट अशोक ने लौकिक एवं पारलौकिक जीवन को सुधारने का प्रयास किया। समस्त धर्मों के नैतिक नियमों का अनुसरण करके सम्राट अशोक ने धम्म की स्थापना की।
व्यक्तिगत जीवन पर प्रभाव –
कलिंग युद्ध का सम्राट अशोक के व्यक्तिगत जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। सम्राट अशोक ने माँस खाना, शिकार करना तथा भोग विलास पूर्ण जीवन की क्रियाएँ त्याग दीं तथा दया, दान, अहिंसा एवं प्रेम का रास्ता अपना लिया। सम्राट अशोक ने अपना समय, शक्ति और संसाधनों को प्रजा की भलाई में लगाया। सम्राट अशोक के जन कल्याणकारी कार्यों ने उसे विश्व इतिहास में एक महान सम्राट के रूप में स्थापित किया।
अन्य देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध –
कलिंग युद्ध के पश्चात अन्य देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हुए। सम्राट अशोक ने विदेशी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करके तथा उन देशों में शान्ति एवं बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु अपने प्रचारक भेजे।
मौर्य साम्राज्य का पतन –
कलिंग युद्ध मौर्य साम्राज्य के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण था क्योंकि इसके पश्चात सम्राट अशोक ने सदैव के लिए युद्ध नीति का परित्याग कर दिया। सम्राट अशोक ने साम्राज्य विस्तार के भेरी घोष के स्थान पर धर्म घोष का प्रारम्भ किया। सेना उपेक्षा एवं अनभ्यास के परिणामस्वरूप शिथिल हो गई जिससे साम्राज्य की सीमाएँ असुरक्षित हो गईं। सम्राट अशोक के उत्तराधिकारियों के समय जब यूनानी आक्रमण हुआ तो मौर्य साम्राज्य उनका सामना करने में विफल हो गया जिससे यूनानी पाटलिपुत्र तक आ गए। अतः कलिंग युद्ध मौर्य साम्राज्य के पतन का एक कारण था।
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